Thursday, August 24, 2017

चरित्र चालीसा भाग 1

नाम – नायिका
उम्र – 21
स्वभाव – वास्तविक और सामाजिक( real and social )।
सिचुएशन और परिस्थितिया अगर फेवरेबल हो तो वो बहुत ही रियल रहती है। जो दिल में आता है वो करती है । झल्ली पने की इत्हा ये है कि , बातों बातों में वो एलियन की आवाज निकाल कर आपको हसा सकती है , डरा सकती है । और बक बक बैकयती से कान को सुन्न कर सकती है। आप को वो दोस्त मानती है तो , पुरे हक के साथ आपकी तशरीफ में मिर्ची का तड़का भी दे सकती है। तो वही आपकी हर समस्या का हल ढूढने के लिए एक सर्च इंजन भी बन जाती है । वो एक चलता फिरता कम्यूनिकेसन सेंटर है। जहां आप कुछ भी बोल सकते है , कुछ भी जान सकते है , कुछ भी कन्फेस कर सकते है। तारिफों से इत्फाक नहीं रखती और अगर कुछ भी उटपटाग बोल दो रिएक्ट नहीं करती । जो लोग उसे जानते है , वो इस बात पे यकिन जरुर रखते है कि ,
उसके अंदर  हिरोइस्म दिखाने का चस्का है ।
नाम भी "नायिका" है । इसलिए रियल लाईफ में भी ,ऐसे पल बुन लेती है , जो अक्सर आपको एक फैन्टसी दूनिया और फैरीटेल की सैर करा देते है।
पंचलाईन –,"तुम मुझे कभी नहीं समझ सकते" (  दर्द झुंझुलाहट बेचैनी में ये शब्द पके हुवे आम की तरह आपके सामने कभी भी टपक जाते है । "नायिका" के ड्रामेटिक आर्ट और मैलोड्रामा से लबालब ये शब्दिक पंच अक्सर  फिल्मी प्रपंच ही लगते है । लेकिन जब ये संजीदा हो जाते है तो, आपको तोड़ के रख देते है।

मिथ- जानकारों की माने तो नायिका , बॉडी डिसक्रिमिनेशन का शिकार एक नर है,जो शारिरिक रुप से एक मादा के रुप में पैदा हुई ।
अन्य विशेषता –
खुबसूरत लेकिन हाईट और साईज को लेकर बी काम्प्लेक्स
एमोच्योर डिंग डांग और सिंग सांग में तरबतर लेकिन तरावट देने वाली
गुलाबी नशे को तबतक प्रोहिबिटेड नहीं समझती है जबतक की उसमे अल्कोहल की मात्रा 4 परसेंट से ज्यादा ना हो।
लैंग्वेज -  हिंदी, अंग्रजी,मराठी में धारा प्रवाह 
पर्सनाल्टी -  बाम्बे टू बनारस, कही का भी रुप धर के बतिया और गरिया सकती है। भाषा पे पकड़ ऐसी की एलिट मुँह ताक सकता है और गवार खिखिया सकता है।
लेकिन हर सिक्के का दूसरा पहलू होता है। जब परिस्थितिया काबू में न हो । लोग , समाज , परिवार दोस्त यार ,हर कोई अपनी ऐठन में हो। पैसें पावर स्टेटस का गुंडाराज  हो । ऐसे में रियल गर्ल बहुत सोशल हो जाती है । हर उस सोच को फॉलो करने लगती है जो समाज के ढेकेदारों ने अपनी दुकान चलाने के लिए बनाए है । ऐसे में जीना तो आसान हो जाता है लेकिन अपने ही लोगों के बीच ,सोशल डिसक्रिमिनेशन और आईडेन्टिटि क्राईसिस का शिकार हो जाती है । और जब मै , यहां से उसे देखता हू तो वो कुछ ऐसी नजर आती है
चरित्र – सच्चा मगर फेरब से जला हुआ
कमजोरी – दोस्तों के बिना असहाय
दुश्मन- अधिकांश लड़किया, जिन्होंने दोस्ती की आड़ में दुश्मनी पुरी शिद्दत से निभाई
जुर्म - फरेब और बेवफाई का संगीन आरोप ,मामला 10 सालों से विचाराधीन
कॉन्ट्रोवर्शियल चुतियापा -
दो मौके पे "नायिका" के  कॉन्ट्रोवर्शियल चूतियापे के मामले प्रकाश में आए
पहला जब "आरव" ने "नायिका" के जवान होते दिल को इमोशनली ब्लेकमेल ही नही  उसके स्वस्थ दिमाग को जहर भी दिया। और अपने इस अनाचार में नायिका की सहेलियों को भी सहयोगी बना लिया।
उसने एक सच्ची या झूठी मार्मिक कहानी सुनाई। जिसका खुलासा कभी नहीं हुआ।
कहानी में, वो खुद को अपने दोस्त या भाई की मौत का जिम्मेदार मानता है । बाहर से एक टूटा इंसान जो अपने जीवन से निराश है।लेकिन अंदर से ऐसा चरित्र जो नायिका के इर्दगिर्द उसे चाटने और चुमने के लिए ही घुमता रहता है।  सामाजिक भाषा में समझने कि कोशिश करे तो वो "नायिका" का सबसे बड़ा हमदर्द और हितैशी था। जिसे सिर्फ और सिर्फ "नायिका" का प्यार चाहिए था। इस किरदार ने ऐसे समय में एंट्री मारी जब नायिका लगभक जवानी की दहलीज पे खड़ी थी। और लीक से हटकर उस ऑफबीट कल्ट किरदार यानी "ज्वलंत" से दूर जाना चाहती थी ,जो जबरदस्ती उसके दिल में घुस आया था । किसी से दूर जाना हो तो किसी और के पास आना ही पड़ता है। और यहीं वो पहली जगह थी जब "नायिका" की वास्तविकता की मौत हुई। उसकी मासूमियत को छला गया तथाकथित जिगरी सहेलियों की मदद से । नायिका का इमोरल प्रोवोकेशन करा के ,"ज्वलंत" के जन्म लेते प्यार को "नायिका" के दिल में ही मार दिया गया । 
सामाजिक रुप से समझा जाए तो "नायिका" का आरव की तरफ झुकना दोस्ती में प्रेम को कुरबान कर देना था। या फीर दो इंसानों के बीच ऐसे इंसान का चुनाव करना था, जिसकी Acceptance और इम्पोर्टेन्स  नायिका और उसकी सहलियों के लिए ज्यादा थी। "नायिका" के सामने एक बनावटी सामाजिकता थी और आभासी वास्तविकता । जिसे उसने सच मान लिया । आगे चलकर उसने दलील दी की "ज्वंलत" से प्यार करना उसकी भावनात्मक भूल थी । जोकि उसने अपराजय और गणिका के बहकावे में आकर की थी। अपराजय ने उसे इस बात के लिए assurd किया था कि,"ज्वंलत" की दूनिया में ,उसे एक किरदार में ही रहना है । कुछ दिनों में ही इस रियल लाईफ की काल्पनिक फिल्म का द इण्ड हो जाएगा और फिर तुम्हारी अपनी दूनिया और ज्वलंत की अपनी दूनिया होगी।
अपराजय ऐसा कर भी देता अगर ज्वलंत ने उसे अपने और नायिका के अंतरंग प्राईवेट पलों के बारे में नहीं बताता। सूरज की धूप का जो रंग होता है ,वो रंग है "नायिका" का, खुबसूरत कमर जो बल खाती है और उसपे उसकी छोटी सी नाभी
हाय क्या कहने
ना जाने कितनी बाते कर कर के ज्वलंत ,अपराजय को इस बात का यकिन दिला चूका था की, अब उन दोनों के बीच भावनात्मक ही नहीं शारीरिक रुप से भी एक लगाव हो गया है। इन सब के बीच अपराजय से गणिका का ये कहना की, ज्वंलत और नायिका के बीच में, हर वो बाते शेयर हो रही है, जो आमतौर पे लड़किया करने से कतराती है। या हद पार होने पे ही बोल पाती है। नायिका ने तो ज्वलंत के लिए एक बार फास्ट भी रखा था । अपराजय की जब बात नायिका से होती, तो भी उसे सब कुछ रियल ही लगता । ये सबकुछ अपराजय के इतने नजदीक से गुजर रहा था कि, हर सच की परत दर परत जाने की उसने कोशिश नहीं की।
सब कुछ अच्छा चलता है तो ,कोई भी इंसान ,किसी भी सच का पोस्टमार्टन नहीं करना चाहता है। और अपराजय से भी यही गलती हो गयी। जिसके बाद जो कुछ भी हुआ ,अपराजय ने सबके लिए "नायिका" को और खुद को दोषी माना और अभी मानता है।
ये सत्य है कि सामाजिकता की आड़ में किए गए अपराधों की सजा नहीं मिलती। लेकिन ये आपकी वास्तविकता को कमजोर जरूर करती है। आने वाले समय में ,जब मै ये सोचता हू कि नायिका और आरव की प्रेमकहानी ने कौन सा मोड़ लिया, तो पता चलता है कि आरव ने पहले ही यू टर्न ले लिया।
"आरव" ने फिर एक कहानी बनायी।
क्योकि अब उसके "बाप" मरने वाले थे। यहां भी  नायिका को अपनी सामाजिकता और वास्तविकता में से किसी एक को ही चूनना था।
अपनी  सामाजिकता में जकड़ी "नायिका" को भनक तक नहीं लगी की अब उसके साथ फिर वहीं कहानी दोहराई जा रही है। जो कभी ज्वलंत को उससे दूर करने के लिए लिखी जा रही थी। जहरखुरानो ने अपनी आत्मा बेच दी। मतलबी सखियों ने कन्नी काट ली और "आरव" ने परिवार की दुहाई देकर उस लड़की को छोड़ देता है ,जो बहुत कुछ छोड़ कर उसके पास आयी थी।
खैर इस बात में कोई शक नही की आरव ने ,"नायिका" की  इस बीच हर सम्भव मदद की और उसका ख्याल रखा जब उसके पास कोई नही था । उसने मानवीय महत्व की छाप इस कदर छोड़ी कि आज भी "नायिका" की नजर में "आरव" का जाना एक सामाजिक विवशता ही थी ,जो उसने अपने परिवार के दबाव में आके की थी ।
लेकिन सारी सामाजिक विवशता को ताक पे रख दिया जाए तो समझ में आएगा कि "नायिका" के अकेलेपन और तन्हाइयत का एक मात्र कारण भी "आरव" ही था।
आरव उस बच्चे की तरह था जो किसी और के टेडी बियर को अपना समझता है । और मौका मिलते ही उसे चुरा लेता है । उसके साथ खेलता है ,खुश होता है। और प्यार तो बेहिसाब करता है , उसे अपना बता के किसी और को उसे छूने तक नही देता। लेकिन जब दिल भर जाता है। तो अपने हाथों से ही उसे चीर फाड़ देता हैं।
सवाल ये हैकि ऐसा करने का साहस  उस बच्चे में आया कैसे
क्योंकि वो टेडी बियर किसी और का था ।
तकलीफ तो तब उसे होती जब टेडी बियर उसका होता।
वो उस समस्या का समाधान ढूंढ रहा था जिसका सूत्रधार भी वही था।
आगे चलकर कहानी के और भी किरदार सामाजिकता पावर पैसें स्टेटस के बीच जुझती इंसानी वास्तविकता के कई और रंग दिखाएगे बस पकड़ कर चलिए
 एक जैसे मुखौटों में चहरे बदल जाते है

एक ही बात के अक्सर मतलब बदल जाते है 

   

No comments:

Post a Comment