Wednesday, December 19, 2018

पुरस्कार सीजन 1

Act 1
संघमित्रा सिंह(24) अपने पिता जिला जीत सिंह के साथ जयपुर के आर्मी कैंट एरिया में रहती है। संघमित्रा के माता पिता दोनो ही रक्षा विभाग में है । पिता जिलाजीत सिंह(45) डिप्टी सीएम राजा इंद्र देव सिंह के निजी अंगरक्षक है और माँ  दुर्गा देवी (43) इंडियन पॉलिटकल इंटेलिजेंस में, जिसे आज कल हम खुफिया ब्यूरो के रूप में जानते है ।
संघमित्रा अपने माँ बाप की तरह एक देशभक्त सिपाही और अपने राजा के लिए राजभक्त लेकिन सिर्फ 2 सेमी हाइट कम हो जाने से वो आर्मी के लिए अनफिट घोषित हो गयी ।
संघमित्रा आर्मी में हो सकती थी, लेकिन राजा "इंद्रदेव सिंह" के राजनीतिक प्रतिद्वंदी, राजा"संग्राम सिंह"(62)के पुत्र और रिक्रूटमेंट ऑफिसर लेफ्टिनेंट विक्रमजीत सिंह (32) को जब ये पता चला की "जिलाजीत सिंह" "इंद्रदेव सिंह" के स्वामिभक्त है तो अपनी ईमानदारी  का दिखावा करते हुवे उन्होंने संघमित्रा के दुबले पतले शरीर और उसकी कम हाइट की खूब मजाक बनाया और संघमित्रा का अपमान करते हुवे उस के आर्मी सलेक्शन रद्द कर दिया।
संघमित्रा के पिता की सलाह पे संघमित्रा अपने पैतृक गांव वीरपुर चली आयी और डिस्टेंस लर्निंग से सैन्यविज्ञान की पढ़ाई करते हुवे खेतों की देख-रेख करने लगी।
इन सब के बीच "संघमित्रा" "विक्रम" के अपमान को भूल नहीं पाई।
Act 2
संघमित्रा के मा दुर्गा देवी जिनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। कई सालों बाद वह घर आई, उन्होंने राजनीतिक लोगों की कई खुफिया बाते और डिप्टी सीएम इंद्रदेव सिंह के बारे बताई की कैसे इंद्रदेव सिंह आईपीआई को आज तक जिंदा रखा। उन्होंने संघमित्रा को ये भी बताया कि कैसे वो लोग बिना सामने आए  महत्वपूर्ण और गोपनीय खबर  देने के लिए अख़बार में निकलने वाले राशिफल का और उसमें छपने वाले कार्टून कि मदत लेते है।
संघमित्रा से विदा लेने के बाद उसकी माँ दुर्गा देवी अपने पति से मिलने विधानसभा जा ही रही थी कि कुछ अज्ञात लोगों ने उनकी रास्ते मे हत्या कर दी और उनसे कुछ जरूरी जानकारी लेने के बाद विधानसभा में हमला कर दिया । इंद्रदेव सिंह की जान बचाने में जिला जीत सिंह शहीद हो गए ।साथ ही इस गोली कांड में मुख्यमंत्री संग्राम सिंह की भी मौत हो गयी।
इंद्र देव सिंह को राज्य का मुख्य मंत्री बनाया गया और राजा संग्राम सिंह के जेष्ठ पुत्री प्रियंका सिंह (38) को राज्य का नया डिप्टी सीएम बनाया जाता है, जो कि विक्रम का सौतेली बहन है।
संघमित्रा इस बात से बेहद आहत है कि,मुख्यमंत्री बनते ही इंद्रदेव सिंह ने जिलाजीत और दुर्गा देवी  का एक शहिद स्मारक और संघमित्रा को नौकरी देने का वादा किया लेकिन अपने वादे को पूरा नहीं कर पाए ।
विक्रम को भी अपने पारिवारिक दबाव के कारण राजनीति में आना पड़ा क्योंकि उसे यही लगता है कि उसके पिता की मौत के पीछे इंद्रदेव सिंह और उसकी बहन प्रियंका की अहम भूमिका हैं।
एक रैली के दौरान मुख्यमंत्री ने वीरपुर गांव को इंडस्ट्रियल हब बनाने के साथ वहाँ एक भव्य सैनिक संग्रहालय बनाने का वादा किया ।
संजोग वश संघमित्रा की जमीन भी अधिग्रहण क्षेत्र में आ गयी जहाँ इंडस्ट्रियल हब बनाना प्रस्तावित था ।
"संघमित्रा" किसी भी कीमत पे अपनी जमीन नहीं बेचना चाहती थी । उसने अपने कुछ साथियों को लेकर भूमि-अधिग्रहण का विरोध करने लगी ।
एक ऐसे ही विरोध प्रदर्शन के दौरान "विक्रम" की "संघमित्रा" को देखता है और उसके बदले हुवे तेवर और रूपरंग से बेहद प्रभावित होता हैं।
दूसरी तरफ डिप्टी सीएम "प्रियंका सिंह" बड़े पैमाने पे भू-माफियाओं के साथ साठ गांठ करके वीरपुर की काफी जमीनें हड़प लेती है।
"संघमित्रा" सरकारी फरमान का पुरजोर विरोध करती है तो प्रियंका उसे पुलिस, और माफियाओं के बल पे डराने, धमकाने और उसका रेप कराने की कोशिश करती है । उंसके साथ कई तरह के अमानवीय अत्याचार किये जाते है। उंसके खेतों को जला दिया जाता है और मवेशियों को काट दिया जाता है ।
कुछ किसान संगठन, मार्क्सवादी पोलित ब्यूरो और जेएनयू के छात्र संघमित्रा के समर्थन में आते है लेकिन वो भी पैसे और पावर के आगे झुक जाते है और उलटे संघमित्रा से विरोध वापस लेने के लिए दबाव बनाने लगते है।
संघमित्रा को ऐसे में उंसके कुछ दोस्त जैसे पूजा मंडल(26)जो उसकी हर बात को एक अख़बार के माध्यम से जनता के बीच पहुचाने का काम करती है, एक डॉक्टर विजय(34)  जिसने शपथ ली है कि वह किसी भी इंजरी में उसे मरने नहीं देगा और कुछ ऐसे बाहर से आये मजदूर  बच्चा (22) रिंकू(26)  शंकर (39)जो उसे हर बार छुपने के जगह देते है।
अब विक्रम जीत सिंह राजनीतिक समीकरण और मुद्दों को हाईजैक करने वाला एक माहिर खिलाड़ी हो चुका है। उसे संघमित्रा का दिल जीतने और उसके जमीन अधिग्रहण विरोध में एक राजनीतिक अवसर मिलता है, जो उसे प्रदेश की राजनीति में स्टेबलिश कर सकता है।
विक्रम अपनी पार्टी लाइन से अलग जाकर  अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए इस बात को पूरे राज्य में प्रसारित करता है कि मुख्यमंत्री राजा इंद्रदेव सिंह ने अपने वायदे को पूरा नहीं किया जबकि संघमित्रा के पूर्वजो ने 100 सालों से भी ज्यादा राजघराने की सेवा की।
विक्रम, संघमित्रा को अपना खुला समर्थन देने की बात कहता है लेकिन संघमित्रा विक्रम से किसी भी प्रकार की सहायता लेने से इनकार कर देती है। एक तो वह विक्रम द्वारा किये गए अपमान को भूल नही पाई है वही दूसरी बात कि, वह नहीं चाहती कि उसके और मुख्यमंत्री के बीच मे जो तकरा है उस बात का कोई तीसरा व्यक्ति फायदा उठाए। संघमित्रा विक्रम को दो टूक शब्दों में -पूरे मामले से दूर रहने की सलाह देती है।
विक्रम, संघमित्रा की बात सुनकर  लौट तो जाता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे लोगों को इस बात के लिए उकसाता है कि वो लोग अपनी जमीन सरकार को औने पौने दाम में ना बेचे। 
संघमित्रा भी अब विक्रम के इस आदर्श वादी और ईमानदार छवि से प्रभावित होती है। और उनमें थोड़ी बहुत बात शुरू होती है।
संघमित्रा को ये अहसास होता है कि विक्रम ने जो भी उंसके साथ किया वो लॉयल इंसान की निशानी है जो किसी कीमत पे अपने आदर्शों और मूल्यों के साथ समझौता नहीं करता । अब उसके दिल मे विक्रम के लिए पहले जैसे कड़वाहट नहीं रहती।
संघमित्रा के विरोध प्रदर्शन से प्रभावित होकर कई लोग अपनी ज़मीन नहीं  बेचते । ऐसे लोगों का एक समूह संघमित्रा के साथ खड़ा हो जाता है जो भूमि अधिग्रहण का विरोध करता है।
मुख्यमंत्री को लोगो के भारी आक्रोश और संघमित्रा के बैक ग्राउंड के बारे में पता चलता है ।
विक्रम के दबाव में डिप्टी मुख्यमंत्री प्रियंका सिंह ,किसानों को जमीन का चार गुना मूल्य और मुख्यमंत्री इंद्रदेव सिंह, संघमित्रा की ज़मीन पे शहीद संग्रहालय बनवाने के लिए राजी हो जाते है ।
संघमित्रा को जब ज्ञात होता है कि सरकार उंसके माता-पिता के सम्मान में उसकी जमीन पे ही शहीद संग्रहालय का निर्माण करना चाहती है तो वह अपना विरोध प्रदर्शन वापस ले लेती है। वहीँ बाकी लोग अपनी जमीन का चार गुना मूल्य पाकर खुश हो जाते है।
पार्टी के आंतरिक कलह को शांत करने के लिए  "पार्टी हाई कमान विक्रम को राज्य का डिप्टी मुख्यमंत्री बनाती है क्योंकि विक्रम ने संघमित्रा के मुद्दे को उठाकर अपनी ही  मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनो को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
वही प्रियंका द्वारा किये गए करप्शन और संघमित्रा पे किये गए शोषण का भी कच्चा चिट्ठा सबके सामने हैं मुख्यमंत्री को जब इसके बारे में पूरी जानकारी होती है तो वह प्रियंका सिंह को आखरी चेतावनी देते है ।
प्रियंका डिप्टी सीएम के पद से हटाये जाने के बाद से बेहद आहत है और सरकार गिराने का प्रयास करती है । उसे पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता है।
Act3
संघमित्रा को एक पोलिटिकल जर्नलिस्ट "पूजा मंडल" से ये पता चलता है कि विक्रम ने किस तरह जमीन अधिग्रहण और उसका फायदा उठा कर उपमुख्यमंत्री बन गया ।
संघमित्रा अपनी सारी जमीन बिना एक पैसा लिए सरकार को दान दे देती है।
सरकार, संघमित्रा को इस नेक काज के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार देने की घोषणा करती है लेकिन वह राष्ट्रपति  पुरस्कार को भी लौटा देती है। वह अपनी पैतृक संपत्ति के एवज में किसी भी प्रकार का मूल्य या पुरस्कार लेना अपराध समझती है
संग्रहालय के शिलान्यास के दिन मुख्यमंत्री राजा इंद्रदेव सिंह राजधर्म का पालन करते हुवे  संघमित्रा को संग्रहालय का आजीवन चीफ क्यूरेटर नियुक्त करते है ।
इसी समारोह में  विक्रम संघमित्रा से अपने प्रेम का इजहार करता है संघमित्रा उसे ढोंगी और स्वार्थी बताती है और उसके प्रेम को अस्वीकार कर देती है।
वह विक्रम को बेज्जत करती है ,संघमित्रा का दिल ये बात मानने को तैयार ही नही होता कि विक्रम बिना किसी लाभ के उस जैसी साधारण लड़की से प्रेम कर सकता है।
विक्रम उसे समझाने का प्रयास करता है कि "जमीन का चार गुना मूल्य और तुम्हारे माता-पिता का सम्मान दिलाने में अगर मुझे भी राजनीतिक फ़ायदा हुआ है तो इसमें गलत क्या है। राजनीति में ऐसे दाव पेच किये जाते है।"
संघमित्रा विक्रम को याद दिलाती है कि कैसे उसने ईमानदारी और देश भक्ति की आड़ में उंसके पिता की बेज्जती की थी और उसे आर्मी सलेक्शन में रिजेक्ट कर दिया था" और अब उसकी नैतिकता और आदर्श कहा है, जब उसने दाव-पेच करके अपनी राजनीतिक लालसा पूरी की है। विक्रम लज्जित और अपमानित होकर वहाँ से लौट जाता है।

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