मेरा नाम "जीत सिंह" है (15)
मेरे घर परिवार से हमे दो चीजें विरासत में मिली है। नंबर एक, जाति से क्षत्रिय है और हमसे छोटी जातिय तो छोड़ो बड़ी जाती यानी ब्राह्मण की भी हमसे फटती है।
दूसरा ये की "खून खराबा तो खून में है" ।
स्वाति(15) को हम दिलो जान से चाहते है लेकिन उसने हमें अभी तक फ्रेंड जोन कर रखा है । इसकी तीन वजह है।
पढ़ने में हमसे ज्यादा तेज है बुजरी वाली
फिल्में बहुत देखती है और उन फिल्मों से उसकी बहुत फटती है जिसमें उसने देख रखा है कि ठाकुरों के लड़के छोटी जाति की लड़कियों को या तो प्यार में,या जबरन उठा ले जाते है और साले प्रेग्नेंट कर देते है ।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण ये की उसकी मम्मी खुद एक क्षत्रिय कन्या है, लेकिन एक शिड्यूल कास्ट यानी स्वाति के बाप से शादी करने के कारण उनके परिवार वालों ने उन्हें जिन्दा जलाने की कोशिश की थी। और स्वाति के बाप को तो लगभग मार ही दिया था।
Act 2
अब सीधे मुद्दे पे आते है स्वाति के प्यार में हम अपने घर का लैटरीन साफ किये , सीवेज का ढक्कन खोल के पप्पल मेस्तर के साथ अंदर गए साला हमको तब पता चला कि एथेन- मेथेन गैस और मलमूत्र कैसे इकठ्ठा होकर पाइप में सड़ता रहता है। बदबू से हम तो मर ही गए होते अगर पप्पल (19) बचाता नहीं हमे । पप्पल, मैला पाइप को कैसे साफ करता है, ये हमे तब पता चला और पप्पल को हम पप्पल भाई कहने लगे ।
यहाँ मणिकड़िका घाट पे डोम लोगों के साथ लकड़ी काटे और उठाये, जिसपे लिटा के मुर्दा फूंका जाता है। और तो और गंगा आरती देखने आए लोगों को, ढक्कन मल्लाह की नाव पे बिठा के घुमाए ,हाथ बहुत दुखता है, कभी चप्पू चला के देखिए, गांड फट जाएगी । इसके अतिरिक्त भोसड़ी का हम" प्यार कैसे करे" वाला 21 दिन का कोर्स भी किये । उसके बाद हम स्वाति की इज्जत बचाये जब बुट्टन शुक्ला(26) उर्फ बोतल भईया ने उसे और उसकी साइकिल दोनो को बीच सड़क रोक रखा था ।
तब हमको पता चला कि बाहर से अंग्रेजी में बोलने और इतनी सख्ती करने वाली स्वाति कुमार अंदर से कितनी दब्बू है ।लेकिन जब हमको अपने यार नीलकमल से ये पता चला कि स्वाति छोटी नहीं अति छोटी जाति से आती है तब हमारे पूरे मूड की मईया हो गयी। कलाकंद बर्फी जैसी सफेद कन्या शेड्यूल कास्ट है, हम भी कैसे समझते, आजतक ब्राह्मण को माथे से, क्षत्रिय को चौड़ी छाती से और बाकी सब छोटकी जातीय के लोगों को उनके रंग से या ये समझिए काले रंग से ही जज किये थे।जजमेंटल होने में हमारी लंका लग गयी और हमारा प्रेम हमारा "प्रेम कांड हो गया।
हम स्वाति से बात करना बंद किये तो, बुजरी वाली एक दिन मोहल्ले में आ गयी रहने, और गुंडई देखिए मेरे ही बगल वाला प्लाट उंसके बाप ने खरीद लिया, अब हमारे मोहल्ले में ही किराए पे रहने लगी, ताकि उसके पापा मकान जल्दी बनवा सके।
स्वाति को तो मुझ पे पहले से ही अविश्वास था कि, साला हम जरूर उस दिन पीछे हट जाएंगे जिस दिन हमे पता चलेगा कि वो छोटी जाति की है । लेकिन साला हमारे ऊपर ही शनिचर सवार था कि उसे बोलते रहे की, हम उसके लिए किसी की भी गांड मार सकते है।
Act Three
एक दिन घुप रात में आकर हमसे सीधा गले लग के रोने लगी । हमको भर पेट गाली भी दी, दो तीन बार हमारा बाल नोचा और नाखून मारा जो हमारे गले पे बहुत जल रहा था बहुत विषैला नाखून है उसका। हम भी एक झापड़ मार दिए लेकिन उसके गाल पे सही से लगा नहीं । उसने बोला कि वो सारे टास्क जो हमने उसके प्यार में किये वो सिर्फ इसलिए थे ताकि उसे पक्का यकीन था कि हम साले ठाकुर होकर तो वो सारे काम कभी नहीं करेंगे लेकिन हम बकचोद सब कर दिए और लड़की को हमसे प्यार हो गया।
उसने हमें मैगजीन दिखाई जिसमे उंसके प्रश्न का उत्तर था और ये भी की उसने हमसे वो सारे काम क्यों कराए।गृहशोभा मैगजीन में निकलने वाले कालम जिसमे मनोवैज्ञानिक , प्रेम, और स्त्री परामर्श वाले कालम है ।
वो एक सवाल भेजती है । वो अपनी उम्र बढ़ा के ये सवाल पूछती है क्योंकि ये वयस्क लड़कियों की पत्रिका है।
"मैं एक 21 वर्षीय बालिका हूँ। एक लड़का मुझसे बहुत प्यार करता है मुझे भी वह अच्छा लगता है लेकिन मुझे उसकी बात पे चवन्नी भर भी भरोसा नहीं । मैं क्या करूँ"
जवाब कुछ ये आता है
स्वाति जी एक कहावत तो आपने तो सुनी ही होगी।"साँप भी मर जाये औऱ लाठी भी ना टूटे" आप उस लड़के से वो काम कराइये जिसे वो बिल्कुल भी पसंद नहीं करता अगर वो काम करने में सफल रहता है तो वो सच मे प्यार करता है अन्यथा वो अपने आप ही आपसे दूर जाने में अपनी भलाई समझेगा
Wednesday, December 19, 2018
लड़कपन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment