Monday, December 11, 2017

सूचना क्रांति और प्यार


किसी जमाने में
कन्या को प्रेम पत्र देना और जान की बाजी लगाने में कोई विशेष अंतर ना था।
लेकिन दौर बदला
गुलाबी गुलाब ,इत्र में डूबा ख़त और 5 रुपया वाला डेरी मिल्क । 90 के दशक तक ये फॉर्मूला माशूक और उसकी सहेली को रिझाने के लिए रामबाण हो गया। उदारवादी दौर में प्यार जैसी अमूल्य चीज भी बहुत सरल और सस्ती हो गई। आज इस कीमत में प्यार तो भूल ही जावो
Fb पे माशूक का लोल वाला कमेंट और अँगूठा छाप वाला लाइक मिल जाये वही
#हैशटैग बड़ी बात है।
सन 2000 के बाद सबकुछ  बदल गया। मोबाईल फोन से बात ही नहीं “ इजहार ए मोहब्बत ” करना भी बहुत ही सरल और सुरक्षित हो गया । आम आशिकों के लिए ये बड़ा ही मिक्स दौर था। ये उन शुरूआती दिनों की बात है। जब मोबाईल फोन आशिकों की जेब में और इंटरनेट उनकी पहुच में आया। इस दौर में आनलाइन फार्म भरने के अलावा लोग दिल्लगी करने भी साइबर कैफे जाने लगे थे। फेस बुक धीरे धीरे आरकुट की जान ले रहा था। और प्रेमपत्र देने की रिवायत आखरी सांसे ले रही थी।
ज्वलंत कहता है कि
उस दौर में प्यार के नाम से पुरा कोर्स चलाया जा रहा था । सिलसिले वार तरीके से समझने  की कोशिश करते है  ।
सुपर सीनियर दीदी ,छोटी बहन और कन्या की परम सखी को केंद्र में रख कर , प्रेम समीकरण बनाये जा रहे थे।प्रेम त्रिकोण यानी love tringle भी इसी गणित का एक हिस्सा था। जिसको बॉलीवुड वालों ने खूब भुनाया।
इसमे  फायदा कम था  लेकिन नुकसान ना के बराबर था। अमूमन इस दौर में भी लड़किया ,प्रेम जवाब यानी love answers देर से देती थी। काल और साल के बीच आशिक़ ,"हा"या "ना" की  तलाश में एक ही जगह सिकुड़ के रह जाता था।  दुश्वारियों का अंत  नही था । सालों साल लड़की की हा और ना के बीच
लौंडों को अक्सर ,"ना "ही सुनने को  मिलती थी।
और बहाने भी चिंदी चोर वाले थे।
मेरी मम्मी बहुत बीमार है
पापा लड़का ढूंढ रहे है
भइया को पता लग गया है कि मैं तुमसे बात करती हू।
हमारे यहां इंटरकास्ट शादी नहीं करते
तुम मुझे भूल जावो
और सबसे धांसू
मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मुझसे कभी बात मत करना।
लौंडों को बिना माल पटाये सीधे सीधे सौदेबाज़ी में लगभक यही हासिल होता था।
इसलिए लौंडों में प्यार से पहले माल पटाने की परंपरा का विकास हुआ।
ताकि लड़की भविष्य में "ना" भी बोल दे
उसे पहले , आप उसके हाथ और कंधे तक पहुच जाते थे।
थोड़ी सिरियस और सबकुछ नॉन सिरियस बाते बोल लेते थे।
बाइक नचा के उसके साथ बारिश में घूम आये थे ।
और कई सिनेमाई मौकों पे , चिपक के,  उसके हाथ का पकड़ना और झटकना , दोनों का आनन्द ले चुके थे।
ये सबकुछ प्यार के बराबर तो नहीं था ,लेकिन जब दिल टूटे तो जीने का सहारा जरूर था।
आगे इसी क्रम को अवरोही क्रम में  समझने की कोशिश करते है।
चरण एक -
लड़कियो को प्यार से पहले पटाया जा रहा था । शुरुआत लड़की के घर का पता , उसकी प्रिय सहेली , और उस छबीले लोण्डे की रेकी करने से होते थी , जो दिन रात स्कूल की लड़कीयों से गप्पीयाता था । सहेली और घर का पता तो ठीक है , लेकिन उस छबिले लड़के के विषय में थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करते है।
चाल में लचक , आवाज में मासूमियत , चहेरा साफ सुथरा
लकड़ियों से रुमाल, टिफिन , किताब और नोटबुक बेधड़क मांग सकता था। लेकिन स्कूल में बाकी लड़कों के साथ सू सू जाने , और सामूहिक धार मारने में शर्माता था। 
लड़कियों के घर जाने में तनिक भी संकोच नहीं करता था । और घर वालों में भी अच्छी पैठ रखता था।
( नोट - मम्मी दिदी ताई से निकट और घर के मर्दो से थोड़ा सा नरबसाया हुआ लगभक दूर रहता था)
छिनार लौण्डों को दूर से ही सूंघ लेता था । और उनसे दूर ही रहता था। क्योंकि उनकी हरकतों से उसे यौनशोषण की बू आती थी।
लगभक हर लड़की लड़के से हसी मजाक और सबके बारे में आशिंक लेकिन सटिक जानकारी
जैसें रजनी को ब्लू और बेबी को बेस पंसद है
प्रिया के पापा दरोगा है
पूजा का भईवा गुटखा खाता है
और स्कूल के सुपर सीनियर्स, पासआउट लोग , पहाड़ पे जाके सिगरेट पीते है ।
ज्वलंत ने, जमाने को इतने कायदे से देखा की , " कुछए "की चाल से हो रहे बदलाव को भी समझने में कामयाब हो पाया।
घर का पता सहेली से दोस्ती और छबिले लौण्डें की सटिक जानकारी होने के बाद। लौण्डें उन महापुरुषों की शरण में जाते  थे ,जो अपने अपने दौर के रंगबाज यानी प्लेब्याय और गजब के गुरु घंटाल हुआ करते थे।
इनकी रंगबाजी को कस्बें में  किसी ने नहीं देखा लेकिन किस्सों में इतना दम था की ,25 किलों का शितला प्रसाद 58 किलों की गीता को हड़का के आता है कि
एक दिन तुमको मण्डप से उठा लूंगा।
रंगबाजी के कुछ वचन , जिसको हर लौण्डें को आत्मसाथ करना होता था।
सीधे रंगबाज़ों की महफ़िल से लाइव बताए जा रहे है।
रंगबाज़ कहता है-
लड़की से पहले उसकी सहेली को सहला दो , इटमीन्स की गाढ़ी दोस्ती कर लो।
कन्या से सेंटिंग होने के बाद अपने ही यार से उसकी सहली की सेंटिग कराने का एग्रिमेंट साईन कर लो
गिफ्ट ,गुलाब  , चॉकलेट,  सिनेमा पे सहेली का भी हक होगा ये बताने में जरा भी देर नहीं ....
सहेली को घरवालों के इतर सौदो, सिटियाबाजों, और छिनारों से बाहरी सुरक्षा की पुरी गांरण्टी दो ।
दो चार लौण्डों को सहेली के आसपास ही रखों ।
लौण्डें- गुरु खर्चा और उर्जा काहे वेस्ट करा रहे है । मुद्दे का हल दिजिए ...
रंगबाज- भोषड़ी के
अगर दिल टूटा तो शर्तीया वहीं माल बनकर जपानी तेल लगाई गी  ...ये वहीं माल होती है , जो दिल टूटने पे फ्री मिलती है।

(नोट- लेखक  लेखन में सिनेमेटिक लिबर्टी ले रहा है। बिल्कुल वैसे ही जैसे परिवहन वाले गिरियाते हुवे जाम से बस निकालते है। जिसपे आप सवार रहते है ।अभद्र शब्दों को दूर से जाने दे )
किसी ने फैक्क यानी फ्रिंक्वेटली आस्क क्यूश्चन किया।
अरे गुरू हमारे यारन का क्या ...वो क्या दूखी नहीं होगे हमारा दिल टूटने से।
रंगबाज़ - भोषड़ी के
वो सिर्फ गले तक दारू पिएगे , छहिएट करेगें और ज्यादा से ज्यादा कन्या के भइवा का  पिछवाड़ा तोड़ देंगे।
फाईनली फंसो गे तुम ही
दिल के मामले में दोस्तों की सलाह से बचो। बकचोद..
लौण्डा – कसम से गुरू । फाड़ू ज्ञान था.. रंगबाज मध्यमगति,(medium Peace) से मुस्कुरातें हुए आगे बताता है।
लड़की से बात करते समय बुंलद रहो ,शर्माओं मत
खुल के किताब नोटबुक मांगने से शुरुआत करो। और दिखाओ की महान बकचोदिया करने के बाद भी, तुम्हारा मन पढ़ने में औऱ किताबों में ही लगता है।
कालेज के बाहर की टेरिटरी , यानी घर ,दूकान , नुकड़ ,बसस्टाप , मेला,  प्रर्दशनी के बाहर गलती से ही ,बार बार कन्या को दिख जाओ.
सीधा सामना हो जाए तो मम्मी को नमस्कारी और बहन को हाय बोल देना
फैक्क- गुरु कन्या का क्या उससे कुछ ना बोले...
रंगबाज- बुजरी वाले
उसकी आखें ही सबकुछ कह देंगी। गालो पे गुलाबी मुस्कुराहट मां के साथ थोड़ा लजाई हुई भी रहेगी। लेकिन ये सिम्टम्स तुम्हारे काम के होगें। लेकिन सावधान ये सिम्मटम्स ना दिखें तो समझों बाप भाई भी आसपास ही है ।
सीधे सरपट वहां से चेतक हो लो।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रंगबाज़ का जोरदार चियरप..
तुरंते अंटे से  रुप्या निकाला गया।
एक सिगरेट 8 समोसा और 3 चाय का आर्डर प्लेस किया गया ..आगे की कहानीं इंटरवल के बाद यानी चाय समोसे के बाद

वीडियो एडिटिंग में महारत होने की वजह से ज्वंलत दुनिया को अलग नजर से देखता है । वो कहता है
हर सेकेंड में जीवन के 25 फ्रेम होते है यानी  हर सेकेंड में जीवन की 25 तस्वीरे । हम चाहे तो अपनी लाइफ को इतनी बारीकी से देख सकते है ।
और उसमें इतना बारीक फेरबदल कर सकते है कि किसी को पता भी ना चले। वो बातों को भी पिरामिड मेथड  और दृश्यों के सिनेमेटिक माध्यम से सुनाता है । इसलिए अब वो रंगबाज़ और लौंडों को बीच में छोड़ कर  दूसरे दृश्यों की तरफ बढ़ जाता है। उसका मानना है कि एक ही बात एक ही किरदार जादा देर तक पर्दे और बातों में रहे तो ऑडियंस बोर होने लगती है ।
दृश्य 2
ज्वलन्त कहता है की
हमारे जमाने में भी कन्या और उनकी सखिया प्यार करने से अभी बहुत डरती थी। लकिन ये जरुर चाहती थी कि कोई उनसे भी प्यार करे।
लड़किया लड़कों को देख कर शर्माती और इतराते भी थी लेकिन इतना भी नहीं की लड़के ताड़ जाए ।
प्यार इतना कॉन्फिडेशियल और क्लासिफाईड था कि बगल में सोने वाली छोटी बहन ,राह चलता भाई ,और हर वक्त जवानी पे नजर रखने वाली मां को भी ,
इस बात की भनक नहीं लगती थी कि लड़की प्यार में है।
लड़कियों के लिए आज भी घर के अलावा स्कूल में
कुछ छुट पूट म्यूचल सखिया कम्यूनिकेसन का मीडियम हुआ करती थी , और स्कूल की किताबों में गुलाब छोड़ जाने वाले लावारिस आशिक । ये लावारिस आशिक वो लौण्डें हुआ करते थे, जिनमें हिरोईस्म और फेंटेसाईस करने का हुनर कम था । उबड़ खाबड़ से दिखते थे। लड़किया इनको च्वनीछाप समझती थी। भाव देना तो दूर  मालिक। अपने भाव को ही शून्य कर लेती थी ।
ज्वलंत की नजर से
आने वाले हरजाई वक्त में, बिना किसी लाग लपेट के , यहीं लावारिस आशिक, उन तमाम लड़कियों के भावी वर बने । जिनको देखकर उन्हें कभी उल्टी तो कभी घिन्न आती थी।( नोट जरुरी नहीं की वहीं लावारिस आशिक जो स्कूल कॉलेज में था । ये कोई भी हो सकता है लेकिन बिल्कूल वैसा ही जैसा कि लिखित चित्रण में समझाया गया है)

समाज का बदलाव अक्सर बहुत महीन चाल चलता है।
किसी को पता तक नहीं चला की ये लवारिस आशिक कब पढ़ लिख के सरकारी, अर्ध सरकारी और प्राईवेट सेक्टर में अपनी तरह के डाक्टर इंजीनियर और बैंकर बन गए। और समाज की प्रतिष्ठित मुख्यधारा में शामिल हो गए। समाज ने भी उनका अभिनंदन किया । और ये वरदान दिया की किसी भी खुबसुरत लड़की पे पहला हक उनका ही होगा। लड़किया पुरे गाजे बाजे के साथ उनके घर तक आएगी , वो भी बिना किसी शर्त। पैसें की चमक और शख्सियत का सम्मान हो तो ,फिर क्या कुछ नहीं किया जा सकता । चेहरे का रंग रोगन हो गया , उबड़खाबड़ मुखड़े को समतल और बालों को करिश्माई तरिके से काटा और सवारा गया। कन्या के पिता से झुक कर पल्गी क्या हुई,
घर आने का निमंत्रण मिल गया ।
और सीधे मुहं पे गरियाने वाला लड़की का भइवा जीजा ना भी बोले, पर भईया भईया कर के चिचियाने लगा। गजब का ताबड़तोड़ परिवर्तन आता है समाज में , जब कोई लावारिस आशिक डाक्टर इजीनियर या बैंकर बनता है।
सामाजिक भेदभाव का सारा ठिकरा और बालतोड़  फुटा तो सिर्फ जवान , तेज ,आहत, आशिकमिजाज और रंगबाज लौण्डों पे ।
ये दौर सच्चे आशिकों की साख पे बट्टा और सख्या में गिरावट ला रहा था।
अब भारी सख्या में इंजीनियरिंग ,मेडिकल और एमबीए कॉलेज खुल रहे थे ।  सीधी भर्ती और 100 प्रतिशत प्लेसमेंट का दम भरते विज्ञापन , जहां तहा टंगे और लहराते दिख रहे थे।  लौंडों ने सस्ती लोकप्रियता , सामाजिक प्रतिष्ठा और पारवारिक गुंडागर्दी के आगे घुटने टेक दिए । और ऐसी ही  किसी संस्था में जाकर  दाख़िला ले लिया , जो मैनेजर डॉक्टर इंजीनियर बनाने का सिर्फ और सिर्फ भ्रम फैला रहे थे।
इनमे से कुछ तो ऐसे थे , जिन्होने बार बार कई बार लगातार अपना चूतिया कटवा लिया । क्योंकि ये एम बी ए होल्डर , बी टेक धारक डॉक्टरेड से विभूषित थे। इन शॉर्ट शायद कुछ भी नहीं थे। उनका भविष्य कुछ ऐसा था
रातजग्गा करने वाले चौकिदार बने
घंटी बजाने वाले प्यून बने
कुछ सड़कछाप गीतकार संगीतकार बने
तो कुछ हीरो बनने बम्बई चले गये।
इन सब के बीच
कुछ ऐसे प्रतिभावान थे ।जो इंजीनियरिंग के बाद आजतक आईबीपीएस और बैंकिंग की तैयारी कर रहे है।
कुछ ने एम बी ए के बाद  पीएचडी की और जो पानी कम थे बीएड बीटीसी करके फ्री भर्ती एवम पहले आवो पहले पावो वाली योजना के इंतज़ार में बैठे है।
ऐसे बिगड़े हालात  शायद कुछ भगवान की, या फिर कुछ फुद्दू  क्रोमोसोंम की गलती थी । लेकिन यक़ीन मानिए उस दौर में ऐसा सच मे हो रहा था।
अब प्यार ,अहसास ,और छुअन के मायने बदल रहे थे। और इसी क्रम में इमरान हाशमी, गले की छुअन वाले अहसास को ओठों तक लाने में कामयाब हो पाए । लिपलॉक ,फ्रेच किस और लिपकिस जैसें ,"कानफिडेशियल "शब्द बड़े आराम से बोले और समझे जाने लगे ।
इसी दौर में
क्या तुमने बीएफ देखी है ?और क्या तुम वर्जिन हो? जैसें सवालों ने पहली बार एक लड़की ,जैसी तमाम लड़कियों को झकझोर दिया । क्योंकि इस देश में अब तक, लड़किया या तो विदाउट सेक्स कुंवारी होती थी । या फीर सेक्स करने वाली शादीशुदा आर्दश महिला । बदलाव के इस दौर में लौण्डें पइसा मसक के मोबाईल फोन दनादन खरिद रहे थे । तो वही दूर पढ़ाई करने वाली कन्याओं को सुरक्षा की गांरटी मानते हुए मोबाईल फोन बाटा जा रहा था।
आगे के कुछ और पन्नों में उस दौर को फिर से जीने की कोशिश करेंगे और ये जानने की भी कोशिश करेगे की नायिका और अपराजय को ऐसा क्या पता है ज्वलंत के बारे में जिसके सबूत कहानीं में भी नहीं मिल रहे है।
शायद ज्वलत भी कहानीं में एक किरदार ही है
या फिर । वो दौर ही ज्वलंत था। जिसमें नायिका और अपराजय जैसें करिदार अपनी वास्तविकता को बचाने में उसे ही बेच रहे थे ,जो वास्तविक था।

Friday, November 3, 2017

16 दिसंबर

16 दिसंबर की रात
दिल्ली में चलती बस में एक लड़की के साथ हुई बलात्कार और जघन्य यौन अपराध  की घटना के बाद सड़क से लेकर संसद तक महिलाओं के साथ बढ़ते अपराध के खिलाफ देश का हर शख्स उबल रहा था । तकरीबन 9 महीने तक चली इंसाफ की लड़ाई में  आरोपियों की घिनौनी हरकत की सजा मौत से कम नहीं थी ।
कोर्ट ने ओरोपियों को सजा ए मौत सुना कर दो टूक एलान कर दिया  कि महिलाओं के सम्मान और अस्मिता को हल्का समझने वाले भेड़िये अपनी खाल के साथ अपनी आत्मा को भी बदल ले । या अपने अंत के दिन गिनने  शुरु कर दे ।
16 दिसंबर की घटना के बाद ऐसा नहीं है कि देश में महिला अपराधों कमी आयी है ।
लेकिन हमे इस बात को भी नहीं भूलना  चाहिए की सरकार और न्यायालय ने कुछ ऐसे फैसले महिलाओं के हक में लिये है जो आने वाले दिनों उनके सम्मान और आजादी के लिए मील का पत्थर साबित होगें ।
हेल्प लाईन की नई पहल दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए शुरुआत की । इस हेल्पलाइन का नंबर 181 है जहांप्रतिदिन 3,000 से अधिक कॉल आती हैं ।
ऐसी पहल उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित कुछ दूसरे राज्यों में भी देखने को मिलीं ।
कड़े कानून -संसद ने बलात्कार विरोधी  विधेयक को पारित किया ।
नए कानून में बलात्कार या सामूहिक दुष्कर्म के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है । इस तरह का अपराध दोबारा करने पर अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि
बलात्कार से पीड़ित और अपराधी के बीच हुए समझौते को दोषी की सजा कम करने का आधार नहीं बनाया जा सकता ।  दिल्ली सरकार ने बलात्कार संबंधी मामलों के लिए सभी जिला अदालतों में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया ।
महिला सेल का गठन
दिल्ली के हर थाने में महिला पुलिस की नियुक्ति को अनिवार्य किया गया है ।
महिलाओं से संबंधित मामलों की जांच अब महिला पुलिस अधिकारी ही करेगी ।
घूरना ईवटिसिंग भी बना अपराध
नए कानून में महिलाओं के घूरने और पीछा करने जैसे मामलों में , दूसरी बार के अपराध को गैर जमानती जुर्म बनाया गया है ।
तेजाब हमलों पर भी कोर्ट सख्त
महिलाओं पर तेज़ाब हमला करने पर दस साल तक कारावास का प्रावधान पास हुआ है ।
ये पोस्ट 2012/ 13 का है आज कुछ याद आया तो रिपोस्ट किया है । स्मृत कुमार

Monday, September 4, 2017

कलाकार

तेरी नजर में मै स्मार्ट नहीं लेकिन स्मार्ट वर्क करता हू तुझसे ज्यादा तरी जरुरतों को प्यार करता हू
सच्चा प्यार हू तुम्हारा बेकार समझती हो तुम मुझे दूसरो की शौहरतो से तौलती हो तुम मुझे
आज वो सब मिल भी जाए तुम्हें तो क्या होगा किसी अमीर जादे की बाहों मे सिमट जाने से क्या प्यार होगा
क्या वो तुम्हारे दिल जज्बात को समझ पायेगा मेरे जैसे तुम्हारी हर आहट को महसूस कर पायेगा
चहरे पे हसी के फूल खिला पाएगा
तुम्हारे लिए कभी जोकर तो कभी जादूगर बन पायेगा
नहीं ना
किसी के प्यार में गिर जाने की हसरत दौलत से कही उंची होती है
प्यार की दौलत हर दौलत से बड़ी होती है
प्यार करने पे इंसान कलाकार बन जाता है
तुम मेरी रचना हो मेरी आखों ने तुम्हें खुबसूरत बनाया है
मेरी बातों ने तुम्हें इतराता चांद बनाया है
मैने अहसास के रंगो से तुम्हारे हकिकत में रंग भरे है तुम्हारे आसूओं को छलकने से पहले रोका है
तुम्हारी हर खुशी को लाने में मैने हर दर्द सहा है
बेशक ये जीवन तुम्हारा है तुम मुझसे दूर जा सकती हो किसी अनजान से पहचान बना सकती हो
मुझे तन्हां छोड़ अपनी नई दूनिया बसा सकती हो
खैर दूनिया का दस्तूर ही ऐसा है ,
आपसे जो प्यार करे आप उसी को छलते हो
प्यार में खेलते हो, प्यार को ही खेल समझते हो
लेकिन हम तो कलाकार है
दर्द के रंगो से प्यार बनाते है टूटते तारे से खुशियों की हसरते बनाते है
आसूंओ में फरियाद के मोती बनाते है
जज्बात बनाते ख्वाब बनाते है
मैने तो तुमसे प्यार किया तुम्हारी खुशिया ही चाहूगा बोलने से पहले ही दूर चला जाओगा
लेकिन
खोया हमने नहीं तुमने है
जो प्यार बदलते है उनके रंग बदल जाते है
शोहरत की चमक में भी वो फीके नजर आते है ,फीके नजर आते है।

अ काबुलीवालाज बेंगाली वाइफ

जैसा कि अंदेशा सुष्मिता को पहले ही था कि कभी काबूली वाले की बंगालन बीवी को मार दिया जाएगा । 90 के दशक में , सुष्मिता की जद्दोजहद और आप बीती तो हम या हममे से कुछ जानते है । लेकिन जो मरहूम भारतीय लेखिका से बेखबर रहे , उन लोगो ने भी तालिबानियों की गोलियों से छलनी लेखिका के बारे में जाना ।
जो अबतक खामोशी से मौत की कब्रगाह जीवन की राह तलाश रही थी।
भारतीय मूल की लेखिका सुष्मिता बनर्जी की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।अफ्गानिस्तान के खरना में , 49 वर्षीय बनर्जी को उनके घर के बाहर ही दरंदिगी से कत्ल करके उनकी लाश को एक धार्मिक स्कूल में फेंक दिया गया । स्वास्थ्य सेविका के रूप में काम करने वाली बनर्जी, सईद कमला के नाम से भी जानी जाती थीं। वर्ष 1995 में बनर्जी द्वारा लिखी गई किताब 'अ काबुलीवालाज बेंगाली वाइफ' काफी लोकप्रिय हुई थी और भारत में बेस्टसेलर बनी थी। उनकी यह किताब अफगानिस्तान में उनके पति के साथ दर्द से सने पलों और तालिबान के आंतक औऱ जुल्मों से बचकर देश पहुंचने तक की घटना पर केंद्रित है। अभिनेत्री मनीषा कोइराला अभिनीत 'एस्केप फ्राम तालिबान' उनकी ही किताब से प्रेरित थी। 8 सालों के लंबे और रुह कपा देने वाली दास्ता को सह कर उसे शब्दो के टुकड़ो से समेटने वाली सुष्मिता आखिर फिर क्यों उसी दलदल में पहुंच गयी ...ये एक सवाल है जिसका जवाब भी उनकी मौत के साथ ही दफन हो गया। कोलकाता के एक बंगाली ब्राह्मंण परिवार में जन्मी सुष्मिता कोलकाता में ही व्यवसाय करने वाले अफगानी बाशिदे जाबांज खान के प्यार में पड़ गईं। वो दौर सन 89का था.. घर वाले खफा थे,.. उनके प्यार के खिलाफ थे लेकिन सुष्मिता ने अपनी हद से बाहर निकल कर प्यार की हद को छू लिया और शादी रचा ली।  अपने देश ले जाकर जांबाज खां , सुष्मिता को अपने घर वालों के बीच अकेला छोड़ ,  बिना कुछ बताए वापस कोलकाता आ जाता है । जिसके बाद शुरु होती है दर्द, छटपटाहट और बेबसी से सिमटी ...बेबस भारतीय नारी की दास्ता। जिसे सिर्फ सुष्मिता के ही शब्द बयां कर सकते थे ।
हम तो बस यहीं कह सकते है कि इस तालिबान का खात्मा , हमे हमारे मानवजाति को बचाने के लिए ही नहीं , अपने घरों को बचाने के लिए ,अपनी आजाद सोच को बचाने के लिए भी जल्द से जल्द करना होगा... वरना ये वीरान और सुनसान जगहों पर छिपे कायर हमारे घरो में घुस जाएगे । हमे ही नहीं हमारी पूरी आत्मा को भी नुकसान पहुंचाए गे। ये पोस्ट 2013 का है आज कुछ याद आया तो फिर से इसे री पोस्ट कर रहा हू । स्मृत कुमार

Thursday, August 24, 2017

चमत्कारी झालर

चमत्कारी झालर 

स्थान- काशी नगरी
मौसम - फागुन के बाद का , जब उत्तर भारत में लूह फ़िजाओ में बेपनाह रहती है । पसीना सूखता नहीं और प्याज नहीं खाया तो घर से निकलते ही  लूह मार देगी तड़तड़ा के ।
नाटक का सूत्रधार एक मलाई बरफ (बर्फ) अर्थात आइस क्रीम बेचने वाला है।
लकड़ी से बने और जूट के बोरे से ढके सन्दूक को काख में कस के, काशी की आवारा गलियों में घूम रहा है।

दृश्य 1

सूत्रधार- "ले ला तरावट बड़ा तरमाल हौ"
"अरे लेला हो लपालप"
अरे अरे लेबा की ना : देखा, कनखियाते कहाँ उड़ल जात हउवा
गुरू भांग वाला त जमा के जा ।
(बच्चे दिखे तो जीप लप्पलपा के महिलाओं के बीच नम्रता से और अधेड़ और नवजवानों के बीच ऐठ के बोल रहा है)

अब सूत्रधार काफी देर मलाई बरफ बेचने के बाद पक्का महल के किसी चबूतरे पे सुस्ता रहा है यदपि माथे का पसीना टपटपा रहा है। कमर पे बधी सुराही से हलक को जलमग्न करने के बाद दर्शकों से मुखातिब होता है।

जी हा साहिबान ये शहर बनारस है ।  बात एक ,मगर तड़क के, झटक के, मेलह के ,सलेह के, बोलने से बात का मतलब बदल जाता है।मामला, माल, चिरई, ठुल्ली ,नमकीन, मलाई ,लग्घड़ ,लेना देना ,ऐसे सैकड़ो शब्दों का प्रयोग कई अर्थो में किया जाता है।
यहाँ कोई किसी की परवाह नहीं करता कोई नहीं डरेगा आपकी औकात से , घण्टा कही के होंगे आप लार्डसाब, इहा बजता तो बस बाबा विश्वनाथ का है। पान घुलाये,चबूतरे पे तशरीफ़ सिकोड़ के बैठा, पगलेट सा दिखने वाला यह शख्स ,जिसे आप बहुत देर से बौड़म समझ रहे थे ,अचानक से उठकर आपकी हकीकत में ऐसे,ऐसे रंग भर सकता है जिसकी कल्पना भी आपने  नहीं की होगी। सांड भांड साधु सन्यासी के देश में ये एकलौता चित्रकार है ,जो चित्रों से चमत्कार करता है ।
कैसे, आइये खुद ही देखते है।

दृश्य 2
चित्रकार झालर गुरु  - ए माई लंगड़ा आयल का।
(माँ अभी चूल्हे में फुक मारे, करीयाह (कमर ) पकड़ के ऊठ ही रही थी की प्रवेश द्वार से एक आदमी का प्रवेश)

सिपाही धरम सिंह
( चहरे पे नाराजगी के भाव के साथ)
  हां । हू मैं लंगड़ा सब बोलते है , तुम भी बोलो लेकिन कभी ये लंगड़ा, काशी नरेश का सबसे तेज पैदल सिपाही था । एक फलांग में पांच पाँच  कोस नाप दिया करता था। लेकिन आज एक लाचार, लंगड़ा है जो भविष्य में यातायात डिपो के पास तीन पहिया साइकिल पे पान ,बीड़ी ,सिगरेट  बेचेगा ।

चित्रकार की माँ दुलारी देवी - बाबा इलाइची पल्स क गोली और चना जोर गरम भी गिन दा घासड़ी के
अरे इ तो पगला हौ पर तु कहे अचरज का चोदल हुआ।
दु दिना (दिन) से लंगड़ा आम मांगत हौ,
और खाये से पहले ही भुला जाथ हौउ।

सिपाही धरम सिंह ( भाव भंगिमा और शारीरिक ऐठन में भारी बदलाव करते हुवे सहज मुद्रा में) माँ की बात को जब्त करके झालर गुरु की तरफ देखते हुवे
क्षमा करना
क्या तुम्ही हो झालर गुरु
झालर - अरे ना बुजरो के हम तो बस झालर हई ,उ भी अनाथ ,गुरु उपनाम त हर बनारसी से चिपकल हउ।
सिपाही -बहुत सुना है तुम्हारे बारे में क्या तुम मेरी टांगे ठीक कर सकते हो।
झालर- पान की पिचकारी मारते हुवे।ई कौन बड़ी बात हौ। खण्डन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी।
जा राजा का गोटी जाके चबूतरा टिका ला।
(सामने रखी कुर्सी पे सिपाही बैठ जाता है और झालर अपने अन्टे से ब्रश निकालकर उसका चित्र बनाने लगता है।)
झालर - ए लघ्घड़ गुरु बूंद बूंद उठा।
सिपाही - अरे मै तो खड़ा हो गया। देखो मै तो चल भी रहा हो, तुम तो देवता हो ।आज से ये पैदल सिपाही तुम्हारा गुलाम हुआ ।मुझे अपनी शरण में लेलो, मुझे अपने पास ही रहने दूँ बस ये एक अहसान मुझपे और कर दो।
झालर -महादेव के कृपा से हम इ बूढी माइ के आसरे और अब तू बुजरो के हमरे आसरे । ए माई भभूत लगा के स्वागत कर अपने नया लइका के। आवा रजु पिछाड़ी सम्हार के।

थोड़ी देर बाद अवध के एक नवाब और उनकी  बेगम जान झालर गुरू के यहाँ तशरीफ़ लाते है ।
बेगम - बहुत आश के साथ आयी हूँ क्या आप अपने रंगो से मेरी सुनी गोद भर सकते है। बुरुश चला के बच्चे की किलकारी मेरे आँगन में सुना सकते है। हर पीर बाबा, मजार, दरगाह, मन्दिर में मेरी आरजू की अर्जी रखी है। क्या आप मेरी आरजू को हकीकत बना सकते है ।

झालर गुरु बुरुस चलाते है और स्त्री को मात्रत्व का सुख मिल जाता है।

थोड़ी देर बाद
लकड़ी की सलाई से स्वेटर बुनती बूढ़ी औरत और उसकी बेटी का प्रवेश
मेरी बेटी की शादी है झालर गुरु ,
कल मॉर्निंग तक बिटिया के गहने ना बने तो डोली नहीं अर्थी उठे गी मेरे घर से वो भी दो दो

झालर - अरे नयका ज़माने क ओल्डमौंक भौजी दोबारा पलट के देख ला कन्या के सज गइल गहना गीठो में।

दृश्य तीन
कशी नरेश का दरबार
राजा- महामंत्री। सैनिको के सीधी भर्ती के बिसय में कौनो खोज खबर
कब तैयार होंगे हमार यूनिवर्सल सोल्जर कब आएगी बफोर्स टोपे (तोपे)
मंत्री - घण्टा तैयार होंगे यूनिवर्सल सोल्जर
राजा - महामंत्री अभिये पटक के मारब तोहे बुजरी के....
अरे सरकार आप तो पिनक गए डोन्ट बी हाइपर ।
कूल कूल ठंडा कूल
नवरतन। काशी नरेस (नरेश) के केस में तेल लगावो
पंखा हाक रहा नवरतन काशी नरेश के बालों में तेल चपोड़ने लगता है।
राजा- बश बश रात में तकिया खराब हो जाएगी .
एक तो साला हम इस श और स बने सब्दों से  बड़े परेसान है ।
महामंत्री- मालिक स और श से तो आप क्या पूरा उत्तर भारत परेसान है । काशी में आपकी कृपा से बश आच भर है असली आग तो पाटलीपुत्र और नालंदा में लगी है । आज भी वहा लोग सड़क को सरक ही बोलते है ।
राजा- अरे छोड़ो ये डिक्शन की फिसलन
तुम यार महामंत्री विस्तार से सैनिकों की भर्ती के बिसय में शमझावो पहले
महामंत्री - क्या कहे काशी नरेश
आपके साले और वर्तमान सेनापति बब्बन गुरु ने तो अपने सगे सम्बन्धी और दोस्त यारन को सेना में भर्ती कर लिया है । जो दिनभर भांग पी के मस्त रहते है और रास्ते भर कन्याओ के साथ खालीपीली खिलवाड़ और छेड़ छाड़ करते रहते है।

राजा - महामंत्री ये खालीपीली तो बनारसी नहीं बम्बईया लगता है । डोंगरी में पाया जाने वाला शब्द है ।
महामंत्री- क्षमा करे महराज ये शब्द डोंगरी का नहीं भिंडीबाजार का है।
अच्छा ये शब्द मंथन छोड़िये आपको संज्ञान भी है की इस बार गोला बारूद का ठेका बब्बन गुरु ने किसको दिया है ।
राजा - महादेव बचाये इस बब्बन से
किस चांडाल को दे दिया है ठेका उजागर करो

महामंत्री -  गोला बारूद का ठेका दे दिया है महा दलाल पेलू पाण्डे को फिर कैसे बनेगी आपकी यूनिवर्सल सेना और कैसे होगा सिविल वार । आप केवल महारानी और पटरानियों के कोल्ड वॉर के मजे लूटते रहिये।
राजा- फिर हम क्या करे महामंत्री
साला नहीं हमारी जुबान का ताला है बब्बन ।
महामंत्री- एक उपाय है ।
राजा - अब क्या शार्ट कमर्शियल ब्रेक लोगे
बिना एड ब्रेक के उपाय  हाली हाली(जल्दी जल्दी) बतावो ।
महामंत्री - काशी नरेश राज्य में एक चित्रकार है जो की जी एफ एक्स तकनीक से लैश है । जो भी चित्र बनाता है साक्षात प्रगट हो जाता है।
दरबारियों में हलचल और सब फुसफुसाने लगते है कि ,भविष्य की तकनीक वर्तमान में कैसे ।

राजा -भांग क भनक त रहल हम्मे लेकिन आज गांजा चढ़ा के आया है क्या बे
महामंत्री - एक एक शब्द बिना हैंगओवर के बोल रहा हूँ काशी नरेश । फिर भी चुल मची है तो स्वयम चलकर देख लीजिये ।

राजा - ये बात है तो चलो फिर ।
दृश्य 4
महामंत्री और काशी नरेश साधारण मानस के भेष में झालर गुरु के पास पहुचते है।

राजा- कोसो दूर से आये है । भर्ती देने । सुना है काशी में सैनिकों की सीधी भर्ती चल रही है । लेकिन ना असलहा है ना घोड़ा ।
झालर गुरु - (मघई पान घुलाते हुवे )
तलवार चाही की भाला

राजा - ऐसी छपा छप तलवार बना दो  गुरु जो दुइ इंच सीना चीर के लहू पिए लागे l
महामंत्री - मुझे एक घोड़ा दिला दो जो चेतक के सामान सरपट सरपट भागे हुर्रर्रर्रर्रर्र..टकाटक टकाटक

झालर गुरु -खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी मंतर पढ़ चित्र बनाने लगता है ।
राजा के हाथ में तलवार आ जाती है और महामंत्री खुद को काले अरबी घोड़े पे बैठा पाता है।

दृश्य 5
राजा - महामंत्री  रात में , दो चार भगेड़ी नशेड़ी सिपाहियों का एक टास्कफोर्स गठित करो , जो खुफिया काम करने में माहिर हो और भेजो चित्रकार के घर ।
महामंत्री - इस काम के लिए हमे सेनापति बब्बन के लीडरशिप की जरुरत होगी महराज । अक्सर उनके सिपाही ठेठरी बाज़ार में टोटी, टंकी, लोहा ,लकड़ ,पीतल, कस्कूट बेचते नजर आते है ।

दृश्य 6
"बब्बन" सरसो तेल पोत पात के, भांग ठंडई छान के, घुप अंधेरे में नसेड़ी "भुतालि" के साथ पक्का महल कॉलोनी की और कूच कर देता है। 

चोर की की बंद जुबानी वाली चकक्लुस के बीच झालर की नींद खुल जाती है ।

झालर - चमगादड़ उल्लू की तरह शायद इन भूतों को भी रौशनी रास ना आती है।
काहे हमार रहस्यमय नींद में खलल का बीच बो रहा है बे, ऊभी अंनिहारे में
बेटा एक हुरा लगी तो अस्सी से दशसुमेत पे डुबकी समाधी ले लेबे। चल भाग इहा से

बब्बन - का करे झालर महराज हुमहो एक चितकबरा चित्रकार हई ।

झालर -बनारस में जेबरा (जेब्रा) कहा से आ गईल बे इहा त बस घड़रोज आवेला ।

बब्बन - रंग ,बुरुश ख़रीदे बदे पूजी में बस चिलर रहल । एहि बदे आपके घरे हाथ मारे आ गइली। इहा( यहाँ)  त रगंन का रेला बा और बुरुश का भंडार हउ । इ ही चकर में बौरा गइली और एक हाथ से रंग क शीशी छलक गइल।

झालर -धत गांडू , डोमड़े ,कुजड़े ,हत्यारे ,वर्णशंकर वैशाखनंदन इधर आ । ले जो इ कुल तामझाम लागलपेट अत्यन्त से तुरंत और पुलका ले अपने जिनगी के।
बब्बन सबकुछ समेट चम्पत हो जाता है
झालर - देखा बुजरी वाला भांग भबूत भी ना छोड़लस ।

दृश्य 7
राजा का महल- महामंत्री  का प्रवेश
सरकार का भोकाल टाइट रहे सरकार यूनिवर्सल सोल्जर  और मैट्रिक्स क सेना बनाये बदे आपन योजना सफल हो गइल ।
राजा- बकचोदी ना करा मशका मत छिड़का सीधे सीधे मामला बतावा घासड़ी के
चण्डाल बब्बन चित्रकार के घरे से पेल के मजे क रंग,भभूत, भाग, और बुरुंश का पिटारा ले के आयल हउ ।
राजा- अदभुत । आज बब्बन गुरु को पुरे दिन भांग ठंडई और अफीम पान से बमबम बूत कर दिया जाए ।
महामंत्री - दास के साथ प्रयोगशाला में मूव करे सरकार
छत्तीस चित्रकार कुल यूनिवर्सल सेना बनाए में लगल हउन ।
राजा - हमारा एयरफ़ोर्स रथ तत्काल तैयार किया जाये महामंत्री

दृश्य 8
राजा -  झटांस, झटांस ( अत्यंत क्रोध में)
झोली में झटासं नहीं बारी में डेरा
साइड से झांकता सूत्रधार - नोट झटांस किसी भी वस्तु को नापने की सबसे न्यूनतम इकाई को बोलते है)
राजा - महामंत्री यूनिवर्सल सोल्जर तो क्या एक पैदल सिपाही भी पैदा नहीं कर पाये इ तोहरे पावभारी चित्रकार और ऊपर से पान की पिच पिच से पूरी प्रयोगशाला पिचपिचा दिए है ससुरे

महामंत्री -  क्षमा करे महराज लगता है की जी एफ एक्स के गुण रंगो में नहीं उस चित्रकार के हाथो में है।
राजा - बुजरी के अब दांत ना निपरो  ,गुर्गो को बोलो, जाएं और धर के लॉए ससुरे को।

सारथी झटक के ले चलो हमे ठुमरी बाई की हवेली पे
पूरा मन "अंधेर नगरी चौपट राजा" हो गया।

दृश्य 9
(राजा का सभागार , हथकड़ियों में जकड़ा झालर)

राजा-झालर गुरु तुम हमारे लिए यूनिवर्सल सैनिको की एक पूरी सेना बनावो । जिसमे कप्तान अमेरिका हो , बाहुबली हो , ब्लैकविडो और लोहा सिंह यानि आयन मैन हो और हा बब्बन को बैटमैन और भुतालि को स्पाइडर मैन बना दो।
झालर - केवल इतना ही

राजा - अच्छा सुनो  तुम इतना कह रहे हो तो कटप्पा जैसा सेनापति भी बनावो साथ में कुछ ड्रोन, बम वर्षक राफेल विमान और मिग 21 22 23 का अपडेट वर्जन भी बनावो एवम कुछ राडार का भी सृंगार कर दो।

झालर गुरु - महराज गुंडई मत बतिआवा
हम कलाकार हई बुझला की ना इ हमार विद्या हउ तू ऐसे पार ना पइबा
लेकिन इतना ही तोहे सनक चढ़ल हउ तो हम बना देब।
खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी

और झालर के सामने वहीँ रंग बुरुश का पिटारा खोल दिया जाता है जिसे बब्बन ऊठा लाया था झालर बब्बन को देख के जोर से हस देता है।
अबे तेहि रहले ना ओ दिन हैं और हँसते हँसते ही
चित्र बना देता है।

दृश्य 10
राजा- महामंत्री ,युद्ध का शंखनाद कर दो , आज होरी के शुभ अवसर पे, हम खून का होरी खेलब इलाहाबाद के इराक कर देब जौनपुर के सीरिया कर देब ,शपथ हैं चचा सैम क।
महामंत्री - सैनिकों युद्ध  का प्रदर्शन करू
शंखनाद की जगह बिस्मिलाह खान की सहनाई बजने लगती है , राफेल विमान बम वर्षक की बजाय भांग वर्षक बन जाते है । राडार फूलों की खुश्बू का पता लगा कर महक को खिलने से पहले ही फ़िज़ा में बिखेर देता है । बाहुबली ,कट्टप्पा ,आयन मैन, ब्लैकविडो, जैसे सैनिक भांग के मजे, मस्ती में हर हर महादेव और बम बम महादेव का उदघोष करने लगते है । इसबीच स्पाइडर मैन उछल कर राजा को अपने साथ ले आता है और राजा भी उनके सुर से सुर और ताल से ताल मिला के नाचने गाने लगता है।
और इस बीच झालर गुरु कहता है।
काशी नरेश
हम तो कलाकार है
दर्द के रंगों से प्यार बनाते है
टूटते तारों से खुशियों की हसरते बनाते है
अश्रुओं से फरियाद के मोती बनाते है
ख्याब सजाते है जज़्बात बनाते है।
हम तो कलाकार है दर्द के रंगों से प्यार बनाते है

सेना शांति के लिए होती है काशी नरेश बनारस की जनता आपको अल्हड़ समझती है अहंकारी नहीं । आपकी सेना युद्ध के लिए नहीं शांति और सुख के लिए होनी चाहिए । इतने में बब्बन और भुतालि झालर को आलकी पालकी बोलते हुवे कंधे पे ऊठा लेते है।
और काशी नरेश हर हर महादेव का उदघोष करते हुवे झालर गुरु को अपने ह्रदय से लगा लेते है।