Thursday, August 24, 2017

चमत्कारी झालर

चमत्कारी झालर 

स्थान- काशी नगरी
मौसम - फागुन के बाद का , जब उत्तर भारत में लूह फ़िजाओ में बेपनाह रहती है । पसीना सूखता नहीं और प्याज नहीं खाया तो घर से निकलते ही  लूह मार देगी तड़तड़ा के ।
नाटक का सूत्रधार एक मलाई बरफ (बर्फ) अर्थात आइस क्रीम बेचने वाला है।
लकड़ी से बने और जूट के बोरे से ढके सन्दूक को काख में कस के, काशी की आवारा गलियों में घूम रहा है।

दृश्य 1

सूत्रधार- "ले ला तरावट बड़ा तरमाल हौ"
"अरे लेला हो लपालप"
अरे अरे लेबा की ना : देखा, कनखियाते कहाँ उड़ल जात हउवा
गुरू भांग वाला त जमा के जा ।
(बच्चे दिखे तो जीप लप्पलपा के महिलाओं के बीच नम्रता से और अधेड़ और नवजवानों के बीच ऐठ के बोल रहा है)

अब सूत्रधार काफी देर मलाई बरफ बेचने के बाद पक्का महल के किसी चबूतरे पे सुस्ता रहा है यदपि माथे का पसीना टपटपा रहा है। कमर पे बधी सुराही से हलक को जलमग्न करने के बाद दर्शकों से मुखातिब होता है।

जी हा साहिबान ये शहर बनारस है ।  बात एक ,मगर तड़क के, झटक के, मेलह के ,सलेह के, बोलने से बात का मतलब बदल जाता है।मामला, माल, चिरई, ठुल्ली ,नमकीन, मलाई ,लग्घड़ ,लेना देना ,ऐसे सैकड़ो शब्दों का प्रयोग कई अर्थो में किया जाता है।
यहाँ कोई किसी की परवाह नहीं करता कोई नहीं डरेगा आपकी औकात से , घण्टा कही के होंगे आप लार्डसाब, इहा बजता तो बस बाबा विश्वनाथ का है। पान घुलाये,चबूतरे पे तशरीफ़ सिकोड़ के बैठा, पगलेट सा दिखने वाला यह शख्स ,जिसे आप बहुत देर से बौड़म समझ रहे थे ,अचानक से उठकर आपकी हकीकत में ऐसे,ऐसे रंग भर सकता है जिसकी कल्पना भी आपने  नहीं की होगी। सांड भांड साधु सन्यासी के देश में ये एकलौता चित्रकार है ,जो चित्रों से चमत्कार करता है ।
कैसे, आइये खुद ही देखते है।

दृश्य 2
चित्रकार झालर गुरु  - ए माई लंगड़ा आयल का।
(माँ अभी चूल्हे में फुक मारे, करीयाह (कमर ) पकड़ के ऊठ ही रही थी की प्रवेश द्वार से एक आदमी का प्रवेश)

सिपाही धरम सिंह
( चहरे पे नाराजगी के भाव के साथ)
  हां । हू मैं लंगड़ा सब बोलते है , तुम भी बोलो लेकिन कभी ये लंगड़ा, काशी नरेश का सबसे तेज पैदल सिपाही था । एक फलांग में पांच पाँच  कोस नाप दिया करता था। लेकिन आज एक लाचार, लंगड़ा है जो भविष्य में यातायात डिपो के पास तीन पहिया साइकिल पे पान ,बीड़ी ,सिगरेट  बेचेगा ।

चित्रकार की माँ दुलारी देवी - बाबा इलाइची पल्स क गोली और चना जोर गरम भी गिन दा घासड़ी के
अरे इ तो पगला हौ पर तु कहे अचरज का चोदल हुआ।
दु दिना (दिन) से लंगड़ा आम मांगत हौ,
और खाये से पहले ही भुला जाथ हौउ।

सिपाही धरम सिंह ( भाव भंगिमा और शारीरिक ऐठन में भारी बदलाव करते हुवे सहज मुद्रा में) माँ की बात को जब्त करके झालर गुरु की तरफ देखते हुवे
क्षमा करना
क्या तुम्ही हो झालर गुरु
झालर - अरे ना बुजरो के हम तो बस झालर हई ,उ भी अनाथ ,गुरु उपनाम त हर बनारसी से चिपकल हउ।
सिपाही -बहुत सुना है तुम्हारे बारे में क्या तुम मेरी टांगे ठीक कर सकते हो।
झालर- पान की पिचकारी मारते हुवे।ई कौन बड़ी बात हौ। खण्डन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी।
जा राजा का गोटी जाके चबूतरा टिका ला।
(सामने रखी कुर्सी पे सिपाही बैठ जाता है और झालर अपने अन्टे से ब्रश निकालकर उसका चित्र बनाने लगता है।)
झालर - ए लघ्घड़ गुरु बूंद बूंद उठा।
सिपाही - अरे मै तो खड़ा हो गया। देखो मै तो चल भी रहा हो, तुम तो देवता हो ।आज से ये पैदल सिपाही तुम्हारा गुलाम हुआ ।मुझे अपनी शरण में लेलो, मुझे अपने पास ही रहने दूँ बस ये एक अहसान मुझपे और कर दो।
झालर -महादेव के कृपा से हम इ बूढी माइ के आसरे और अब तू बुजरो के हमरे आसरे । ए माई भभूत लगा के स्वागत कर अपने नया लइका के। आवा रजु पिछाड़ी सम्हार के।

थोड़ी देर बाद अवध के एक नवाब और उनकी  बेगम जान झालर गुरू के यहाँ तशरीफ़ लाते है ।
बेगम - बहुत आश के साथ आयी हूँ क्या आप अपने रंगो से मेरी सुनी गोद भर सकते है। बुरुश चला के बच्चे की किलकारी मेरे आँगन में सुना सकते है। हर पीर बाबा, मजार, दरगाह, मन्दिर में मेरी आरजू की अर्जी रखी है। क्या आप मेरी आरजू को हकीकत बना सकते है ।

झालर गुरु बुरुस चलाते है और स्त्री को मात्रत्व का सुख मिल जाता है।

थोड़ी देर बाद
लकड़ी की सलाई से स्वेटर बुनती बूढ़ी औरत और उसकी बेटी का प्रवेश
मेरी बेटी की शादी है झालर गुरु ,
कल मॉर्निंग तक बिटिया के गहने ना बने तो डोली नहीं अर्थी उठे गी मेरे घर से वो भी दो दो

झालर - अरे नयका ज़माने क ओल्डमौंक भौजी दोबारा पलट के देख ला कन्या के सज गइल गहना गीठो में।

दृश्य तीन
कशी नरेश का दरबार
राजा- महामंत्री। सैनिको के सीधी भर्ती के बिसय में कौनो खोज खबर
कब तैयार होंगे हमार यूनिवर्सल सोल्जर कब आएगी बफोर्स टोपे (तोपे)
मंत्री - घण्टा तैयार होंगे यूनिवर्सल सोल्जर
राजा - महामंत्री अभिये पटक के मारब तोहे बुजरी के....
अरे सरकार आप तो पिनक गए डोन्ट बी हाइपर ।
कूल कूल ठंडा कूल
नवरतन। काशी नरेस (नरेश) के केस में तेल लगावो
पंखा हाक रहा नवरतन काशी नरेश के बालों में तेल चपोड़ने लगता है।
राजा- बश बश रात में तकिया खराब हो जाएगी .
एक तो साला हम इस श और स बने सब्दों से  बड़े परेसान है ।
महामंत्री- मालिक स और श से तो आप क्या पूरा उत्तर भारत परेसान है । काशी में आपकी कृपा से बश आच भर है असली आग तो पाटलीपुत्र और नालंदा में लगी है । आज भी वहा लोग सड़क को सरक ही बोलते है ।
राजा- अरे छोड़ो ये डिक्शन की फिसलन
तुम यार महामंत्री विस्तार से सैनिकों की भर्ती के बिसय में शमझावो पहले
महामंत्री - क्या कहे काशी नरेश
आपके साले और वर्तमान सेनापति बब्बन गुरु ने तो अपने सगे सम्बन्धी और दोस्त यारन को सेना में भर्ती कर लिया है । जो दिनभर भांग पी के मस्त रहते है और रास्ते भर कन्याओ के साथ खालीपीली खिलवाड़ और छेड़ छाड़ करते रहते है।

राजा - महामंत्री ये खालीपीली तो बनारसी नहीं बम्बईया लगता है । डोंगरी में पाया जाने वाला शब्द है ।
महामंत्री- क्षमा करे महराज ये शब्द डोंगरी का नहीं भिंडीबाजार का है।
अच्छा ये शब्द मंथन छोड़िये आपको संज्ञान भी है की इस बार गोला बारूद का ठेका बब्बन गुरु ने किसको दिया है ।
राजा - महादेव बचाये इस बब्बन से
किस चांडाल को दे दिया है ठेका उजागर करो

महामंत्री -  गोला बारूद का ठेका दे दिया है महा दलाल पेलू पाण्डे को फिर कैसे बनेगी आपकी यूनिवर्सल सेना और कैसे होगा सिविल वार । आप केवल महारानी और पटरानियों के कोल्ड वॉर के मजे लूटते रहिये।
राजा- फिर हम क्या करे महामंत्री
साला नहीं हमारी जुबान का ताला है बब्बन ।
महामंत्री- एक उपाय है ।
राजा - अब क्या शार्ट कमर्शियल ब्रेक लोगे
बिना एड ब्रेक के उपाय  हाली हाली(जल्दी जल्दी) बतावो ।
महामंत्री - काशी नरेश राज्य में एक चित्रकार है जो की जी एफ एक्स तकनीक से लैश है । जो भी चित्र बनाता है साक्षात प्रगट हो जाता है।
दरबारियों में हलचल और सब फुसफुसाने लगते है कि ,भविष्य की तकनीक वर्तमान में कैसे ।

राजा -भांग क भनक त रहल हम्मे लेकिन आज गांजा चढ़ा के आया है क्या बे
महामंत्री - एक एक शब्द बिना हैंगओवर के बोल रहा हूँ काशी नरेश । फिर भी चुल मची है तो स्वयम चलकर देख लीजिये ।

राजा - ये बात है तो चलो फिर ।
दृश्य 4
महामंत्री और काशी नरेश साधारण मानस के भेष में झालर गुरु के पास पहुचते है।

राजा- कोसो दूर से आये है । भर्ती देने । सुना है काशी में सैनिकों की सीधी भर्ती चल रही है । लेकिन ना असलहा है ना घोड़ा ।
झालर गुरु - (मघई पान घुलाते हुवे )
तलवार चाही की भाला

राजा - ऐसी छपा छप तलवार बना दो  गुरु जो दुइ इंच सीना चीर के लहू पिए लागे l
महामंत्री - मुझे एक घोड़ा दिला दो जो चेतक के सामान सरपट सरपट भागे हुर्रर्रर्रर्रर्र..टकाटक टकाटक

झालर गुरु -खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी मंतर पढ़ चित्र बनाने लगता है ।
राजा के हाथ में तलवार आ जाती है और महामंत्री खुद को काले अरबी घोड़े पे बैठा पाता है।

दृश्य 5
राजा - महामंत्री  रात में , दो चार भगेड़ी नशेड़ी सिपाहियों का एक टास्कफोर्स गठित करो , जो खुफिया काम करने में माहिर हो और भेजो चित्रकार के घर ।
महामंत्री - इस काम के लिए हमे सेनापति बब्बन के लीडरशिप की जरुरत होगी महराज । अक्सर उनके सिपाही ठेठरी बाज़ार में टोटी, टंकी, लोहा ,लकड़ ,पीतल, कस्कूट बेचते नजर आते है ।

दृश्य 6
"बब्बन" सरसो तेल पोत पात के, भांग ठंडई छान के, घुप अंधेरे में नसेड़ी "भुतालि" के साथ पक्का महल कॉलोनी की और कूच कर देता है। 

चोर की की बंद जुबानी वाली चकक्लुस के बीच झालर की नींद खुल जाती है ।

झालर - चमगादड़ उल्लू की तरह शायद इन भूतों को भी रौशनी रास ना आती है।
काहे हमार रहस्यमय नींद में खलल का बीच बो रहा है बे, ऊभी अंनिहारे में
बेटा एक हुरा लगी तो अस्सी से दशसुमेत पे डुबकी समाधी ले लेबे। चल भाग इहा से

बब्बन - का करे झालर महराज हुमहो एक चितकबरा चित्रकार हई ।

झालर -बनारस में जेबरा (जेब्रा) कहा से आ गईल बे इहा त बस घड़रोज आवेला ।

बब्बन - रंग ,बुरुश ख़रीदे बदे पूजी में बस चिलर रहल । एहि बदे आपके घरे हाथ मारे आ गइली। इहा( यहाँ)  त रगंन का रेला बा और बुरुश का भंडार हउ । इ ही चकर में बौरा गइली और एक हाथ से रंग क शीशी छलक गइल।

झालर -धत गांडू , डोमड़े ,कुजड़े ,हत्यारे ,वर्णशंकर वैशाखनंदन इधर आ । ले जो इ कुल तामझाम लागलपेट अत्यन्त से तुरंत और पुलका ले अपने जिनगी के।
बब्बन सबकुछ समेट चम्पत हो जाता है
झालर - देखा बुजरी वाला भांग भबूत भी ना छोड़लस ।

दृश्य 7
राजा का महल- महामंत्री  का प्रवेश
सरकार का भोकाल टाइट रहे सरकार यूनिवर्सल सोल्जर  और मैट्रिक्स क सेना बनाये बदे आपन योजना सफल हो गइल ।
राजा- बकचोदी ना करा मशका मत छिड़का सीधे सीधे मामला बतावा घासड़ी के
चण्डाल बब्बन चित्रकार के घरे से पेल के मजे क रंग,भभूत, भाग, और बुरुंश का पिटारा ले के आयल हउ ।
राजा- अदभुत । आज बब्बन गुरु को पुरे दिन भांग ठंडई और अफीम पान से बमबम बूत कर दिया जाए ।
महामंत्री - दास के साथ प्रयोगशाला में मूव करे सरकार
छत्तीस चित्रकार कुल यूनिवर्सल सेना बनाए में लगल हउन ।
राजा - हमारा एयरफ़ोर्स रथ तत्काल तैयार किया जाये महामंत्री

दृश्य 8
राजा -  झटांस, झटांस ( अत्यंत क्रोध में)
झोली में झटासं नहीं बारी में डेरा
साइड से झांकता सूत्रधार - नोट झटांस किसी भी वस्तु को नापने की सबसे न्यूनतम इकाई को बोलते है)
राजा - महामंत्री यूनिवर्सल सोल्जर तो क्या एक पैदल सिपाही भी पैदा नहीं कर पाये इ तोहरे पावभारी चित्रकार और ऊपर से पान की पिच पिच से पूरी प्रयोगशाला पिचपिचा दिए है ससुरे

महामंत्री -  क्षमा करे महराज लगता है की जी एफ एक्स के गुण रंगो में नहीं उस चित्रकार के हाथो में है।
राजा - बुजरी के अब दांत ना निपरो  ,गुर्गो को बोलो, जाएं और धर के लॉए ससुरे को।

सारथी झटक के ले चलो हमे ठुमरी बाई की हवेली पे
पूरा मन "अंधेर नगरी चौपट राजा" हो गया।

दृश्य 9
(राजा का सभागार , हथकड़ियों में जकड़ा झालर)

राजा-झालर गुरु तुम हमारे लिए यूनिवर्सल सैनिको की एक पूरी सेना बनावो । जिसमे कप्तान अमेरिका हो , बाहुबली हो , ब्लैकविडो और लोहा सिंह यानि आयन मैन हो और हा बब्बन को बैटमैन और भुतालि को स्पाइडर मैन बना दो।
झालर - केवल इतना ही

राजा - अच्छा सुनो  तुम इतना कह रहे हो तो कटप्पा जैसा सेनापति भी बनावो साथ में कुछ ड्रोन, बम वर्षक राफेल विमान और मिग 21 22 23 का अपडेट वर्जन भी बनावो एवम कुछ राडार का भी सृंगार कर दो।

झालर गुरु - महराज गुंडई मत बतिआवा
हम कलाकार हई बुझला की ना इ हमार विद्या हउ तू ऐसे पार ना पइबा
लेकिन इतना ही तोहे सनक चढ़ल हउ तो हम बना देब।
खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी

और झालर के सामने वहीँ रंग बुरुश का पिटारा खोल दिया जाता है जिसे बब्बन ऊठा लाया था झालर बब्बन को देख के जोर से हस देता है।
अबे तेहि रहले ना ओ दिन हैं और हँसते हँसते ही
चित्र बना देता है।

दृश्य 10
राजा- महामंत्री ,युद्ध का शंखनाद कर दो , आज होरी के शुभ अवसर पे, हम खून का होरी खेलब इलाहाबाद के इराक कर देब जौनपुर के सीरिया कर देब ,शपथ हैं चचा सैम क।
महामंत्री - सैनिकों युद्ध  का प्रदर्शन करू
शंखनाद की जगह बिस्मिलाह खान की सहनाई बजने लगती है , राफेल विमान बम वर्षक की बजाय भांग वर्षक बन जाते है । राडार फूलों की खुश्बू का पता लगा कर महक को खिलने से पहले ही फ़िज़ा में बिखेर देता है । बाहुबली ,कट्टप्पा ,आयन मैन, ब्लैकविडो, जैसे सैनिक भांग के मजे, मस्ती में हर हर महादेव और बम बम महादेव का उदघोष करने लगते है । इसबीच स्पाइडर मैन उछल कर राजा को अपने साथ ले आता है और राजा भी उनके सुर से सुर और ताल से ताल मिला के नाचने गाने लगता है।
और इस बीच झालर गुरु कहता है।
काशी नरेश
हम तो कलाकार है
दर्द के रंगों से प्यार बनाते है
टूटते तारों से खुशियों की हसरते बनाते है
अश्रुओं से फरियाद के मोती बनाते है
ख्याब सजाते है जज़्बात बनाते है।
हम तो कलाकार है दर्द के रंगों से प्यार बनाते है

सेना शांति के लिए होती है काशी नरेश बनारस की जनता आपको अल्हड़ समझती है अहंकारी नहीं । आपकी सेना युद्ध के लिए नहीं शांति और सुख के लिए होनी चाहिए । इतने में बब्बन और भुतालि झालर को आलकी पालकी बोलते हुवे कंधे पे ऊठा लेते है।
और काशी नरेश हर हर महादेव का उदघोष करते हुवे झालर गुरु को अपने ह्रदय से लगा लेते है।

चरित्र चालीसा भाग 1

नाम – नायिका
उम्र – 21
स्वभाव – वास्तविक और सामाजिक( real and social )।
सिचुएशन और परिस्थितिया अगर फेवरेबल हो तो वो बहुत ही रियल रहती है। जो दिल में आता है वो करती है । झल्ली पने की इत्हा ये है कि , बातों बातों में वो एलियन की आवाज निकाल कर आपको हसा सकती है , डरा सकती है । और बक बक बैकयती से कान को सुन्न कर सकती है। आप को वो दोस्त मानती है तो , पुरे हक के साथ आपकी तशरीफ में मिर्ची का तड़का भी दे सकती है। तो वही आपकी हर समस्या का हल ढूढने के लिए एक सर्च इंजन भी बन जाती है । वो एक चलता फिरता कम्यूनिकेसन सेंटर है। जहां आप कुछ भी बोल सकते है , कुछ भी जान सकते है , कुछ भी कन्फेस कर सकते है। तारिफों से इत्फाक नहीं रखती और अगर कुछ भी उटपटाग बोल दो रिएक्ट नहीं करती । जो लोग उसे जानते है , वो इस बात पे यकिन जरुर रखते है कि ,
उसके अंदर  हिरोइस्म दिखाने का चस्का है ।
नाम भी "नायिका" है । इसलिए रियल लाईफ में भी ,ऐसे पल बुन लेती है , जो अक्सर आपको एक फैन्टसी दूनिया और फैरीटेल की सैर करा देते है।
पंचलाईन –,"तुम मुझे कभी नहीं समझ सकते" (  दर्द झुंझुलाहट बेचैनी में ये शब्द पके हुवे आम की तरह आपके सामने कभी भी टपक जाते है । "नायिका" के ड्रामेटिक आर्ट और मैलोड्रामा से लबालब ये शब्दिक पंच अक्सर  फिल्मी प्रपंच ही लगते है । लेकिन जब ये संजीदा हो जाते है तो, आपको तोड़ के रख देते है।

मिथ- जानकारों की माने तो नायिका , बॉडी डिसक्रिमिनेशन का शिकार एक नर है,जो शारिरिक रुप से एक मादा के रुप में पैदा हुई ।
अन्य विशेषता –
खुबसूरत लेकिन हाईट और साईज को लेकर बी काम्प्लेक्स
एमोच्योर डिंग डांग और सिंग सांग में तरबतर लेकिन तरावट देने वाली
गुलाबी नशे को तबतक प्रोहिबिटेड नहीं समझती है जबतक की उसमे अल्कोहल की मात्रा 4 परसेंट से ज्यादा ना हो।
लैंग्वेज -  हिंदी, अंग्रजी,मराठी में धारा प्रवाह 
पर्सनाल्टी -  बाम्बे टू बनारस, कही का भी रुप धर के बतिया और गरिया सकती है। भाषा पे पकड़ ऐसी की एलिट मुँह ताक सकता है और गवार खिखिया सकता है।
लेकिन हर सिक्के का दूसरा पहलू होता है। जब परिस्थितिया काबू में न हो । लोग , समाज , परिवार दोस्त यार ,हर कोई अपनी ऐठन में हो। पैसें पावर स्टेटस का गुंडाराज  हो । ऐसे में रियल गर्ल बहुत सोशल हो जाती है । हर उस सोच को फॉलो करने लगती है जो समाज के ढेकेदारों ने अपनी दुकान चलाने के लिए बनाए है । ऐसे में जीना तो आसान हो जाता है लेकिन अपने ही लोगों के बीच ,सोशल डिसक्रिमिनेशन और आईडेन्टिटि क्राईसिस का शिकार हो जाती है । और जब मै , यहां से उसे देखता हू तो वो कुछ ऐसी नजर आती है
चरित्र – सच्चा मगर फेरब से जला हुआ
कमजोरी – दोस्तों के बिना असहाय
दुश्मन- अधिकांश लड़किया, जिन्होंने दोस्ती की आड़ में दुश्मनी पुरी शिद्दत से निभाई
जुर्म - फरेब और बेवफाई का संगीन आरोप ,मामला 10 सालों से विचाराधीन
कॉन्ट्रोवर्शियल चुतियापा -
दो मौके पे "नायिका" के  कॉन्ट्रोवर्शियल चूतियापे के मामले प्रकाश में आए
पहला जब "आरव" ने "नायिका" के जवान होते दिल को इमोशनली ब्लेकमेल ही नही  उसके स्वस्थ दिमाग को जहर भी दिया। और अपने इस अनाचार में नायिका की सहेलियों को भी सहयोगी बना लिया।
उसने एक सच्ची या झूठी मार्मिक कहानी सुनाई। जिसका खुलासा कभी नहीं हुआ।
कहानी में, वो खुद को अपने दोस्त या भाई की मौत का जिम्मेदार मानता है । बाहर से एक टूटा इंसान जो अपने जीवन से निराश है।लेकिन अंदर से ऐसा चरित्र जो नायिका के इर्दगिर्द उसे चाटने और चुमने के लिए ही घुमता रहता है।  सामाजिक भाषा में समझने कि कोशिश करे तो वो "नायिका" का सबसे बड़ा हमदर्द और हितैशी था। जिसे सिर्फ और सिर्फ "नायिका" का प्यार चाहिए था। इस किरदार ने ऐसे समय में एंट्री मारी जब नायिका लगभक जवानी की दहलीज पे खड़ी थी। और लीक से हटकर उस ऑफबीट कल्ट किरदार यानी "ज्वलंत" से दूर जाना चाहती थी ,जो जबरदस्ती उसके दिल में घुस आया था । किसी से दूर जाना हो तो किसी और के पास आना ही पड़ता है। और यहीं वो पहली जगह थी जब "नायिका" की वास्तविकता की मौत हुई। उसकी मासूमियत को छला गया तथाकथित जिगरी सहेलियों की मदद से । नायिका का इमोरल प्रोवोकेशन करा के ,"ज्वलंत" के जन्म लेते प्यार को "नायिका" के दिल में ही मार दिया गया । 
सामाजिक रुप से समझा जाए तो "नायिका" का आरव की तरफ झुकना दोस्ती में प्रेम को कुरबान कर देना था। या फीर दो इंसानों के बीच ऐसे इंसान का चुनाव करना था, जिसकी Acceptance और इम्पोर्टेन्स  नायिका और उसकी सहलियों के लिए ज्यादा थी। "नायिका" के सामने एक बनावटी सामाजिकता थी और आभासी वास्तविकता । जिसे उसने सच मान लिया । आगे चलकर उसने दलील दी की "ज्वंलत" से प्यार करना उसकी भावनात्मक भूल थी । जोकि उसने अपराजय और गणिका के बहकावे में आकर की थी। अपराजय ने उसे इस बात के लिए assurd किया था कि,"ज्वंलत" की दूनिया में ,उसे एक किरदार में ही रहना है । कुछ दिनों में ही इस रियल लाईफ की काल्पनिक फिल्म का द इण्ड हो जाएगा और फिर तुम्हारी अपनी दूनिया और ज्वलंत की अपनी दूनिया होगी।
अपराजय ऐसा कर भी देता अगर ज्वलंत ने उसे अपने और नायिका के अंतरंग प्राईवेट पलों के बारे में नहीं बताता। सूरज की धूप का जो रंग होता है ,वो रंग है "नायिका" का, खुबसूरत कमर जो बल खाती है और उसपे उसकी छोटी सी नाभी
हाय क्या कहने
ना जाने कितनी बाते कर कर के ज्वलंत ,अपराजय को इस बात का यकिन दिला चूका था की, अब उन दोनों के बीच भावनात्मक ही नहीं शारीरिक रुप से भी एक लगाव हो गया है। इन सब के बीच अपराजय से गणिका का ये कहना की, ज्वंलत और नायिका के बीच में, हर वो बाते शेयर हो रही है, जो आमतौर पे लड़किया करने से कतराती है। या हद पार होने पे ही बोल पाती है। नायिका ने तो ज्वलंत के लिए एक बार फास्ट भी रखा था । अपराजय की जब बात नायिका से होती, तो भी उसे सब कुछ रियल ही लगता । ये सबकुछ अपराजय के इतने नजदीक से गुजर रहा था कि, हर सच की परत दर परत जाने की उसने कोशिश नहीं की।
सब कुछ अच्छा चलता है तो ,कोई भी इंसान ,किसी भी सच का पोस्टमार्टन नहीं करना चाहता है। और अपराजय से भी यही गलती हो गयी। जिसके बाद जो कुछ भी हुआ ,अपराजय ने सबके लिए "नायिका" को और खुद को दोषी माना और अभी मानता है।
ये सत्य है कि सामाजिकता की आड़ में किए गए अपराधों की सजा नहीं मिलती। लेकिन ये आपकी वास्तविकता को कमजोर जरूर करती है। आने वाले समय में ,जब मै ये सोचता हू कि नायिका और आरव की प्रेमकहानी ने कौन सा मोड़ लिया, तो पता चलता है कि आरव ने पहले ही यू टर्न ले लिया।
"आरव" ने फिर एक कहानी बनायी।
क्योकि अब उसके "बाप" मरने वाले थे। यहां भी  नायिका को अपनी सामाजिकता और वास्तविकता में से किसी एक को ही चूनना था।
अपनी  सामाजिकता में जकड़ी "नायिका" को भनक तक नहीं लगी की अब उसके साथ फिर वहीं कहानी दोहराई जा रही है। जो कभी ज्वलंत को उससे दूर करने के लिए लिखी जा रही थी। जहरखुरानो ने अपनी आत्मा बेच दी। मतलबी सखियों ने कन्नी काट ली और "आरव" ने परिवार की दुहाई देकर उस लड़की को छोड़ देता है ,जो बहुत कुछ छोड़ कर उसके पास आयी थी।
खैर इस बात में कोई शक नही की आरव ने ,"नायिका" की  इस बीच हर सम्भव मदद की और उसका ख्याल रखा जब उसके पास कोई नही था । उसने मानवीय महत्व की छाप इस कदर छोड़ी कि आज भी "नायिका" की नजर में "आरव" का जाना एक सामाजिक विवशता ही थी ,जो उसने अपने परिवार के दबाव में आके की थी ।
लेकिन सारी सामाजिक विवशता को ताक पे रख दिया जाए तो समझ में आएगा कि "नायिका" के अकेलेपन और तन्हाइयत का एक मात्र कारण भी "आरव" ही था।
आरव उस बच्चे की तरह था जो किसी और के टेडी बियर को अपना समझता है । और मौका मिलते ही उसे चुरा लेता है । उसके साथ खेलता है ,खुश होता है। और प्यार तो बेहिसाब करता है , उसे अपना बता के किसी और को उसे छूने तक नही देता। लेकिन जब दिल भर जाता है। तो अपने हाथों से ही उसे चीर फाड़ देता हैं।
सवाल ये हैकि ऐसा करने का साहस  उस बच्चे में आया कैसे
क्योंकि वो टेडी बियर किसी और का था ।
तकलीफ तो तब उसे होती जब टेडी बियर उसका होता।
वो उस समस्या का समाधान ढूंढ रहा था जिसका सूत्रधार भी वही था।
आगे चलकर कहानी के और भी किरदार सामाजिकता पावर पैसें स्टेटस के बीच जुझती इंसानी वास्तविकता के कई और रंग दिखाएगे बस पकड़ कर चलिए
 एक जैसे मुखौटों में चहरे बदल जाते है

एक ही बात के अक्सर मतलब बदल जाते है 

   

चरित्र चालीसा भाग 2

नाम-अपराजय
स्वभाव – 100 फीसदी वास्तविक कोई मिलावट नहीं बिल्कूल आर्गेनिक, जो है, सो है ।
अपराजय जैसा नाम वैसी शख्सियत
हार जैसें शब्दों के मायने अक्सर बदल जाते है ,जब अपराजय जैसें लोग दूनिया में आते है।. ऐसा नहीं की उसकी कभी हार नहीं हुई, लेकिन वो हार भी इतनी शानदार रही की, जितने वाला भी उसकी हार से रश्क करने लगा। एक जिंदादिल इंसान जो लगता भी है एक मद्रास कट हीरों जैसा। चौड़ा सीना , उचा कद और दमदार आवाज ...और ऐसी आवाज में वो अक्सर एक ही बात कहता है
मर्द की बात एक
हर कालेज और यूनिर्वसिटी में ऐसे विरले लौण्डें होते है जिनके पास चाचा चौधरी का दिमाग और साबू वाली धमक होती है । अपराजय कालेज का कालजयी स्टूडेंटे था । क्योंकि वो पढ़ने में सबसे तेज  और गुण्डई में तर्रार था। कालेज की नामचीन हस्ती और हसिनाओं से गाढ़े संबध थे और एडमिन में गहरी पैठ थी । चपरासियों में चर्चा और लौण्डों लापाड़ीयों में उसकी तूती बोलती थी।
कालेज कैम्पस की हर गतिविधियों पे उसकी पैईनी नजर थी और हर छात्रावास तक उसकी पहुच। .कुलपति और कालेज प्रशासन के लिए अपराजय एक क्रांतीकारी स्टूडेंट था या आंतकवादी ये बहस का मुद्दा हो सकता है।
लेकिन इस बीच कालेज की लचर शिक्षा व्यवस्था, सीमित टीचर, रैगिंग और आए दिन हो रही मारपीट तोड़फोड़ और बिना किसी कांन्सिलिंग या इन्ट्रेंस टेस्ट के हो रहे एडमिशन से ,कॉलेज का एक धड़ा बेहद आक्रोशित था। जिसमें अधिकतर कालेज के वो छात्र थे ।जो या तो कभी अपराजय से चुनाव में हारे थे या कुटाए हुए थे। साथ में कुछ प्रथम वर्ष के उड़ते परिदें भी थे ,जिनको लगता था की उनका कालेज में वर्चष्व और प्रभुत्व तबतक नहीं होगा ,जब तक कि किसी मौके पे, अपराजय को पटखनी देकर उस तंत्र में सेध ना लगा दि जाए, जिसपे अपराजय का एक छत्र राज्य है। इन लोगों के साथ, कुछ ऐसे स्टार स्टूडैंट भी आ गए जो लोकप्रियता के मामले अपराजय से कम नहीं थे। इनके ही साथ आने पे, अपराजय के विरोधियों को बल और साहस दोनों मिला । विरोधी गुट , इस बात को, कुलपति के समक्ष मनवाने में कामयाब हो गया कि कालेज के शैक्षणिक स्तर के घटते ग्राफ औऱ भ्रष्ट होती प्रशासनिक व्यवस्था के पीछे सिर्फ अपराजय की नेतागीरी और उन स्टूडैंट का हाथ है जो बिना किसी योग्यता के ही इस शैक्षिक संस्था में भर्ती हो गए है। 
इन स्टार स्टूडेंट के विरोध में आ जाने से ही कॉलेज प्रशासन जागा स्टूडेंट भर्ती रोकी गई और छात्रसंघ चुनाव रद्द करने का विचार भी स्वरुप लेने लगा।
आखिर ये स्टार स्टूडैंट कौन थे ।एक नजर में इन सारे किरदारों को समझने की कोशिश करते है........
नायिका सिंह- स्टेट लेवल स्विमर जो स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत कालेज में प्रवेश प्राप्त किया
आऱव राय-  कोशाध्यक्ष प्रथम वर्ष
अनारा पटेल- कालेज टापर प्रथम वर्ष
किंजल आर्य़ा –आरव राय की मुहबोली बहन। लटके झटके दिखा के कॉलेज में सस्ती लोकप्रियता हासिल की
पंखुड़ी गुप्ता- शातिर दिमाग, लौण्डों को मोबलाईज करने में माहिर ,लवजिहाद और हिंन्दू मुस्लिम विवाह की वकालत करके चर्चा में आई ।हरामी लौण्डों में खासी लोकप्रिय
खैर इन सब, हो हंगामें से बेपरवाह अपने 10 बाई 10 के कमरे में अपराजय जो इस कमरें को हवेली कहता है  दोस्त यारन और कन्या मिंत्रों के बीच कैरम की बाजी खेल रहा होता है।
नाइसिल पावउडर से सने बोर्ड पे स्ट्राईगर चमाकते हुए अपराजय ज्वलत से कहता है ।
अगर मैनें ये रानी (क्विन) पिला ली ,तो क्या तुम उस विरोध को अपने शब्दों से दबा दोगे जो मेरे खिलाफ हो रहा है।
जिसके बाद कुछ ऐसा होता है जो अपराजय की होने वाली हार के मायने बदल के रख देता है ।  
अगले दिन नए पुराने छात्रों का हुजम लगा और कॉलेज परिसर में कुलपति का पुतला फूंका जा रहा था जिसकी अगवाई ज्वलत कर रहा था । कहानी में ये किरदार अभी सिर्फ अपराजय के इशारे पे ही प्रगट हुआ है। क्योंकि आज ही कुलपति ने छात्र संघ के चुनावों को रद्द कर दिया है। इस चुनाव में स्वयम को अपराजय की फ्यूचर वाईफ बताने वाली गणिका पहली बार महांमंत्री की भी दावेदारी ठोक रही थी। जिसके अंदर ऐसा कुछ नहीं था जो नोटिसेबल हो लेकिन जो था उससे कॉलेज के कुलपति का कलेजा सुन्न हो गया था। गणिका कॉलेज के ट्रस्टि की इकलौती कन्या थी । और अभी अभी उनके आदेश से ही कॉलेज में होने वाली एजूकेशन फंडिग रोक दि गई थी।
अपराजय से गणिका के संबधों की माया तो सिर्फ वहीं दोनों ही जानते थे । लेकिन जब ज्वलंत गणिका के समर्थन में उतर आया तो गणिका के भोकाल में क्रांति आ गयी । माईक 123 ,सांउड चेक, करने के बाद  ज्वलत ने गणिका को भाभी कह के संबोधित करते हुए कहा की ,अपराजय, हवेली पे उन कन्याओं और बालकों की कान्सिलिंग और एडमिशन की व्यवस्था सेट करने में व्यस्त है जिनका इस सत्र में प्रवेश नहीं हुआ है। इसलिए मुझे आना पड़ा । मै आपको आस्वस्थ कर देना चाहता हू कि विगत वर्षो की भाती ही इस वर्ष भी चुनाव होगें ।और भारी सख्या में यहां फिर से उन बालक और कन्या छात्रों को एडमिशन दिया जाएगा जिनका एडमिशन किसी और कालेज में नहीं हुआ है। कालेज प्रसाशन तक अगर मेरी आवाज पहुच रही है तो वो सुन ले
उड़ाता तीर नही लेना चाहते तो समझदारी यही कहती है कि वो अपनी  हद में रहे। उनका काम सिर्फ छात्रों की सेवा करना है । आदरणीय कुलपति जी से विनम्र निवेदन है कि वो छात्रों का मार्गदर्शन करने में सहयोग करे ना कि कुछ शरारती तत्त्वों की बात सुनकर छात्रों के संवैधनिक अधिकारों का हनन करे । रही बात उनकी ,जिन्होंने इस आग को हवा दी है ।  तो वो अपने मुँह पे स्वतः ही कालिख पोत ले अन्यथा हगनालाये के पानी से उनका शुद्धिकरण कराया जाएगा। और इस पूरे अनुष्ठान में किसी भी प्रकार का लिंगभेद नही होगा। ज्वलन्त का ये उदघोष इस बात का प्रमाण थे कि अपराजय के खिलाफ हो रहे विरोध का अंत हो चुका है ।
कहानी के इस अध्याह का अंत भी यही होता लेकिन ये अंत कहानी का नहीं है ।  बदले की कारवाई में बदलते चरित्र अपना रंग दिखाए गे । महत्वकाक्षाएं हद पार करेगी और मानवीय सवेदनाए दम तोड़ देगी ।  दिखावटी समाजिकता और बनावटी प्यार की धज्जीया उड़ने में ज्यादा देर नहीं है। बस पकड़ के चलिए ...
इंसान क्या चरित्र क्या सच्चाई तो बस कंलक बोलते है
         कत्ल क्या खंजर क्या खुन से सने हाथ बोलते है