Monday, September 4, 2017

कलाकार

तेरी नजर में मै स्मार्ट नहीं लेकिन स्मार्ट वर्क करता हू तुझसे ज्यादा तरी जरुरतों को प्यार करता हू
सच्चा प्यार हू तुम्हारा बेकार समझती हो तुम मुझे दूसरो की शौहरतो से तौलती हो तुम मुझे
आज वो सब मिल भी जाए तुम्हें तो क्या होगा किसी अमीर जादे की बाहों मे सिमट जाने से क्या प्यार होगा
क्या वो तुम्हारे दिल जज्बात को समझ पायेगा मेरे जैसे तुम्हारी हर आहट को महसूस कर पायेगा
चहरे पे हसी के फूल खिला पाएगा
तुम्हारे लिए कभी जोकर तो कभी जादूगर बन पायेगा
नहीं ना
किसी के प्यार में गिर जाने की हसरत दौलत से कही उंची होती है
प्यार की दौलत हर दौलत से बड़ी होती है
प्यार करने पे इंसान कलाकार बन जाता है
तुम मेरी रचना हो मेरी आखों ने तुम्हें खुबसूरत बनाया है
मेरी बातों ने तुम्हें इतराता चांद बनाया है
मैने अहसास के रंगो से तुम्हारे हकिकत में रंग भरे है तुम्हारे आसूओं को छलकने से पहले रोका है
तुम्हारी हर खुशी को लाने में मैने हर दर्द सहा है
बेशक ये जीवन तुम्हारा है तुम मुझसे दूर जा सकती हो किसी अनजान से पहचान बना सकती हो
मुझे तन्हां छोड़ अपनी नई दूनिया बसा सकती हो
खैर दूनिया का दस्तूर ही ऐसा है ,
आपसे जो प्यार करे आप उसी को छलते हो
प्यार में खेलते हो, प्यार को ही खेल समझते हो
लेकिन हम तो कलाकार है
दर्द के रंगो से प्यार बनाते है टूटते तारे से खुशियों की हसरते बनाते है
आसूंओ में फरियाद के मोती बनाते है
जज्बात बनाते ख्वाब बनाते है
मैने तो तुमसे प्यार किया तुम्हारी खुशिया ही चाहूगा बोलने से पहले ही दूर चला जाओगा
लेकिन
खोया हमने नहीं तुमने है
जो प्यार बदलते है उनके रंग बदल जाते है
शोहरत की चमक में भी वो फीके नजर आते है ,फीके नजर आते है।

अ काबुलीवालाज बेंगाली वाइफ

जैसा कि अंदेशा सुष्मिता को पहले ही था कि कभी काबूली वाले की बंगालन बीवी को मार दिया जाएगा । 90 के दशक में , सुष्मिता की जद्दोजहद और आप बीती तो हम या हममे से कुछ जानते है । लेकिन जो मरहूम भारतीय लेखिका से बेखबर रहे , उन लोगो ने भी तालिबानियों की गोलियों से छलनी लेखिका के बारे में जाना ।
जो अबतक खामोशी से मौत की कब्रगाह जीवन की राह तलाश रही थी।
भारतीय मूल की लेखिका सुष्मिता बनर्जी की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।अफ्गानिस्तान के खरना में , 49 वर्षीय बनर्जी को उनके घर के बाहर ही दरंदिगी से कत्ल करके उनकी लाश को एक धार्मिक स्कूल में फेंक दिया गया । स्वास्थ्य सेविका के रूप में काम करने वाली बनर्जी, सईद कमला के नाम से भी जानी जाती थीं। वर्ष 1995 में बनर्जी द्वारा लिखी गई किताब 'अ काबुलीवालाज बेंगाली वाइफ' काफी लोकप्रिय हुई थी और भारत में बेस्टसेलर बनी थी। उनकी यह किताब अफगानिस्तान में उनके पति के साथ दर्द से सने पलों और तालिबान के आंतक औऱ जुल्मों से बचकर देश पहुंचने तक की घटना पर केंद्रित है। अभिनेत्री मनीषा कोइराला अभिनीत 'एस्केप फ्राम तालिबान' उनकी ही किताब से प्रेरित थी। 8 सालों के लंबे और रुह कपा देने वाली दास्ता को सह कर उसे शब्दो के टुकड़ो से समेटने वाली सुष्मिता आखिर फिर क्यों उसी दलदल में पहुंच गयी ...ये एक सवाल है जिसका जवाब भी उनकी मौत के साथ ही दफन हो गया। कोलकाता के एक बंगाली ब्राह्मंण परिवार में जन्मी सुष्मिता कोलकाता में ही व्यवसाय करने वाले अफगानी बाशिदे जाबांज खान के प्यार में पड़ गईं। वो दौर सन 89का था.. घर वाले खफा थे,.. उनके प्यार के खिलाफ थे लेकिन सुष्मिता ने अपनी हद से बाहर निकल कर प्यार की हद को छू लिया और शादी रचा ली।  अपने देश ले जाकर जांबाज खां , सुष्मिता को अपने घर वालों के बीच अकेला छोड़ ,  बिना कुछ बताए वापस कोलकाता आ जाता है । जिसके बाद शुरु होती है दर्द, छटपटाहट और बेबसी से सिमटी ...बेबस भारतीय नारी की दास्ता। जिसे सिर्फ सुष्मिता के ही शब्द बयां कर सकते थे ।
हम तो बस यहीं कह सकते है कि इस तालिबान का खात्मा , हमे हमारे मानवजाति को बचाने के लिए ही नहीं , अपने घरों को बचाने के लिए ,अपनी आजाद सोच को बचाने के लिए भी जल्द से जल्द करना होगा... वरना ये वीरान और सुनसान जगहों पर छिपे कायर हमारे घरो में घुस जाएगे । हमे ही नहीं हमारी पूरी आत्मा को भी नुकसान पहुंचाए गे। ये पोस्ट 2013 का है आज कुछ याद आया तो फिर से इसे री पोस्ट कर रहा हू । स्मृत कुमार