Monday, December 11, 2017

सूचना क्रांति और प्यार


किसी जमाने में
कन्या को प्रेम पत्र देना और जान की बाजी लगाने में कोई विशेष अंतर ना था।
लेकिन दौर बदला
गुलाबी गुलाब ,इत्र में डूबा ख़त और 5 रुपया वाला डेरी मिल्क । 90 के दशक तक ये फॉर्मूला माशूक और उसकी सहेली को रिझाने के लिए रामबाण हो गया। उदारवादी दौर में प्यार जैसी अमूल्य चीज भी बहुत सरल और सस्ती हो गई। आज इस कीमत में प्यार तो भूल ही जावो
Fb पे माशूक का लोल वाला कमेंट और अँगूठा छाप वाला लाइक मिल जाये वही
#हैशटैग बड़ी बात है।
सन 2000 के बाद सबकुछ  बदल गया। मोबाईल फोन से बात ही नहीं “ इजहार ए मोहब्बत ” करना भी बहुत ही सरल और सुरक्षित हो गया । आम आशिकों के लिए ये बड़ा ही मिक्स दौर था। ये उन शुरूआती दिनों की बात है। जब मोबाईल फोन आशिकों की जेब में और इंटरनेट उनकी पहुच में आया। इस दौर में आनलाइन फार्म भरने के अलावा लोग दिल्लगी करने भी साइबर कैफे जाने लगे थे। फेस बुक धीरे धीरे आरकुट की जान ले रहा था। और प्रेमपत्र देने की रिवायत आखरी सांसे ले रही थी।
ज्वलंत कहता है कि
उस दौर में प्यार के नाम से पुरा कोर्स चलाया जा रहा था । सिलसिले वार तरीके से समझने  की कोशिश करते है  ।
सुपर सीनियर दीदी ,छोटी बहन और कन्या की परम सखी को केंद्र में रख कर , प्रेम समीकरण बनाये जा रहे थे।प्रेम त्रिकोण यानी love tringle भी इसी गणित का एक हिस्सा था। जिसको बॉलीवुड वालों ने खूब भुनाया।
इसमे  फायदा कम था  लेकिन नुकसान ना के बराबर था। अमूमन इस दौर में भी लड़किया ,प्रेम जवाब यानी love answers देर से देती थी। काल और साल के बीच आशिक़ ,"हा"या "ना" की  तलाश में एक ही जगह सिकुड़ के रह जाता था।  दुश्वारियों का अंत  नही था । सालों साल लड़की की हा और ना के बीच
लौंडों को अक्सर ,"ना "ही सुनने को  मिलती थी।
और बहाने भी चिंदी चोर वाले थे।
मेरी मम्मी बहुत बीमार है
पापा लड़का ढूंढ रहे है
भइया को पता लग गया है कि मैं तुमसे बात करती हू।
हमारे यहां इंटरकास्ट शादी नहीं करते
तुम मुझे भूल जावो
और सबसे धांसू
मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मुझसे कभी बात मत करना।
लौंडों को बिना माल पटाये सीधे सीधे सौदेबाज़ी में लगभक यही हासिल होता था।
इसलिए लौंडों में प्यार से पहले माल पटाने की परंपरा का विकास हुआ।
ताकि लड़की भविष्य में "ना" भी बोल दे
उसे पहले , आप उसके हाथ और कंधे तक पहुच जाते थे।
थोड़ी सिरियस और सबकुछ नॉन सिरियस बाते बोल लेते थे।
बाइक नचा के उसके साथ बारिश में घूम आये थे ।
और कई सिनेमाई मौकों पे , चिपक के,  उसके हाथ का पकड़ना और झटकना , दोनों का आनन्द ले चुके थे।
ये सबकुछ प्यार के बराबर तो नहीं था ,लेकिन जब दिल टूटे तो जीने का सहारा जरूर था।
आगे इसी क्रम को अवरोही क्रम में  समझने की कोशिश करते है।
चरण एक -
लड़कियो को प्यार से पहले पटाया जा रहा था । शुरुआत लड़की के घर का पता , उसकी प्रिय सहेली , और उस छबीले लोण्डे की रेकी करने से होते थी , जो दिन रात स्कूल की लड़कीयों से गप्पीयाता था । सहेली और घर का पता तो ठीक है , लेकिन उस छबिले लड़के के विषय में थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करते है।
चाल में लचक , आवाज में मासूमियत , चहेरा साफ सुथरा
लकड़ियों से रुमाल, टिफिन , किताब और नोटबुक बेधड़क मांग सकता था। लेकिन स्कूल में बाकी लड़कों के साथ सू सू जाने , और सामूहिक धार मारने में शर्माता था। 
लड़कियों के घर जाने में तनिक भी संकोच नहीं करता था । और घर वालों में भी अच्छी पैठ रखता था।
( नोट - मम्मी दिदी ताई से निकट और घर के मर्दो से थोड़ा सा नरबसाया हुआ लगभक दूर रहता था)
छिनार लौण्डों को दूर से ही सूंघ लेता था । और उनसे दूर ही रहता था। क्योंकि उनकी हरकतों से उसे यौनशोषण की बू आती थी।
लगभक हर लड़की लड़के से हसी मजाक और सबके बारे में आशिंक लेकिन सटिक जानकारी
जैसें रजनी को ब्लू और बेबी को बेस पंसद है
प्रिया के पापा दरोगा है
पूजा का भईवा गुटखा खाता है
और स्कूल के सुपर सीनियर्स, पासआउट लोग , पहाड़ पे जाके सिगरेट पीते है ।
ज्वलंत ने, जमाने को इतने कायदे से देखा की , " कुछए "की चाल से हो रहे बदलाव को भी समझने में कामयाब हो पाया।
घर का पता सहेली से दोस्ती और छबिले लौण्डें की सटिक जानकारी होने के बाद। लौण्डें उन महापुरुषों की शरण में जाते  थे ,जो अपने अपने दौर के रंगबाज यानी प्लेब्याय और गजब के गुरु घंटाल हुआ करते थे।
इनकी रंगबाजी को कस्बें में  किसी ने नहीं देखा लेकिन किस्सों में इतना दम था की ,25 किलों का शितला प्रसाद 58 किलों की गीता को हड़का के आता है कि
एक दिन तुमको मण्डप से उठा लूंगा।
रंगबाजी के कुछ वचन , जिसको हर लौण्डें को आत्मसाथ करना होता था।
सीधे रंगबाज़ों की महफ़िल से लाइव बताए जा रहे है।
रंगबाज़ कहता है-
लड़की से पहले उसकी सहेली को सहला दो , इटमीन्स की गाढ़ी दोस्ती कर लो।
कन्या से सेंटिंग होने के बाद अपने ही यार से उसकी सहली की सेंटिग कराने का एग्रिमेंट साईन कर लो
गिफ्ट ,गुलाब  , चॉकलेट,  सिनेमा पे सहेली का भी हक होगा ये बताने में जरा भी देर नहीं ....
सहेली को घरवालों के इतर सौदो, सिटियाबाजों, और छिनारों से बाहरी सुरक्षा की पुरी गांरण्टी दो ।
दो चार लौण्डों को सहेली के आसपास ही रखों ।
लौण्डें- गुरु खर्चा और उर्जा काहे वेस्ट करा रहे है । मुद्दे का हल दिजिए ...
रंगबाज- भोषड़ी के
अगर दिल टूटा तो शर्तीया वहीं माल बनकर जपानी तेल लगाई गी  ...ये वहीं माल होती है , जो दिल टूटने पे फ्री मिलती है।

(नोट- लेखक  लेखन में सिनेमेटिक लिबर्टी ले रहा है। बिल्कुल वैसे ही जैसे परिवहन वाले गिरियाते हुवे जाम से बस निकालते है। जिसपे आप सवार रहते है ।अभद्र शब्दों को दूर से जाने दे )
किसी ने फैक्क यानी फ्रिंक्वेटली आस्क क्यूश्चन किया।
अरे गुरू हमारे यारन का क्या ...वो क्या दूखी नहीं होगे हमारा दिल टूटने से।
रंगबाज़ - भोषड़ी के
वो सिर्फ गले तक दारू पिएगे , छहिएट करेगें और ज्यादा से ज्यादा कन्या के भइवा का  पिछवाड़ा तोड़ देंगे।
फाईनली फंसो गे तुम ही
दिल के मामले में दोस्तों की सलाह से बचो। बकचोद..
लौण्डा – कसम से गुरू । फाड़ू ज्ञान था.. रंगबाज मध्यमगति,(medium Peace) से मुस्कुरातें हुए आगे बताता है।
लड़की से बात करते समय बुंलद रहो ,शर्माओं मत
खुल के किताब नोटबुक मांगने से शुरुआत करो। और दिखाओ की महान बकचोदिया करने के बाद भी, तुम्हारा मन पढ़ने में औऱ किताबों में ही लगता है।
कालेज के बाहर की टेरिटरी , यानी घर ,दूकान , नुकड़ ,बसस्टाप , मेला,  प्रर्दशनी के बाहर गलती से ही ,बार बार कन्या को दिख जाओ.
सीधा सामना हो जाए तो मम्मी को नमस्कारी और बहन को हाय बोल देना
फैक्क- गुरु कन्या का क्या उससे कुछ ना बोले...
रंगबाज- बुजरी वाले
उसकी आखें ही सबकुछ कह देंगी। गालो पे गुलाबी मुस्कुराहट मां के साथ थोड़ा लजाई हुई भी रहेगी। लेकिन ये सिम्टम्स तुम्हारे काम के होगें। लेकिन सावधान ये सिम्मटम्स ना दिखें तो समझों बाप भाई भी आसपास ही है ।
सीधे सरपट वहां से चेतक हो लो।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रंगबाज़ का जोरदार चियरप..
तुरंते अंटे से  रुप्या निकाला गया।
एक सिगरेट 8 समोसा और 3 चाय का आर्डर प्लेस किया गया ..आगे की कहानीं इंटरवल के बाद यानी चाय समोसे के बाद

वीडियो एडिटिंग में महारत होने की वजह से ज्वंलत दुनिया को अलग नजर से देखता है । वो कहता है
हर सेकेंड में जीवन के 25 फ्रेम होते है यानी  हर सेकेंड में जीवन की 25 तस्वीरे । हम चाहे तो अपनी लाइफ को इतनी बारीकी से देख सकते है ।
और उसमें इतना बारीक फेरबदल कर सकते है कि किसी को पता भी ना चले। वो बातों को भी पिरामिड मेथड  और दृश्यों के सिनेमेटिक माध्यम से सुनाता है । इसलिए अब वो रंगबाज़ और लौंडों को बीच में छोड़ कर  दूसरे दृश्यों की तरफ बढ़ जाता है। उसका मानना है कि एक ही बात एक ही किरदार जादा देर तक पर्दे और बातों में रहे तो ऑडियंस बोर होने लगती है ।
दृश्य 2
ज्वलन्त कहता है की
हमारे जमाने में भी कन्या और उनकी सखिया प्यार करने से अभी बहुत डरती थी। लकिन ये जरुर चाहती थी कि कोई उनसे भी प्यार करे।
लड़किया लड़कों को देख कर शर्माती और इतराते भी थी लेकिन इतना भी नहीं की लड़के ताड़ जाए ।
प्यार इतना कॉन्फिडेशियल और क्लासिफाईड था कि बगल में सोने वाली छोटी बहन ,राह चलता भाई ,और हर वक्त जवानी पे नजर रखने वाली मां को भी ,
इस बात की भनक नहीं लगती थी कि लड़की प्यार में है।
लड़कियों के लिए आज भी घर के अलावा स्कूल में
कुछ छुट पूट म्यूचल सखिया कम्यूनिकेसन का मीडियम हुआ करती थी , और स्कूल की किताबों में गुलाब छोड़ जाने वाले लावारिस आशिक । ये लावारिस आशिक वो लौण्डें हुआ करते थे, जिनमें हिरोईस्म और फेंटेसाईस करने का हुनर कम था । उबड़ खाबड़ से दिखते थे। लड़किया इनको च्वनीछाप समझती थी। भाव देना तो दूर  मालिक। अपने भाव को ही शून्य कर लेती थी ।
ज्वलंत की नजर से
आने वाले हरजाई वक्त में, बिना किसी लाग लपेट के , यहीं लावारिस आशिक, उन तमाम लड़कियों के भावी वर बने । जिनको देखकर उन्हें कभी उल्टी तो कभी घिन्न आती थी।( नोट जरुरी नहीं की वहीं लावारिस आशिक जो स्कूल कॉलेज में था । ये कोई भी हो सकता है लेकिन बिल्कूल वैसा ही जैसा कि लिखित चित्रण में समझाया गया है)

समाज का बदलाव अक्सर बहुत महीन चाल चलता है।
किसी को पता तक नहीं चला की ये लवारिस आशिक कब पढ़ लिख के सरकारी, अर्ध सरकारी और प्राईवेट सेक्टर में अपनी तरह के डाक्टर इंजीनियर और बैंकर बन गए। और समाज की प्रतिष्ठित मुख्यधारा में शामिल हो गए। समाज ने भी उनका अभिनंदन किया । और ये वरदान दिया की किसी भी खुबसुरत लड़की पे पहला हक उनका ही होगा। लड़किया पुरे गाजे बाजे के साथ उनके घर तक आएगी , वो भी बिना किसी शर्त। पैसें की चमक और शख्सियत का सम्मान हो तो ,फिर क्या कुछ नहीं किया जा सकता । चेहरे का रंग रोगन हो गया , उबड़खाबड़ मुखड़े को समतल और बालों को करिश्माई तरिके से काटा और सवारा गया। कन्या के पिता से झुक कर पल्गी क्या हुई,
घर आने का निमंत्रण मिल गया ।
और सीधे मुहं पे गरियाने वाला लड़की का भइवा जीजा ना भी बोले, पर भईया भईया कर के चिचियाने लगा। गजब का ताबड़तोड़ परिवर्तन आता है समाज में , जब कोई लावारिस आशिक डाक्टर इजीनियर या बैंकर बनता है।
सामाजिक भेदभाव का सारा ठिकरा और बालतोड़  फुटा तो सिर्फ जवान , तेज ,आहत, आशिकमिजाज और रंगबाज लौण्डों पे ।
ये दौर सच्चे आशिकों की साख पे बट्टा और सख्या में गिरावट ला रहा था।
अब भारी सख्या में इंजीनियरिंग ,मेडिकल और एमबीए कॉलेज खुल रहे थे ।  सीधी भर्ती और 100 प्रतिशत प्लेसमेंट का दम भरते विज्ञापन , जहां तहा टंगे और लहराते दिख रहे थे।  लौंडों ने सस्ती लोकप्रियता , सामाजिक प्रतिष्ठा और पारवारिक गुंडागर्दी के आगे घुटने टेक दिए । और ऐसी ही  किसी संस्था में जाकर  दाख़िला ले लिया , जो मैनेजर डॉक्टर इंजीनियर बनाने का सिर्फ और सिर्फ भ्रम फैला रहे थे।
इनमे से कुछ तो ऐसे थे , जिन्होने बार बार कई बार लगातार अपना चूतिया कटवा लिया । क्योंकि ये एम बी ए होल्डर , बी टेक धारक डॉक्टरेड से विभूषित थे। इन शॉर्ट शायद कुछ भी नहीं थे। उनका भविष्य कुछ ऐसा था
रातजग्गा करने वाले चौकिदार बने
घंटी बजाने वाले प्यून बने
कुछ सड़कछाप गीतकार संगीतकार बने
तो कुछ हीरो बनने बम्बई चले गये।
इन सब के बीच
कुछ ऐसे प्रतिभावान थे ।जो इंजीनियरिंग के बाद आजतक आईबीपीएस और बैंकिंग की तैयारी कर रहे है।
कुछ ने एम बी ए के बाद  पीएचडी की और जो पानी कम थे बीएड बीटीसी करके फ्री भर्ती एवम पहले आवो पहले पावो वाली योजना के इंतज़ार में बैठे है।
ऐसे बिगड़े हालात  शायद कुछ भगवान की, या फिर कुछ फुद्दू  क्रोमोसोंम की गलती थी । लेकिन यक़ीन मानिए उस दौर में ऐसा सच मे हो रहा था।
अब प्यार ,अहसास ,और छुअन के मायने बदल रहे थे। और इसी क्रम में इमरान हाशमी, गले की छुअन वाले अहसास को ओठों तक लाने में कामयाब हो पाए । लिपलॉक ,फ्रेच किस और लिपकिस जैसें ,"कानफिडेशियल "शब्द बड़े आराम से बोले और समझे जाने लगे ।
इसी दौर में
क्या तुमने बीएफ देखी है ?और क्या तुम वर्जिन हो? जैसें सवालों ने पहली बार एक लड़की ,जैसी तमाम लड़कियों को झकझोर दिया । क्योंकि इस देश में अब तक, लड़किया या तो विदाउट सेक्स कुंवारी होती थी । या फीर सेक्स करने वाली शादीशुदा आर्दश महिला । बदलाव के इस दौर में लौण्डें पइसा मसक के मोबाईल फोन दनादन खरिद रहे थे । तो वही दूर पढ़ाई करने वाली कन्याओं को सुरक्षा की गांरटी मानते हुए मोबाईल फोन बाटा जा रहा था।
आगे के कुछ और पन्नों में उस दौर को फिर से जीने की कोशिश करेंगे और ये जानने की भी कोशिश करेगे की नायिका और अपराजय को ऐसा क्या पता है ज्वलंत के बारे में जिसके सबूत कहानीं में भी नहीं मिल रहे है।
शायद ज्वलत भी कहानीं में एक किरदार ही है
या फिर । वो दौर ही ज्वलंत था। जिसमें नायिका और अपराजय जैसें करिदार अपनी वास्तविकता को बचाने में उसे ही बेच रहे थे ,जो वास्तविक था।