Monday, January 8, 2018

चमत्कारी झालर

चमत्कारी झालर 
जी हा साहिबान ये शहर बनारस है।  बात एक ,मगर तड़क के, झटक के, मेलह के, सलेह के, बोलने से बात का मतलब बदल जाता है।मामला, माल, चिरई, ठुल्ली ,नमकिन, मलाई, लग्घड़, लेना देना ,ऐसे सैकड़ो शब्दों का प्रयोग कई अर्थो में किया जाता है।
यहाँ कोई किसी की परवाह नहीं करता कोई नहीं डरेगा आपकी औकात से , घण्टा कही के होंगे आप लार्ड साब, इहा बजता तो बस बाबा विश्वनाथ का है।
पान घुलाये,चबूतरे पे तशरीफ़ सिकोड़ के बैठा, पगलेट सा दिखने वाला यह शख्स ,जिसे आप बहुत देर से बौड़म समझ रहे थे,अचानक से उठकर आपकी हकीकत में ऐसे,ऐसे रंग भर सकता है जिसकी कलल्पना भी आपने  नहीं की होगी। सांड भांड साधु सन्यासी के देश में ये एकलौता चित्रकार है ,जो चित्रों से चमत्कार करता है ।
कैसे, आइये खुद ही देखते है।

दृश्य 2
चित्रकार झालर गुरु  - ए माई लंगड़ा आयल का।
(माँ अभी चूल्हे में फुक मारे, करीयाह (कमर ) पकड़ के ऊठ ही रही थी की प्रवेश द्वार से एक आदमी का प्रवेश)

सिपाही धरम सिंह
( चहरे पे नाराजगी के भाव के साथ)
  हां । हू मैं लंगड़ा सब बोलते है , तुम भी बोलो लेकिन कभी ये लंगड़ा, काशी नरेश का सबसे तेज पैदल सिपाही था । एक फलांग में पांच पाँच  कोस नाप दिया करता था। लेकिन आज एक लाचार, लंगड़ा है जो भविष्य में यातायात डिपो के पास तीन पहिया साइकिल पे पान ,बीड़ी ,सिगरेट  बेचेगा ।

चित्रकार की माँ दुलारी देवी - बाबा इलाइची पल्स क गोली और चना जोर गरम भी गिन दा घासड़ी के
अरे इ तो पगला हौ पर तु कहे अचरज का चोदल हुउआ।
दु दिना (दिन) से लंगड़ा आम मांगत हौ,
और खाये से पहले ही भुला जाथ हौउ।

सिपाही धरम सिंह ( भाव भंगिमा और शारीरिक ऐठन में भारी बदलाव करते हुवे सहज मुद्रा में) माँ की बात को जब्त करके झालर गुरु की तरफ देखते हुवे
क्षमा करना
क्या तुम्ही हो झालर गुरु
झालर - अरे ना बुजरो के हम तो बस झालर हई ,उ भी अनाथ ,गुरु उपनाम त हर बनारसी से चिपकल हउ।
सिपाही -बहुत सुना है तुम्हारे बारे में क्या तुम मेरी टांगे ठीक कर सकते हो।
झालर- पान की पिचकारी मारते हुवे।ई कौन बड़ी बात हौ। खण्डन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी।
जा राजा का गोटी जाके चबूतरा टिका ला।
(सामने रखी कुर्सी पे सिपाही बैठ जाता है और झालर अपने अन्टे से ब्रश निकालकर उसका चित्र बनाने लगता है।)
झालर - ए लघ्घड़ गुरु बूंद बूंद उठा।
सिपाही - अरे मै तो खड़ा हो गया। देखो मै तो चल भी रहा हो, तुम तो देवता हो ।आज से ये पैदल सिपाही तुम्हारा गुलाम हुआ ।मुझे अपनी शरण में लेलो, मुझे अपने पास ही रहने दूँ बस ये एक अहसान मुझपे और कर दो।
झालर -महादेव के कृपा से हम इ बूढी माइ के आसरे और अब तू बुजरो के हमरे आसरे । ए माई भभूत लगा के स्वागत कर अपने नया लइका के। आवा रजु पिछाड़ी सम्हार के।

थोड़ी देर बाद अवध के एक नवाब और उनकी  बेगम जान झालर गुरू के यहाँ तशरीफ़ लाते है ।
बेगम - बहुत आश के साथ आयी हूँ क्या आप अपने रंगो से मेरी सुनी गोद भर सकते है। बुरुश चला के बच्चे की किलकारी मेरे आँगन में सुना सकते है। हर पीर बाबा, मजार, दरगाह, मन्दिर में मेरी आरजू की अर्जी रखी है। क्या आप मेरी आरजू को हकीकत बना सकते है ।

झालर गुरु बुरुस चलाते है और स्त्री को मात्रत्व का सुख मिल जाता है।

थोड़ी देर बाद
लकड़ी की सलाई से स्वेटर बुनती बूढ़ी औरत और उसकी बेटी का प्रवेश
मेरी बेटी की शादी है झालर गुरु ,
कल मॉर्निंग तक बिटिया के गहने ना बने तो डोली नहीं अर्थी उठे गी मेरे घर से वो भी दो दो

झालर - अरे नयका ज़माने क ओल्डमौंक भौजी दोबारा पलट के देख ला कन्या के सज गइल गहना गीठो में।

दृश्य तीन
कशी नरेश का दरबार
राजा- महामंत्री। सैनिको के सीधी भर्ती के बिसय में कौनो खोज खबर
कब तैयार होंगे हमार यूनिवर्सल सोल्जर कब आएगी बफोर्स टोपे (तोपे)
मंत्री - घण्टा तैयार होंगे यूनिवर्सल सोल्जर
राजा - महामंत्री अभिये पटक के मारब तोहे बुजरी के....
अरे सरकार आप तो पिनक गए डोन्ट बी हाइपर ।
कूल कूल ठंडा कूल
नवरतन। काशी नरेस (नरेश) के केस में तेल लगावो
पंखा हाक रहा नवरतन काशी नरेश के बालों में तेल चपोड़ने लगता है।
राजा- बश बश रात में तकिया खराब हो जाएगी .
एक तो साला हम इस श और स बने सब्दों से  बड़े परेसान है ।
महामंत्री- मालिक स और श से तो आप क्या पूरा उत्तर भारत परेसान है । काशी में आपकी कृपा से बश आच भर है असली आग तो पाटलीपुत्र और नालंदा में लगी है । आज भी वहा लोग सड़क को सरक ही बोलते है ।
राजा- अरे छोड़ो ये डिक्शन की फिसलन
तुम यार महामंत्री विस्तार से सैनिकों की भर्ती के बिसय में शमझावो पहले
महामंत्री - क्या कहे काशी नरेश
आपके साले और वर्तमान सेनापति बब्बन गुरु ने तो अपने सगे सम्बन्धी और दोस्त यारन को सेना में भर्ती कर लिया है । जो दिनभर भांग पी के मस्त रहते है और रास्ते भर कन्याओ के साथ खालीपीली खिलवाड़ और छेड़ छाड़ करते रहते है।

राजा - महामंत्री ये खालीपीली तो बनारसी नहीं बम्बईया लगता है । डोंगरी में पाया जाने वाला शब्द है ।
महामंत्री- क्षमा करे महराज ये शब्द डोंगरी का नहीं भिंडीबाजार का है।
अच्छा ये शब्द मंथन छोड़िये आपको संज्ञान भी है की इस बार गोला बारूद का ठेका बब्बन गुरु ने किसको दिया है ।
राजा - महादेव बचाये इस बब्बन से
किस चांडाल को दे दिया है ठेका उजागर करो

महामंत्री -  गोला बारूद का ठेका दे दिया है महा दलाल पेलू पाण्डे को फिर कैसे बनेगी आपकी यूनिवर्सल सेना और कैसे होगा सिविल वार । आप केवल महारानी और पटरानियों के कोल्ड वॉर के मजे लूटते रहिये।
राजा- फिर हम क्या करे महामंत्री
साला नहीं हमारी जुबान का ताला है बब्बन ।
महामंत्री- एक उपाय है ।
राजा - अब क्या शार्ट कमर्शियल ब्रेक लोगे
बिना एड ब्रेक के उपाय  हाली हाली(जल्दी जल्दी) बतावो ।
महामंत्री - काशी नरेश राज्य में एक चित्रकार है जो की जी एफ एक्स तकनीक से लैश है । जो भी चित्र बनाता है साक्षात प्रगट हो जाता है।
दरबारियों में हलचल और सब फुसफुसाने लगते है कि ,भविष्य की तकनीक वर्तमान में कैसे ।

राजा -भांग क भनक त रहल हम्मे लेकिन आज गांजा चढ़ा के आया है क्या बे
महामंत्री - एक एक शब्द बिना हैंगओवर के बोल रहा हूँ काशी नरेश । फिर भी चुल मची है तो स्वयम चलकर देख लीजिये ।

राजा - ये बात है तो चलो फिर ।
दृश्य 4
महामंत्री और काशी नरेश साधारण मानस के भेष में झालर गुरु के पास पहुचते है।

राजा- कोसो दूर से आये है । भर्ती देने । सुना है काशी में सैनिकों की सीधी भर्ती चल रही है । लेकिन ना असलहा है ना घोड़ा ।
झालर गुरु - (मघई पान घुलाते हुवे )
तलवार चाही की भाला

राजा - ऐसी छपा छप तलवार बना दो  गुरु जो दुइ इंच सीना चीर के लहू पिए लागे l
महामंत्री - मुझे एक घोड़ा दिला दो जो चेतक के सामान सरपट सरपट भागे हुर्रर्रर्रर्रर्र..टकाटक टकाटक

झालर गुरु -खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी मंतर पढ़ चित्र बनाने लगता है ।
राजा के हाथ में तलवार आ जाती है और महामंत्री खुद को काले अरबी घोड़े पे बैठा पाता है।

दृश्य 5
राजा - महामंत्री  रात में , दो चार भगेड़ी नशेड़ी सिपाहियों का एक टास्कफोर्स गठित करो , जो खुफिया काम करने में माहिर हो और भेजो चित्रकार के घर ।
महामंत्री - इस काम के लिए हमे सेनापति बब्बन के लीडरशिप की जरुरत होगी महराज । अक्सर उनके सिपाही ठेठरी बाज़ार में टोटी, टंकी, लोहा ,लकड़ ,पीतल, कस्कूट बेचते नजर आते है ।

दृश्य 6
"बब्बन" सरसो तेल पोत पात के, भांग ठंडई छान के, घुप अंधेरे में नसेड़ी "भुतालि" के साथ पक्का महल कॉलोनी की और कूच कर देता है। 

चोर की की बंद जुबानी वाली चकक्लस के बीच झालर की नींद खुल जाती है ।

झालर - चमगादड़ उल्लू की तरह शायद इन भूतों को भी रौशनी रास ना आती है।
काहे हमार रहस्यमय नींद में खलल का बीच बो रहा है बे, ऊभी अंनिहारे में
बेटा एक हुरा लगी तो अस्सी से दशसुमेत पे डुबकी समाधी ले लेबे। चल भाग इहा से

बब्बन - का करे झालर महराज हुमहो एक चितकबरा चित्रकार हई ।

झालर -बनारस में जेबरा (जेब्रा) कहा से आ गईल बे इहा त बस घड़रोज आवेला ।

बब्बन - रंग ,बुरुश ख़रीदे बदे पूजी में बस चिलर रहल । एहि बदे आपके घरे हाथ मारे आ गइली। इहा( यहाँ)  त रगंन का रेला बा और बुरुश का भंडार हउ । इ ही चकर में बौरा गइली और एक हाथ से रंग क शीशी छलक गइल।

झालर -धत गांडू , डोमड़े ,कुजड़े ,हत्यारे ,वर्णशंकर वैशाखनंदन इधर आ । ले जो इ कुल तामझाम लागलपेट अत्यन्त से तुरंत और पुलका ले अपने जिनगी के।
बब्बन सबकुछ समेट चम्पत हो जाता है
झालर - देखा बुजरी वाला भांग भबूत भी ना छोड़लस ।

दृश्य 7
राजा का महल- महामंत्री  का प्रवेश
सरकार का भोकाल टाइट रहे सरकार यूनिवर्सल सोल्जर  और मैट्रिक्स क सेना बनाये बदे आपन योजना सफल हो गइल ।
राजा- बकचोदी ना करा मशका मत छिड़का सीधे सीधे मामला बतावा घासड़ी के
चण्डाल बब्बन चित्रकार के घरे से पेल के मजे क रंग,भभूत, भाग, और बुरुंश का पिटारा ले के आयल हउ ।
राजा- अदभुत । आज बब्बन गुरु को पुरे दिन भांग ठंडई और अफीम पान से बमबम बूत कर दिया जाए ।
महामंत्री - दास के साथ प्रयोगशाला में मूव करे सरकार
छत्तीस चित्रकार कुल यूनिवर्सल सेना बनाए में लगल हउन ।
राजा - हमारा एयरफ़ोर्स रथ तत्काल तैयार किया जाये महामंत्री

दृश्य 8
राजा -  झटांस, झटांस ( अत्यंत क्रोध में)
झोली में झटासं नहीं बारी में डेरा
साइड से झांकता सूत्रधार - नोट झटांस किसी भी वस्तु को नापने की सबसे न्यूनतम इकाई को बोलते है)
राजा - महामंत्री यूनिवर्सल सोल्जर तो क्या एक पैदल सिपाही भी पैदा नहीं कर पाये इ तोहरे पावभारी चित्रकार और ऊपर से पान की पिच पिच से पूरी प्रयोगशाला पिचपिचा दिए है ससुरे

महामंत्री -  क्षमा करे महराज लगता है की जी एफ एक्स के गुण रंगो में नहीं उस चित्रकार के हाथो में है।
राजा - बुजरी के अब दांत ना निपरो  ,गुर्गो को बोलो, जाएं और धर के लॉए ससुरे को।

सारथी झटक के ले चलो हमे ठुमरी बाई की हवेली पे
पूरा मन "अंधेर नगरी चौपट राजा" हो गया।

दृश्य 9
(राजा का सभागार , हथकड़ियों में जकड़ा झालर)

राजा-झालर गुरु तुम हमारे लिए यूनिवर्सल सैनिको की एक पूरी सेना बनावो । जिसमे कप्तान अमेरिका हो , बाहुबली हो , ब्लैकविडो और लोहा सिंह यानि आयन मैन हो और हा बब्बन को बैटमैन और भुतालि को स्पाइडर मैन बना दो।
झालर - केवल इतना ही

राजा - अच्छा सुनो  तुम इतना कह रहे हो तो कटप्पा जैसा सेनापति भी बनावो साथ में कुछ ड्रोन, बम वर्षक राफेल विमान और मिग 21 22 23 का अपडेट वर्जन भी बनावो एवम कुछ राडार का भी सृंगार कर दो।

झालर गुरु - महराज गुंडई मत बतिआवा
हम कलाकार हई बुझला की ना इ हमार विद्या हउ तू ऐसे पार ना पइबा
लेकिन इतना ही तोहे सनक चढ़ल हउ तो हम बना देब।
खंडन कह खंडन करी मंडन कह मंडन करी

और झालर के सामने वहीँ रंग बुरुश का पिटारा खोल दिया जाता है जिसे बब्बन ऊठा लाया था झालर बब्बन को देख के जोर से हस देता है।
अबे तेहि रहले ना ओ दिन हैं और हँसते हँसते ही
चित्र बना देता है।

दृश्य 10
राजा- महामंत्री ,युद्ध का शंखनाद कर दो , आज होरी के शुभ अवसर पे, हम खून का होरी खेलब इलाहाबाद के इराक कर देब जौनपुर के सीरिया कर देब ,शपथ हैं चचा सैम क।
महामंत्री - सैनिकों युद्ध  का प्रदर्शन करू
शंखनाद की जगह बिस्मिलाह खान की सहनाई बजने लगती है , राफेल विमान बम वर्षक की बजाय भांग वर्षक बन जाते है । राडार फूलों की खुश्बू का पता लगा कर महक को खिलने से पहले ही फ़िज़ा में बिखेर देता है । बाहुबली ,कट्टप्पा ,आयन मैन, ब्लैकविडो, जैसे सैनिक भांग के मजे, मस्ती में हर हर महादेव और बम बम महादेव का उदघोष करने लगते है । इसबीच स्पाइडर मैन उछल कर राजा को अपने साथ ले आता है और राजा भी उनके सुर से सुर और ताल से ताल मिला के नाचने गाने लगता है।
और इस बीच झालर गुरु कहता है।
काशी नरेश
हम तो कलाकार है
दर्द के रंगों से प्यार बनाते है
टूटते तारों से खुशियों की हसरते बनाते है
अश्रुओं से फरियाद के मोती बनाते है
ख्याब सजाते है जज़्बात बनाते है।
हम तो कलाकार है दर्द के रंगों से प्यार बनाते है

सेना शांति के लिए होती है काशी नरेश बनारस की जनता आपको अल्हड़ समझती है अहंकारी नहीं । आपकी सेना युद्ध के लिए नहीं शांति और सुख के लिए होनी चाहिए । इतने में बब्बन और भुतालि झालर को आलकी पालकी बोलते हुवे कंधे पे ऊठा लेते है।
और काशी नरेश हर हर महादेव का उदघोष करते हुवे झालर गुरु को अपने ह्रदय से लगा लेते है।

Friday, January 5, 2018

स्वातिजीत सिंह का "प्रेम-कांड"

अध्याय एक
जीतसिंह उर्फ़ कांडी, एक बनारसी, बदनाम और बम्फाट लौंडा । मुहचोदी,बकचोदी में अधिकांशतः समय व्यतित करता था और यदाकदा ही हमारे विद्यालय, "सरस्वती विद्या मंदिर" में दर्शन देता था ।
दुर्गा पूजा ,विश्वकर्मा पूजा, सरस्वती पूजा, जैसे मौके पे ये कांडी बालक निष्क्रियता त्याग, पुरे फॉर्म में सक्रिय हो जाया करता था और अक्सर मोतीचूर के नाम पे पुरे सकूल को आटे का चूरन चटा दिया करता था ।
जब हम  सारे बालक , बालिकाएं कतार में प्रार्थना कर रहे होते
वह कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाता था, और प्यार में मारे हम दीन-हीन निबलों-विकलों का सेवक बन, उन कन्याओं की किताबों में प्रेमपत्र डाल दिया करता था जिनसे हम इजहार ए मोहब्बत तो क्या दो बोल जिंदगी के भी बोल नहीं पाते थे।

कांडी, हमारी उन बातों को भी बड़ी सहजता और बेबाकी से गुरुजन के समक्ष प्रस्तुत कर देता था जिन्हें हम केवल सुन पाते थे किन्तु समझ नहीं पाते थे । बाल्यकाल में, कुछ प्रश्न जिनको सुनते ही हम खिखिया के खिसनिपोर देते थे मसलन वीर अब्दुल हामिद हर रोज 200 "दंड" कैसे पेला करते थे ?
महर्षि दधीचि के "अस्थिपंजर" क्या थे?
"कार्बन डाई आक्साइड " आदा पादा वाली प्राण घातक गैस तो नहीं?
ऐसे प्रश्नो को प्रश्नकाल में गुरुजनों के सामने सिर्फ कांडी ही ऊठा पता था ।
ऐसे ही ढ़ेरो किस्सों के बीच हमारा बैच उस दौर में चला गया जहाँ पूरा बैच बायो,कला और मैथ के स्टूडेंट्स के बीच बट गया । अधिकतर कन्याओं ने कला वर्ग में, छुटपुट ने बायो में और एक,आध ने मैथ विभाग में खुद को जमा करा दिया । जीत के सगे साथियों, जिनमे पोटास कम और पढ़ने की बजाय रसिक होने की ललक चरम पे थी, उन्होंने आर्ट ले लिया लेकिन जाते जाते कांडी को मैथ लेने के लिए प्रेरित कर गए ।
कांडी इंटर कैसे पास हुआ ये एक रहस्यमय बात थी क्योंकि उस साल बोर्ड की परीक्षा में उड़ाका दल ने आतंक मचा रखा था । सफल विद्यार्थियों का प्रतिशत मात्र 40 था और कई नामचीन पढ़ाकू लड़के नप गए थे। आगामी गत वर्षों में कांडी ने ये रहस्य उजागर किया कि प्रश्नपत्र के 30
प्रतिशत प्रश्न रेंडमली फस जा रहे थे ,जो उसने गेस किये थे । मैथ और अंग्रजी के पेपर तक कन्याबाज़ी से सन्यास और हुनमान चालीसा का अखंड पाठ भी  उसके कथनानुसार बड़े काम आया था ।
आने वाले समय में हमारी ही समकक्ष स्वाति सिंह से जीत को कर्रा प्यार हुआ जो दूर के रिश्ते से उसकी रिश्तेदार भी थी । अक्सर इसी रिश्ते को कैलकुलेट करने में कांडी ने हमे प्रथम बार ब्लड रिलेशन वाले प्रश्नो से अवगत कराया जिसका सामना मुझे भविष्य में एसएससी और आईबीपी एस के एग्जाम में करना पड़ा  । तदोपरांत  मुझे समझ आया की स्वाति, जीत के मम्मी के भाई की पत्नी की बहन की लड़की अर्थात उसकी मामी की बहन की लड़की थी।

पाँचवी तक, जीत और स्वाति एक ही रिक्शा पे  बैठ के स्कूल आया जाया करते थे लेकिन भविष्य में जीत की आवारा छवि और स्वाति की पाकीजा सुप्रीम छवि के बीच इतनी असमानता आ गयी की स्वाति ने पहले उससे बात करना, फिर उसे देखना बंद कर दिया और अंत में उसे और स्कूल दोनों को ही छोड़ के किसी अन्य विद्या मंदिर में दाखिला ले लिया । टीसी , सीसी तो उसके बाउजी पहले ही बड़े बाबू से उड़ा ले गए थे।
उम्मीद तो बस इतनी थी कि स्वाति आखरी बार हम सभी से मिलने जरूर आएंगी।
ये पहला मौका था जब हमारा लव मैसेंजर हमारे लिए नहीं बल्कि अपने लिए एक आखरी ख़त प्रार्थना से पहले स्वाति की किताब में पोस्ट करने वाला था । लेकिन स्वाति नहीं आयी और फिर कभी नहीं आयी

अध्याय दो
बचपन की बाली उम्र से निकल कर स्वाति जवानी की दहलीज में खड़ी थी । ब्राइटनेस, कंट्रास्ट और कर्व शेप वाली स्वाति को देख कर आहे भरना तो लाज़मी था । बीएचयू में मनोविज्ञान से ग्रेजुएट हो गयी थी और भविष्य में साइकैट्रिस बनने के लिए वचनबद्ध थी । अपनी विश्वनीयता और डोमेस्टिक क्षेत्र में भी अपनी विख्यात विशेषज्ञता के कारण मौसेरी बहन की शादी की सारी कमान सम्हाल रही थी ।
अकस्मात ही वहाँ जीत को देखकर चौक जाती है जो चौकस निगाहों से उसे ही देखे जा रहा था । खैर इग्नोर करना भी ठीक नहीं था इसलिए हाइ ,हेल्लो कर दिया । जीत ने भी अपनी ममेरी बहन के कंधे पे हाथ रखते हुए पूरी लीनता के साथ अपने छिछोरे पन की झलक दिखला दी।

जीत- आजकल किस गुफा में निवासस्थान है देवी, कभी हमे भी श्रद्धा दिखाने का मौका दो ।
चंडी ने चांडाल को देखा या यूँ कह ले की घूरा और वहां से चलती बनी ।
ममेरी बहन पूजा- कांडी कर दिए ना कांड,
पता है , कितना इंसिस्ट किये तब जाके आई है । ढंग से बात भी करने नहीं आती ।
जीत- अब हम का बोले बे तीन साल बाद देखे है जज्बात अपनी जुबान बोल गए, अब क्या हाय स्वाति हाउ आर यू , लॉन्ग टाइम नो सी, वेयर आर यू लिव दिस टाइम, प्लीज़ गिव मी अ चांस टू  टॉक विद यू अब इ सब बोले का
मॉर्निंग से सबने तांडव मचा रखा है कि बी एच यू से पढ़ के आयी है । अरे उनके लिए ये खास बात होगी ,हमारे साथ तो स्कूल में पढ़ी थी ।

पूजा- बेटा तुम रहने दो। तुम अब भी स्कूले में ही हो । घोड़ा हो गए हो लेकिन तनिक भी बुद्धि ज्ञान नहीं आया ।
जीत के पास जवाब तो था परंतु बहन से सर कौन फूटाये , फूटानी और फूटना तो स्वाति से था ।
दिन घँटे दर घटे चढ़ता रहा
कांडी स्वाति के अगल बगल मंडराता रहा। सबकुछ एरेटेटिंग और अख्तियार के बहार हो रहा था। जीत स्वाति को तबियत से तंग कर रहा था और स्वाति का पारा चढ़ता लेकिन भून भुना के रह जाता । आखिर में स्वाति ने बोल्डनेस दिखाई ।
स्वाति - जीत लड़किया छेड़ते हो या छोड़ दिए ?
जीत के साथ घर के सभी सकपका गए
स्वाति-अख़बार में, तुम्हारी एक फ़ोटो देखे थे।
ख़बर पढ़े तो ज्ञात हुआ कि तुम लड़किया छेड़ते हुवे धरे गए थे ।
आर्यमहिला कॉलेज के सामने ।
पुलिस वालों ने फिर सोटा सोटा पीटा था और कुकड़ू कू भी कराया । हमको तो बिलीव नहीं हुआ सोचा तुमसे ख़बर की पुष्टी कर ले।

स्वाति की औचक बयान से जीत समेत पूरा सिंह परिवार बगले झांकने लगा , हलक में ना स्वर थे ना व्यंजन । स्वाति के विश का जीत के पास कोई काट नहीं था । चुप रहा और खून के घुट पिता रहा। 
खैर दिन बिता सदमे में शाम आई उदासी बन और रात कटी बिना मच्छर दानी के।
नया दिन, जीत मन हल्का करने निकल ही रहा था की घर के एक बुजुर्ग मुँह में दातुन चबाते चबाते ही बोल पड़े
दिन शुरू ना हुआ अय्यासी काटने निकल लिए बुजरो के। ये महानभाव नाना के छोटे भाई थे जो कबर में लटके लेकिन जिन्दा कारतूस थे ।
खैर जीत ने बुढ़उ को शालीनता से देखा और दमसियाते सरक लिया ।
जीत की नज़र में दमसियाना या चुप रहना भी अपनी तरह का गरियाना ही होता है । बड़े बुजुर्ग ,और ताकतवर को समाज में मौन रह के ही तो गरियाया जाता है ।
आगे के घटनाक्रम, जीत के लिए और भी विकट और विकराल हो गए क्योंकि अब बड़े ही नहीं छोटे भी उसे छोटा दिखाने लगे । जीत का हँसी मजाक और चुहलबाज़ी - करतूत,कारनामे और बर्बादी के लक्षण में बदल गए । नाते , रिश्तेदार पिंच और पिंगल देने लगे जो खुद कई अराजक और अनैतिक कर्मो में लिप्त थे लेकिन यहाँ कालिया तो सिर्फ जीत की कारिस्तानियो की खुल रही थी।
घर परिवार और रिश्तेदारों में जीत के प्रति आये बदलाव को स्वाति भी देख रही थी । उसे ये अहसास भी हो गया की ये तो जरूरत से ज्यादा हो गया है ।
लड़कियो में होने वाला अहसास भी पुलिस के समान होता है । कांड होने या घट जाने के बाद ही आता है। एक उदाहरण लीजिये
जब मुझसे ये हो गया तो मुझे ये अहसास हुआ की ये मुझसे क्या हो गया ऐसे ही कुछ अहसासों से स्वाति भी द्रवित थी।
शादी भी फाइनली हुल्लड़ बाजी, धूम्रपान और धूमधाम से सम्पन्न हुई और जीत भी डिपार्चर के लिए तैयार था । निकल ही रहा था कि स्वाति का सामने से आगमन हुआ ।

स्वाति- (उसी अहसास के उधेड़बुन में) जीत प्लीज़ मुझे माफ़ करना मै नहीं जानती थी कि मेरे बोलने से तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव होगा।

जीत - तुम सब जानती थी, यहाँ से चली जा वरना यही खड़े नाप दूंगा । मैंने बहुत बुरे काम किये है  लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा क्या किया था बे
मस्ती मजाक तो कर रहा था और उसके एवज में सरे आम इज्ज़त उतार दी ।

स्वाति को कुछ और भी ज्ञान देना था लेकिन वो सहम गयी और जीत बोलते बोलते ही वहां से चला गया।

अध्याय 3
मेरी नज़र में यथार्थ और यूपीएससी आधिकारिक रूप से सर्वप्रथम आपका भ्रम तोड़ते है। अगर आप इस बात से इतेफाक नहीं रखते तो इसे मेरी नजर का दोष समझिये गा ।

स्वाति ने जीत पे प्रहार भी घात लगा के किया था ।

आहत, बेबस और बर्बाद जीत इलाहबाद आ गया।
सुनी सुनाई बातों को अमल करने ।
सुना था, सिविल सर्विसेज की तैयारी आदमी को खोल के रख देती है । अस्तिव पे चोट खाए कई लड़के बिलबिलाए गए थे और जिला जीत के निकले ।

उग्रता और प्रतिशोध कुछ दिनों तक बड़ा काम आया । कांडी दिन रात डीएम बनने में लगा रहा
आखिर दिन भी आ गया, नतीजे का।

यूपीएससी परीक्षाओं में जीत असफल हुआ लेकिन आपकी तैयारी आपको कही ना कही स्थापित  जरूर करती है ।
जीत को बी एच यू में दाखिला मिल गया और अब वो मास्टर ऑफ मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने लगा ।
मालवीय जी के प्रताप से गंगा किनारे की बलूवा मिट्टी दोमट बन चुकी थी । बी एच यू में जीत का इंटर , इंट्रा और ग्रुप कम्युनिकेशन मिग, मारक और तूफानी हो गया ।
उर्दू की मिठास और हिंदी की क्रांति को उसने अपने लेखन में ऐसा पिरोया की हिंदू यूनिवर्सिटी में छायावाद लौट आया।
स्पंदन में अनवरत 52 घंटे तक, प्रेमचंद जयसंकर प्रसाद ,भारतेन्दु जी के गद्य पद्य और नाटक का मंचन कर ताबड़तोड़ भोकाल टाइट किया लौंडे ने  ।
जिंदगी आसान किस्तों में चल पड़ीं और अतीत का कांडी पूरी यूनिवर्सिटी में क्रांतिकारी बन गया ।
इस बीच भाव भंगिमाओं और मुद्राओं से मन का समाचार समझने वाली स्वाति, सनसनीखेज भावनावो में उलझ के रह गयी थी।
आज कॉलेज से लौटते वक़्त बिरला हाउस में  जीत को गाते सुना,

वो बीती बात को दिल तक ,लगाए लौट आया हूँ।
जरा सी बात ही तो थी, बताने लौट आया हूँ।।
वो टूटे दिल के टुकड़ो को ,लुटाने लौट आया हूँ।।।

स्वाति को बिसरी बात याद आ रही थी । उसने बचपन और जवानी के बीच में कही जीत को भुला दिया था ।
जो आज लौट आया था।
ना जाने क्यों लौटा और वो भी मेरे इतने आस पास,
टेलेस्कोप होता तो छत से उसका हॉस्टल दिख जाता। ह्रदय की अनायास हलचल जीत से मिलने को बेकरार थी।

लेकिन कैसे?

छवि तो बेदाग और प्रेम के कुचक्रों से मिलो दूर रहने वाली लड़की की थी । ऊपर से साढ़ेसाती ये की कही जीत भी ये ना समझ ले कि उसके आकर्षण से सम्मोहित हुई चली आई है ।
संजोग से एक दिन ज्योतिष और मनोविज्ञान के प्रकांड विद्वान मुरली महराज जीत का एक नाटक देख के आए थे जिसका शिर्षक था
देश मे आया विदेशी जॉइंट वेंचर
अब तेरा क्या होगा स्ट्रीट वेंडर

शाम को महफ़िल सजाई, अपने कुछ मेधावी स्टूडेंट को घर बुलाया साथ ही जीत को भी ।
ज्ञान गुंडई से जीत ने सबको घायल कर दिया ।
मन के वैज्ञानिकों के समक्ष जीत ने अपने सुरीले तरानों और राष्ट्रवादी बातों से ऐसा शमा बाधा की हर कोई अपने पेशेवर परत से बाहर आकर अपने वास्तविक ढङ्ग में नज़र आने लगा।
इस दौरान कोने में बैठी स्वाति बड़ी बेपरवाही से जीत को देख रही थी।

मुरली महराज ने मेजबानी में नज़र दौड़ाई तो अपनी भारी आवाज़ बुलंद की

उधरहिया कोने में काहे बैठी हो बिटिया
इनसे मिलो ये है जीत,
आजकल यूनिवर्सिटी में जम के वाहबायी कूट रहा है।
और जीत, ये है मन महारथी स्वाति जो आजकल इस विषय पर शोध कर रही है कि इंसान जब संतुस्ट होता है तो स्वतः ही उसके अंदर बहुत सी मानवीय अच्छाई आ जाती है।
जीत ने लपक के हाथ थाम लिया और कहा नाइस टू मीट यू ।
स्वाति ने भी त्वरित उत्तर दिया इट्स माई प्लेज़र टू मीट यू जीत
जीत अभी ढील दे ही रहा रहा था कि स्वाति  लपेट के चलती बनी ।
मुरली सर् मुझे अब चलना होगा ।
जाना नहीं था कन्या को लेकिन जब आप पेशवर ढ़ग से लोगों के सामने आने लगते है तो आपके उपर केवल औपचारिकताए ही हावी रहती है । आप चाह कर भी अपने मन का कुछ नहीं कर सकते है। स्वाति रूकना चाहती थी लेकिन उसे चलना पड़ा । रास्ते भर पीछे मुड़ मुड़ के देखती रहीं कि, कहीं जीत तो नहीं आ रहा है ।
सामने रसगुल्ला था तब खाया नहीं रास्ते भर कहते रहे कि बड़ा मन कर रहा है रसगुल्ला खाने का । कुछ ऐसी ही हालत थी स्वाति की
हॉस्टल तक के 15 मिनट के पैदल सफ़र को उसने 30 मिनट में तय किया । जब हॉस्टल दूर से ही नज़र आया तो स्वाति ने आखरी बार पीछे मुड़ के देखा लेकिन अब जीत के आने की उम्मीद ना उम्मीद थी।

तभी किसी ने आवाज दी बार बार पीछे मुड़ के क्या देख रही हो कोई पीछे पड़ा है क्या?

जीत को देखकर अचानक ही स्वाति के शब्द फूटे अरे तुम और मैं तो तुम्हें ....
मामले की गंभीरता को समझते हुवे देवी ने शब्दों को पुनः रिपेयर किया और कहा
अरे तुम यहाँ कैसे ?
जीत- फिर गुंडई, सच बतावो अच्छा नहीं लगा मुझे  देखकर ।
स्वाति - (चहरे की मुस्कुराहट साफ कह रही थी कि हां, अच्छा लगा लेकिन शब्दों में कुछ और कहा)
मुझे लगा आज तुम्हें फुरसत कहा मिलेगी।
जीत- तुम्हारी वार्डन ने हॉस्टल आने को कबतक बोला है।
स्वाति-9 बजे तक
जीत-चलो फिर यहाँ से राइट टर्न ले लो।
अभी तो 8 बजे है।
(स्वाति ने घड़ी देखी और चलते चलते ही कहा)
पहले ये बतावो इतने दिन से मिलने क्यों नहीं आए।
जीत - पिछली बार मिलने आया था।
याद है ना?
क्या किया था, मेरे साथ

स्वाति - भाक । मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ 
क्या बोले थे ? खड़े नाप दोगे

जीत - अच्छा ठीक है सॉरी ।
चलो अपना सेल नंबर तो दो, फिलहाल मैं यही लेने आया हूँ।
स्वाति -कुछ ज्यादा तेजी नहीं दिखा रहे हो तुम

जीत-अब रिश्तेदार है, इतना तो हक़ है ।

स्वाति,(रास्ते के किनारे 2 सीटर बेंच पे बैठ गयी और तसल्ली से पूछा )
तुम्हारा रिलायंस का नंबर है?

जीत -अरे नहीं यार ।

पहले रिलायंस का सीडीएम सेट लिए थे।
आवाज कट कट के आती थी, इसलिए अब हच का सिम ले लिए।

स्वाति - हां, मेरे हॉस्टल में भी नेटवर्क साफ नहीं पकड़ता।
ऐसी ही कुछ हिंदी, कुछ देसी, और समथिंग इंग्लिश में बतियाने के बाद दोनों हिलमिल गए ।

मन मे अनकहे प्रेम के बीज बोकर जीत और स्वाति, इस वादे के साथ अपने,अपने होस्टल लौट जाते है कि अब से रोजाना मिलेंगे चाय और अख़बार की तरह।

अध्याय 4
ना जाने कितनी बाते थी, दो खामोश दिलों के दरमियान,
जो आज एक दूसरे को खराबा खराबा पास ला रहीं थी। एक दूजे के लिए "मिराक" हो जाना ही शायद प्यार होता है । हर रात फोनिन फरमाइश और रतजग्गा होने लगा और दोनों ने वचन दिया कि, लाइफ सेट होते ही, शादी होगी सरस्वती विद्या मंदिर के लॉन से ।

समस्त प्रकार की सामाजिक जुनून और पारिवारिक फुटानी झाड़ने के बाद, रात्री का आखरी पहर सहेज के रखा जाता था। उस सच्ची रूमानियत के लिए जब दिल आत्मिक हो जाते थे और वहीं बोल पाते थे
जो बेहद वास्तविक था।

आगे का कालखंड, केवल मालवीय जी के विद्या मंदिर में ही सिमटा नहीं रहा

बीएचयू में, स्वाति का ये आखरी और जीत का पहला साल था । नेट जीआरएफ के हवाले से स्वाति को अपनी रिसर्च पूरी करने मुबई जाना था।
और वो चली गयी ।

दोनों ही जीवन में सिनेमाई लाड नही लड़ाते थे, इसलिए मैं कैसे, या तुम कैसे रहोगी?
इस बात के इमोशनल टंटे नही थे,
लेकिन दूरियों का साइड इफ़ेक्ट तो जरूर था ।
कुछ ही दिनों में फ़ोन पे किये प्रेम, सेक्स और चुम्मा चाटि से दिल ऊब गया था।

एक रात्रि, जब वासना उफान मार रही थी।
जीत के पुरजोर अपील के बाद, स्वाति ने ध्वनि मत से प्रस्ताव पारित किया कि इस बार मुबई से लौटते ही कहानी बढ़ेगी टचिंग किसिंग के आगे .........

आगे की कथा में
जीत यूनिवर्सिटी में पढ़ाई में कम और रंगारंग कार्यक्रमों में अस्त व्यस्त ज्यादा रहने लगा ।  उसकी मुलाकात एक स्टेज शो के दौरान झंकार से  होती है, जिसे जीत होस्ट कर रहा होता है । अदभुत उज्जवल रमणी झंकार मॉसकॉम की नई नवेली छात्रा थी।
सन्न 2007 से यूट्यूब पे एक्टिव थी ।
स्वयम रचित, उनके एक गीत को 15 लाख से ज्यादा बार सुना देखा और लाइक किया गया था।

पब्लिक डिमांड पर जीत झंनकार को स्टेज पर आमंत्रित करता है ।
दो शब्द गुनगुनाने के लिए ।
तालियों की ऐसी तड़तड़ाहट जीत ने पहले कभी नहीं सुनी थी। झंनकार गुनगुनाती है तो जीत समेत हॉल में मौजूद हर शख्स के दिल के तार भनभना उठते है ।
रहनुमा तेरी याद में अब ना सम्हले गा दिल
कतरा कतरा पिघले गा दिल
रफ्ता रफ्ता दफन हो गा दिल
रहनुमा तेरी याद में अब ना सम्हले का दिल

अब तक कितने दिलों को तोड़ने वाली झंनकार के लबों से आशिकों का दर्द फूटा तो, हर दिल जीत के तुफानी अंदाज को भूला बैठा।
खुद जीत भी झंनकार के गीत का कायल हो गया और स्टेज से उतर कर दिवानों की भीढ़ मे शामिल होकर वन्स मोर, वन्स मोर चिल्लाने लगा।

जहां जीत के आ जाने से नवजवानों में शिलाजीत जोश आ गया, तो वहीं झंनकार के लिए ये पहला अऩुभव था कि कोई होस्ट दिवानों की कतार में शामिल होकर उसकी हौशला आफजाई कर रहा था।

शो के कॉन्ट्रेक्टर कबीरकृष्ण
आज ता-ता थैया थे । शो सुपरहिट था ।

स्वाति को, जीत और झंनकार के भरत मिलाप की बाते, अपने कुछ दोस्तों से पता चली तो तनिक आशंकित हो गयी।

इंट्रोगेशन की रात
(जीत का फोन आया ………)
हैलों स्वाति
(दूसरी ओर से आवाज आयी)
ये झंनकार कौन है ?

जीत -मेरी जूनियर और मेरी फ्रैंड ।
(जीत ताड़ चुका था कि, आज तो अग्नि परिक्षा है।)

स्वाति - सिर्फ फ्रैंड या और भी कुछ चल रहा है आपके बीच ?
जीत- नहीं, बस फ्रैड है। ( नरबसाते हुवे )
स्वाति- तुमने, हमारे बारे में उसे कुछ बताया है ?
जीत - अरे मालिक ।
मेरे जहन सिर्फ तुम बसी बैठी हो, और कोई नहीं।

स्वाति-  अगर झंनकार के दिल में तुम हुए तो ?

जीत - सरकार, किसी की क्यी मजाल जो आपसे आपका प्यार छिन ले।
रही बात मेरी तो
दिल की लगी लगाये बैठे है,
कमबख्त प्यार कर बैठे है
जिगर वालों के खेल में
दिल हार बैठे है

स्वाति - गुडबॉय । कविता पाठ से देवी प्रसन्न हुई।

ऐसे ही प्यार के अफसानों की गोद मे स्वाति का करार लौट आया और वो चैन से सो गई। लेकिन
जीत बाबू की इस बात से फट रही थी कि स्वाति के दिल में अविश्वास का बीज क्यों फूट रहा है।

उन दिनों प्यार का लायल्टी टेस्ट हो रहा था और लव सेक्स और धोखा आधारित फिल्में बम्पर कमाई कर रही थी । लिविंग रिलेशनशिप और लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में साथी को सरप्राइज देना भी उन्ही दिनों की बात है ।

इसी कड़ी में, स्वाति भी अपनी गाइड रुक्मणी जी से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर बिन बताए प्रियवर जीत से मिलने रोमिंग में चली आयी ।

प्रियतमा स्वाति के यू अचानक दौरे से,जीत भी बमबम थे। मिलन के समय स्वाति को उपहार स्वरूप कुछ ख़ास देना चाहते थे ।

फिलहाल स्वाति को क्या दिया जाए, इसी विषय पे अपने जीवन मरण के साथी कबीर कृष्ण से मंत्रणा कर रहे थे ।

कबीर कृष्ण का मन उन दिनों झंकार के लिए बेकल और पंछिया रहा था। बनारस के एक मशहूर व्यवसायी खानदान से तालूक रखते थे ।
पूरे बनारस में करीब 50 से ज्यादा कपड़ों और लेडिज कॉसमेटिक्स की दुकानें थी । कबीर यूनिवर्सिटी के सुपर सीनियर थे और ऐसे मनमोहक रसिक थे जिन्होंने कालेज की हर विभाग में अपनी गोपिया फास रखी थी।

यूनिवर्सिटी में, पिछले 5 सालों से  निर्विरोध रुप से, रंगारंग आयोजन मंडल के अध्यक्ष चूनते आ रहे थे। जिसका प्रमुख कारण भी कॉलेज की कन्याए ही थी।
कन्याओं के बीच कबीर की ये बात सबसे ज्यादा मशहूर थी कि कबीर तो सखा से बढ़कर है। कन्याओं का हमदर्द, उनका सुपरकॉप

कबीर के विरोधी उसे यूनिर्वसिटी का गद्दाफी कहते थे तथा ये भी कहने में गुरेज नहीं करते की कालेज की तमाम कन्याए इसलिए कबीर के साथ हो जाती है क्योकि उन्हें स्पेशल पैकेज के तहत  रोज डे , वेलनटाइन डे या किसी अन्य विशेष पिया मिलन दिवस पे गिफ्टवाउचर दिया जाता है। कन्याए इस वाउचर को कबीर बाबू के किसी भी स्टोर में भजा सकती है । और वहां से कपड़े और सौन्दर्य प्रसाधन आधी कीमत पर ले सकती है ।
इसके अतिरिक्त अफवाह ये भी थी कि, कबीर जन्म दिवस ,कॉलेज में पहला प्रवेश दिवस जैसे मौके पे देवियों के लिए स्टोर फ्री कर दिए जाते है।

आज कबीर, बांसफाटक के अपने स्टोर में जीत के साथ विशेष बैठक कर रहे थे।
कबीर और जीत की मंत्रणा का निष्कर्ष निकल चुका था । कबीर ने "कल्लन" को देखा, और कोड वर्ड में संदेश उछाल दिया । "कल्लन" जो ऊपर की सीलिंग पे, दरबे नुमा दू छत्ति पे बैठा दांत चमका रहा था। फ़ौरन से पेश्तर शाहनाज का फेसिअल किट और बैठने पे गोल गुम्बद हो जाये वैसा अनारकली सूट नीचे टपका देता है।
दोनों उपहारों को रंगीन पेपर में रैप करने के बाद कबीर ने अत्यंत अश्लीन मुस्कुराहट के साथ जीत से विदा ली । और कहा निश्चित रहो
शाम तक तुम्हे जो लेना है वो भाभी दे देंगी।
खैर लेनी देनी का क्या विषय था सम्भवतः इसे गुप्त रखा गया क्योंकि समझदार को इशारा ही काफी था।

आज स्वाति और जीत का काशी दर्शन का प्लान सुनिश्चित था। रास्ते में फुल्की, चाट, मलाईपूड़ी,और रबड़ी के जायके का घनघोर आनंद भी तय था। जीत लहरिया बाइकर्स के माफिक  स्वाति को पूरा बनारस घुमा रहा था। इस सुहाने सफर में जीत को क्लच, गियर और स्वाति का भी फुलसुपोर्ट मिल रहा था।
अतः शाम और रात की मिलन बेला पे, जीत ने अपनी बाइक उस गली में घुमा ली जहाँ से स्वाति का घर, पैदल 5 मिनट और बाइक से 15 मिनट की दूरी पे था । जिन्होंने बनारस की चमत्कारी गलियों को जान रखा है। वो इस बात से भली भांति इतेफाक रखते होंगे कि, बनारस की गलियां आपको आपके गंतव्य तक बिना वाहन के भी अतिशीघ्र पहुचा देती है ।

जीत ने गिफ्ट का पैकेट स्वाति को थमाते हुवे बाइक को गली में ही टिका दिया। और स्वाति को पैदल ही गली पार कराने निकल गया ।
घर दिखते ही स्वाति से मुस्कुरा के विदा ली और मुड़ के जाने लगा
सुनसान गली में जीत को जाता देख स्वाति सोच रही थी कि घंटा ये टचिंग और किसिंग से आगे बढ़ेगा।
और गिफ्ट को अपने बैग में जबरन घुसेड़ते हुवे जीत को आवाज लगाई
जीत- अब क्या है बे...
स्वाति - तुम को हग करना है बे
जीत - तुमको कैसे पता चल गया कि मुझे क्या करने को जी कर रहा है।
स्वाति - ये मन का विज्ञान है बेटा ।
आवो पहले गले मिलन समारोह कर ले फिर बताती हूँ
जीत ने स्वाति को कस के अपनी बाहों में ले लिया
हा, तो साजन जी, तुम केवल भूमिका बनाया करो फिर देखो मैं कैसे उसका विस्तार करती हू।
जीत- सच्ची में । और जीत स्वाति को और कस के अपनी बाहों में जकड़ लेता है।
स्वाति - नहीं, अब छोड़ो मुझे, तुम्हारा कुछ घट बढ़ रहा है, जो कमर के नीचे "साबुत" पता चल रहा है ।
जीत- अरे देवी तनिक भी विचलित ना हो बहुत ही छड़भंगुर होता है मिनट में तैयार और मिन्ट्स में धराशाही हो जाता है।
स्वाति -अरे नहीं प्राणनाथ, मुझे डर है कि कही मेरा सेक्सुअल इनकाउंटर ना हो जाए ।
जीत- (जीत हँसने लगता है)
ठीक है लो छोड़ दिया

(हड़बड़ी में स्वाति अपने सूट एवम बालों को ठीक करने लगी कि इतने में जीत ने आगे बढ़ कर स्वाति को चूम लिया।)

स्वाति -बस अब ये नहीं करना था ।
जीत- सॉरी। बुरा लगा क्या?
स्वाति अरे नहीं,
अब पूरी रात यही सीन दिमाग मे घुमड़ता रहेगा और उंगलिया कमर नाभि पे नाचती रहेंगी।

जीत- कमर नाभि पे ? हहम्म्म्म....
देवी इस बात पे थोड़ा प्रकाश डालो।
(जीत ने जिज्ञासा की पराकष्ठा पे चढ़ के पूछा)

(स्वाति ने तमतमाते हुवे जीत से बोला) 
बहुत जिज्ञासा फूट रही है।
भाग जावो बेटा यहां से,
वर्ना घुसन्ड मार के तुम्हारा अंडा फोड़ देंगे ।

स्वाति की बात सुनकर जीत दहाड़ मार मार के हँसने लगा और जीत को देखकर स्वाति को भी अपनी बात पे हसी आ गयी खैर दोनों ने फिर से एक बार और गले लग कर विदा ली और यही इस खंड का भी समापन होता है।

अध्याय 5
किसी ग्रामीण क्षेत्र में जीत और झंकार ने मिलकर कर एक कम्यूनिटी रेडियों का आगाज किया  जिसकी रेंज उनके स्टूडियों से  12 किलोमीटर के दायरे में फैली थी । एफएम पर बजने वाले गीतों और एक जैसे रिपिट होते शो से उब चुके लोगो को ये कम्यूनिटी रेडियों अपना सा लगा । रेडियों का  दायरा छोटा था लेकिन उसकी धमक, उस रोज पूरे शहर में सुनाई दे रही थी।
रेडियो पे जीत देश , समुदाय , लोककला, लोकसंस्कृति , जैस विषयों पर आसानी से समझे जाने वाले आडियों शो को प्रजेंट करने लगा तो वहीं झंकार और कबीर ने बनारसी लोक गायकों के साथ मिलकर रोजाना सांस्कृतिक शो होस्ट करने लगे ।
देखते ही देखते तमाम फक्कड़ लड़के लड़किया जीत के साथ सामुदायिक रेडियो से जुड़ गए। जीत अपनी मंडली के साथ गांव गांव घूमता अपनी संस्कृति अपनी रचनात्मकता को तलाश करता ,वह मानव जाति की परम्परागत विशेषता सिख रहा था जो इस आधुनिकता में कहीं पीछे छूट गयी थी ।  रिपोर्टिंग के दौरान जीत ग्रामीणों की पवित्रता एवं शुद्धता को देख ग्रामीण समुदाय में बसने के लिये प्रोत्साहित हो रहा था तो वही इसके विपरीत कहानी में एक किरदार ऐसा भी था जो ताबड़तोड़ बदलाव के दौर से गुजर रहा था ।
मेट्रोपोलिटन सिटी में स्वाति एक बार फिर जीत से ज्यादा अपग्रेड हो गयी । भाषा,बोली रंगरूप सभी कुछ हाई प्रोफाइल हो गया । तमाम तरह की लग्ज़री और कुलीन जीवन शैली को लेकर स्वाति फोकस थी । अब जो दोस्त यार भी मिले वो भी आईफ़ोन वाले थे। स्वाति का टाइम मैनजमेंट से लेकर डे प्लान लगभक सभी कुछ अमेरिकन बिज़नेस मॉडल से कॉपी था । मनोविज्ञानिक स्वाति को पेशेवर तौर पे यही लगने लगा कि जीत की कोई वास्तविक दूनिया नहीं है। अब वो जीत के आइडियलस्टिक रियलईस्म से ना के बराबर ही प्रभावित होती । विचार धारा में भारी बदलाव आ रहा था।
अक्सर जीवन लक्ष्यों की बात पे अहम टकरा रहे थे और विस्फोटक टकराव होने की प्रबल संभावना स्वरूप ले रही थी।

अध्याय 6

सुख, वैभव, प्रतिष्ठा धरी की धरी रह गयी और जीवन एकांकी हो गया ।
नितांत अकेली स्वाति की बंद आखों में फिर वहीं सबकुछ उभर आया जो जीत से अलगाव का कारण था।
जीत और स्वाति के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा था । वार्ता से लाभ कम और जी जलाना ज्यादा हो रहा था । अबतक, स्वाति एक नामी हॉस्पिटल में बतौर साइकोलॉजिस्ट नियुक्त हो गयी थी और भविष्य ठोस और सार्थक बन चुका था।
अब स्वाति को जीत के अधकचरे भविष्य की चिंता हो रही थी ।
जीत को अक्सर स्वाति का ओवर द फ्लो ज्ञान गरमा देता था । वो अपने कम्युनिटी रेडियो और अपने सीमित काम से बेहद खुश था । उसकी लाइफ में जरूरत से ज्यादा की जरूरत नहीं थी।

ऐसी ही स्थिति परिस्थिति के बीच एक दिन दोनों आर पार के मूड में आ गए।

स्वाति- मेरे लिए भी टाइम है या नहीं जीत, आज तीन दिन से कोई बात नहीं मेरा न सही खुद की ख़बर तो दिया करो।

जीत- मेरी बातों में तुम्हें इंट्रेस्ट कहा रहा स्वाति,

मै तो बस इंतजार करता हू कि कभी तुम मेरी उन बातों को सुनों जो मै सिर्फ तुम्हारे लिए सोचता हू।

स्वाति -रियली जीत । स्ट्रेंज, आज कल तुम्हें रेडियो से इतनी फुरसत मिल जाती है।

जीत- मेरी बाते और मेरा काम तुम्हे बचकाना लगता है ?

स्वाति- आज दिल नहीं रखूंगी तुम्हारा
मेरे हिसाब से जो तुम कर रहे वो खिलवाड़ ही है।

जीत - मसला तो यही है मालिक आपने जो किया उसे समाज ने भी महिमामंडित किया। तुम्हारी तरह मैं बहुप्रतिष्ठत संस्था में काम नहीं करता ना इसलिए जो भी कर रहा हूं फिलहाल वो खिलवाड़ ही है।

स्वाति - जीत मैं ने ये बात अपने अनुभव से बोली है। प्लीज़ तुम इसे मेरे काम मेरे ओहदे से जोड़ के मत देखो।

जीत- तुम्हारी दुनिया में तो देवी, अच्छी पढ़ाई , प्रतिष्ठत काम और फिर पैसे, पावर, स्टेटस के लोभ में जूझते रहना ही प्राथमिक उद्देश्य है ।

साधारण लोग और सादा जीवन अब तुम्हे रास कहा आता है।

(स्वाति को जीत की बात पसंद नही आई)
स्वाति - मैने कभी ये नहीं कहां कि जो दूसरे करते है वहीं तुम भी करो । या तुम भी उन जैसे बन जाओ ।

जीत- फिर मेरे स्टेज शो और कम्यूनिटी रेडियो से तुम्हे क्या प्रॉब्लम है।

स्वाति - सच कहना जीत ,ये स्टेज शो, कम्यूनिटी रेडियो चलाना इन सब से तुम कितना कमा ले रहे हो?

जीत- खर्च निकल जा रहा है

स्वाति -मेरी जान, खर्च निकालना ही आज के टाइम में काफी नहीं है। बस मेरे लिए एक बार फिर से प्लानिंग करो
अगर तुम्हें रेडियों में ही काम करना है तुम ऑल इंडिया रेडियों की तैयारी या टीवी मीडिया में ट्राई करो । लोकन न्यूज पेपर की जगह नेशनल न्यूज पेपर में ट्राई कर के देखो।

जीत- ट्राई, छह महीने फुलऑन ट्रेनिंग की मैने,
वहां शब्दों से खिलवाड़ होता है । कलम की ताकत और कलम के सिपाही का अस्तिव नहीं रहा इन मीडिया हाउसेस में । साधारण सी ख़बर को सनसनीखेज बना के सामान्य जनमानस का मख़ौल बनाया जा रहा है। झूठे वादों और दावो का मंचन हो रहा है। पत्रकारिता भी बाजारवाद का शिकार हो गयी है स्वाति , मुझसे वहाँ ना कुछ लिखा जाता है और ना ही बोला जाता है। गुनहगार को स्टूडियो में बैठा के उसके बेगुनाही के सबूत दिए जा रहे है ।

स्वाति - सचाई और अच्छाई की आड़ में तुम भाग रहे हो जीत । किस संस्था या कहा नहीं हो रहा है ये सबकुछ । कभी कभी खुद की बेहतरी के लिए बहुत सी बुराइयों के बीच भी रहना पड़ता है ।

जीत - तुम जिसे भागना बोल रही हो वो मेरी नजर में परित्याग है।

स्वाति - ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा दायरा छोटा है। तुम्हे डर लगता है, उन से जो आजकल टीवी रेडियों , मैगजीन पे छाये हुए है ।
इसीलिए जीत तुम अपनी एक फेक दूनिया बना रहे हो।
जीत- स्वाति अपने ज्ञान को लगाम में रखो पहली बात की अगर मैं डरता तो पत्रकारिता कभी नहीं करता और दूसरी ये कि, मैं अपने भविष्य की कल्पना कर सकता हू। इसके लिए मुझे किसी संस्था की आवश्यकता नही है। जो मै कर कर रहा हू वो मेरे फ्रिडंम ऑफ एक्सप्रेसन की आवाज है जिसके लिसनर मेरे अपने है, जो मै लिखता हू उसके रीडर  मेरे अपने है । फिर मै क्यों जाओ उस दलदल में ।

स्वाति- जीत तुम पगला गए हो, अपने मकसद अपने काम से भटक गए होl तुम स्टेज शो करते हो जिनमे ज्यादा तर वहीं लोग आते है जो तुम्हें या कबीर को जानते है
कम्यूनिटी रेडियों चलाते हो जो एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन है । जिसमे आमदनी का एक ढेला भी नहीं है ।
बेढंगी लड़कियो से तुम्हारा मेलजोल, झंनकार से नजदीकिया उटपटांग तरह के स्टेज शो और ये कम्यूनिटी रेडियों का फितूर ये सब कुछ भटकाव का ही नतीजा है। अभी बहुत वक़्त है बदल जावो दिल्ली चले जावो, कुछ दिन किसी मीडिया हाउस में काम करोगे तो फिर से सबकुछ ट्रैक पे आ जायेगा।

आज फिर, स्वाति ने जीत को उसकी हकिकत से आमना सामना कराया था । आज फिर जीत के अहम पे चोट पहुची थी।

जीत- काश कि मैं जैसा हूँ तुम मुझे वैसा ही एक्सेप्ट कर पाती। तुम इतना आगे ही क्यों बढ़ जाती हो कि वहाँ से मैं तुम्हे बहुत छोटा दिखने लगता हूँ।
देखना मैं सबकुछ फिर से बदल के रख दूंगा दिल्ली भी जाउगा ।
लेकिन इस बदलाव में जो मैं सबसे पहले बदलूंगा वो तुम होगी स्वाति।
स्वाति -भांग गाजा पी पा के आए हो क्या । क्या बोल रहे हो।
जीत- नहीं आज होश में आया हूं ।
स्वाति - तुम मुझे छोड़ दोगे ।
जीत- नहीं तुम्हे आजाद कर दिया ।
कुछ देर लिये स्वाति सुन्न पड़ गयी और फिर गुस्सा और दर्द सीने में इतना भर आया कि स्वाति चिल्ला दी।
स्वाति - भक्कड़ में चले जावो जीत । अगर लौट आए, तो मेरा मारा हुआ मुँह देखोगे।
और फ़ोन अचानक कट गया । किसका बैलेंस खत्म हुआ कौन जाने या नेटवर्क चला गया हो, लेकिन इस कांड के बाद जीत और स्वाति ने फिर एक दूसरे से जुड़ने की कोशिश नहीं कि जीत भी अपने कथनानुसार  दिल्ली आ गया और एक न्यूज चैनल में काम करने लगा और स्वाति भी सम्हलते हुवे आगे बढ़ती गयी । कम्यूनिटी रेडियो आज भी जिंदा है । अब उसे झंकार चलाती है और कबीर बाबू झंकार के प्रेम में आज भी पागल है।

अध्याय 7
दूरीयों ने प्यार के जज्बात का गला घोट दिया । जब दिल को अविश्वासका कीड़ा रेंग दे तो समय भले ही दिल के जख्म को भर दे लेकिन उसके दाग तो दिल पर रही जाते है ।
सच्चे प्यार में अक्सर ये हो ही जाता है।
किसी की मीठी बात से दिल उसकी तरफ मोम बन कर  पिघल जाता है, तो कभी कड़वी बात से काच बन कर बिखर जाता है।
जीत और स्वाति अब साथ नहीं है स्वाति मुंबई में और जीत दिल्ली में है।
दोनों के रिश्तों में अहम और अविश्वास ने दरार ला दि थी और नफरत ने दिल में सुराग कर कड़वाहट का जहर भर दिया था । बाकी कि कसर तो टिक टिक करती घड़ी ने पूरी कर दी। न जाने क्यों, ये हर वक्त चलती रहती है ।
शायद इसलिए उनके बीच बीते सात सालों के हर एक दिन और रात का फासला आ चुका था। आज स्वाति एक नामी साइक्राइटिस है और जीत, ख़बरिया चैनल का सीनियर पत्रकार । दोनों ने खुद को कामकाज में इतना घुला लिया है कि, दिल के किसी कोने में आज भी कोई छूपा बैठा है इसका अहसास भी उन्हें तभी होता है जब वो रात में करवटे बदलते है । करवटे बदलते ही दिल की छटपटाहट को आसानी से महशूस किया जा सकता है । हर करवट आपको बीती हर एक बात से रूबरू कराती है। ये करवटे ही थी जिन्होनें आज भी दो दिलों को जोड़े रखा था वरना जीत और स्वाति के पास अब पहले जैसा कुछ ना था। और ना ही अब वो पहले जैसे रह गये थे ।

स्वाति को उसकी अस्सिटेंट "वर्षा ने कॉल की है और स्वाति लाइन पे है।

स्वाति - हा वर्षा
वर्षा- मेंएम, वाया कोरियर
किसी कबीर कृष्ण के शादी का कार्ड  आया है।
(पुराने लोग भी अक्सर पुराना प्यार याद दिला जाते है । स्वाति ने एक लंबा पॉज लिया फिर बोला)
स्वाति - अच्छा। शादी की डेट कब की है?
और वेन्यू कहा है?
वर्षा - मऐंम आई थिंक ये डेस्टिनेशन वेडिंग है तिलक बनारस में एंड शादी
इट्स हेल्ड ऑन फेब 8 एंड वेन्यू इस होटल ताज पैलेस मुबई
स्वाति - आज ही तो 8 फेब है
वर्षा-तो आप जा रही हो
स्वाति -नॉट स्योर, लेटस सी,
अच्छा। वर्षा, तुम एक काम करो।
वर्षा-यस मेंएम
स्वाति -अपॉइंटमेंट रिशेडूल करो सीरियस केस ही डिस्कस कर पावोंगी।
( फोन रख दिया।)

स्वाति शीशे के सामने अपने बालों को कोम कर रही है। लेकिन दिल में कुछ चल रहा है.... शायद अतीत की कोई परछाई उसे आइने में दिख रही है बाल तो कब के सवर गये, सुलझ गये, लेकिन उसके हाथ बालों को सुलझाए पड़े है ।
दिल में एक पुराने अहसास ने दस्तक दी है  मालूम पड़ता है कि फिर कोई याद आया है

तुम क्यों चले गये? हम क्यों दूर हुए?

हां, मैने ही कहा था कि  मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना वर्ना,  मेरा मरा हुवा चेहरा देखोगे, और तुम चले गये मुझे हर दिन मरता हुवा छोड़ कर
हां मैने ही कहा था कि, मै उस इंसान को अपनी नजरों से दूर कर दूंगी, जिसने मेरी नजरों में सिर्फ टपकते हुए आसूओं का ऐसा सैलाब भर दिया जो हर बार बहने के साथ बढ़ता ही जाता है ।

फिर क्यों, मेरी नजरे उसे ही खोज रही है ।
तुम जैसे गये थे, वैसे ही आ क्यों नहीं जाते।

मेरी मौत इस मौत से ज्यादा अच्छी होती जो मै हर दिन मर रही हू ।
प्लीस आ जाओ  मै इस बात को कह नहीं सकती पर तुम इसे महसूस जरुर कर सकते हो। फिर क्यों नहीं करते।
ये 7 साल कम नहीं होते... हम एक दूसरे के साथ ऐसा कैसे कर सकते है ?
पुनःफोन की घंटी बजी, आमतौर पे वर्षा, एक बार मे, स्वाति को सारी बाते, कहा बता  पाती थी। यकीनन फोन उसी का था ।

स्वाति - प्लीज वर्षा  । लोगों से डील करना सिखों
वर्षा- सॉरी मेंएम लेकिन प्राइम पेशेंट और फॉरेंसिक वालों ने नाक में दम कर रखा है। फिर किसी साइको की केस स्टडी उठा लाए है ।
स्वाति - फॉरेंसिक वालों को छोड़ कर सबके अपॉइंटमेंट कैंसिल करो । बोल दो की आज मैं नहीं आ रही।
तभी रिसेप्शन पे, एक और आदमी आता है।
वर्षा रिसीवर को अपने कंधे और कान के बीच मे टिकाते हुवे
सॉरी सर्, आज मेंएम नहीं आएगी।
अरे आप उनको... वर्षा ने बात काट दी
आई नो की आपको भी इमेरजैंसी है लेकिन प्लीज बात समझिए
अभी मैं आपकी कॉल भी फारवर्ड नही कर सकती । आप नेक्स्ट डे आइए ।
सॉरी फ़ॉर इन कनवेनिएंट ।
वर्षा उस आदमी को इग्नोर करती है और वो भी दबे पांव लौट जाता है।
यस मेम बोलिये
स्वाति -कौन था
वर्षा- नथिंग मेम, कोई मेडिकल रिप्रजेंटेटिव लग रहा था।
स्वाति - ओके। चलो फोरेंसिक वालो को चाय, कॉफी दो। मैं बस 15 मिनट में पहुच रही हूं।

भावनाओं का ज्वार आके चला गया था।
स्वाति फिर उसी दूनिया मे लौट आती है, जहां प्यार, अहसास की कोई जगह नहीं होती ।
सिर्फ काम पर पहुचने की जल्दी थी लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है जो स्वाति के लिए भी अनएसपेक्टेड ही था ।
खुद को टचअप करने की तेजी में वो बाथरूम की तरफ बढ़ती है । टाइल्स लगे फर्श पे एड़ियां 45 डिग्री रिवर्स घूम जाती है । वो लड़खड़ाते हुवे  वाशबेसिंग से टकरा जाती है और तड़ाक से सीधे फर्स पे गिरती है। पूरा चेहरा कटफट गया , नाक टूट गयी और पैर मूड़े ही रह गए ।
खून खून हो गया। दर्द इतना भयानक कि दम निकल जाएं । स्वाति बाथरूम के फर्स पे ही तड़फड़ाने लगी ।
दम तोड़ती आवाज आह तो कर रही थी लेकिन चीख नहीं पा रही थी । आँखों की सूजन से धुंदला ही नजर आ रहा था।
स्वाति, घिसट घिसट के रेंगने लगी । दर्दनाक मंजर, दम तोड़ती स्वाति और आख़री सांस के उखड़ने का इन्तज़ार ही शेष था ।
यकायक, इंटरकॉम की घंटी बज गई
इण्टरकॉम बजता रहा लेकिन स्वाति उस तक नहीं पहुच पाई।

लेकिन इस बार
इण्टरकॉम की घनघनाहट दरवाज़े की दस्तक बन गयी। स्वाति को, सासों की मोहलत मिल गयी। एक आश की शायद बच जावो।
स्वाति, घिसटते, रेंगते, रगड़ते दरवाजे के करीब आ गयी। दस्तक के उस पार स्वाति और इस पार जिंदगी थी।
स्वाति के कांपते हाथो ने कुंडी तो खोल दी लेकिन दरवाजे की सिटकनी आज औकात से ऊंची हो गयी। घुटने के बल बैठी स्वाति, उचक उचक के  सिटकनी को छू ही पाई थी कि बेतहासा दर्द में स्वाति का आखरी आंसू छलक गया । स्वाति दरवाज़े पे ही ढेर हो गयी।

अध्याय 8
बनारस के हवा,पानी में घाव भरने शुरु हो गए।
स्वाति काफी अर्से के बाद फैमली और पुराने  यारों के बीच थी । उसे प्यार के ऐसे ही आत्मिक बंधन की जरुरत थी जो ये विश्वास भर दे कि, जीवन के किसी भी पल में, कुछ लोग हमेशा उसके साथ है । हसी, खुशी ,चहकना, चिल्लाना ये सब कुछ सिर्फ कुछ ही दिनों में लौट आया ।

आज बड़े दिन बाद स्वाति टीवी देख रही थी। मन लुभावन की तलाश में रिमोट से चैनल दर चैनल स्विच किये पड़ी थी।
अचानक, नजरे टीवी पे ठहर गयी ।
जीत की आवाज ने स्वाति को बेजान कर दिया ।
नमस्कार, मै जीत सिंह, आपका स्वागत करता हू सीधे गंगा घाट से । हमारे इस खास कार्यक्रम में, 
आज हम बात करेगे परमात्मा और प्रेम के अनूठे संगम की, लेकिन उससे पहले रुकते है एक छोटे से ब्रेक लिए ।
जीत स्क्रिन से उझल हो गया।
स्वाति का चेहरा लाल हो गया, सांसे थम गयी और गला भर आया । दिल तो चाह रहा था चीख ,चीख कर रो दे।
शायद दिल का दर्द इतना ज्यादा था कि, ये सारे सिमटम्स ही स्वाति कि हालत को बया कर कर रहे थे।
स्वाति भाग कर बेडरूम में चली आई ।
अपने लाल होते चेहरे को चुन्नी से ढक लिया और दूसरे सीरे को अपने मुह से दबा के खूब जोर से रोने लगी ।
शायद ऐसे आसुओं को ही साइलेंट टीयर्स कहते है ये चुप्पी आसूं दर्द की ऐसी सिसकियों को जन्म देते है जो सिर्फ सच्चे प्यार में ही निकलते है, किसी से दूर जाने के बाद निकलते है। स्वाति रोते रोते ही सो गयी ।
आँखे खुली तो मेडिकल रिपोर्ट सिरहाने रखी थी । ये रिपोर्ट जिसने भी रखी थी यकीन मानिए उसने स्वाति का जार जार तड़पना भी देखा था।

रिपोर्ट मे कुछ ऐसा था जिसने स्वाति के होश उड़ा दिये । हादसे के दिन दरवाजे पे दस्तक जीत की थी।
वर्षा जिसे मेडिकल रिप्रजेंटेटिव समझ रही थी , असल मे वो जीत ही था।
जीत कबीर की वेडिंग के लिए मुबई आया था । कबीर झंकार अब एक हो रहे थे । कबीर और झंकार को साथ देख , जीत को सरस्वती विद्या मंदिर का लॉन और अपना वचन याद आ गया , पछतावा इतना हुआ कि सेल्फ रिस्पेक्ट बईमानी लगने लगा । जीत स्वाति के क्लीनिक आ गया।
वर्षा के ना बोलने पे, जीत सीधा स्वाति के फ्लैट पे चला गया । होमगार्ड ने बिल्डिंग में जाने से रोका तो इंटर कॉम पे स्वाति को अपने आने की सूचना दी । पूरी बेल के बाद भी जब स्वाति ने रिसीव नहीं किया तो जीत ने होम गार्ड की जी हजूरी की । और उसे स्वाति के फ्लैट पे भेजा । जब वो भी नही लौटा तो जीत जबरन बिल्डिंग में घुस गया । होमगार्ड भी स्वाति के दरवाजा ना खोलने से सकते में था । आखिर में जीत की बेचैनी इतनी बढ़ गयी कि उसने होम गार्ड की मदत से दरवाजा तोड़ दिया । स्वाति को एडमिट कराया और घर वालो को सूचना दी ।
स्वाति के होश में आने के बाद भी उसकी हालत नाजुक थी । जीत भयभीत था कि अगर ऐसे में स्वाति ने उसे देख लिया तो कही उसकी तकलीफ और घातक रूप ना लेले । जीत की नज़र में स्वाति तो आज भी उससे नफरत ही करती थी। उसने स्वाति के घर वालो को उसके विषय मे किसी भी तरह की चर्चा करने से मना कर दिया और दिल्ली लौट आया।

स्वाति को अब समझ में आ रहा था कि मां,पापा  उस शख्स का नाम क्यों नहीं बता रहे थे जिसने एक्सिडेंट के बाद उसे हॉस्पिटल में एडमिट कराया स्वाति को आज बेतहाशा खुशी हो रही थी, जिसका अंदाज इतना गजब का था कि उसके पैर बार बार चलने लग जा रहे थे , फिर रुक रहे थे ,फिर चल रहे थे, आंखे रिपोर्ट को बार बार देख रही थी ।
आखिर में खुद से हार कर स्वाति बेड पर जाकर लेट गयी, फिर एकाएक कुछ सोच के मुस्कुराने लगी लेकिन अजीब बात ये थी कि उसकी आखें न जाने क्यों बरस रही थी ।
स्वाति सोच रही थी कि ये इत्तेफाक है या उसकी किस्मत ।
जिस इंसान को, उसने अपनी मौत का वास्ता देकर अपनी नजरों से दूर किया था, उसी इंसान के आते ही उसकी सासों में जान आ गयी ।
जीत तब आया जब स्वाति रोते रोते सो गई थी। मेडिकल रिपोर्ट भी उसने ही रखी थी । और अब चुपके से स्वाति के पीछे जाके अपने हाथों से उसकी आँखें मूंद लेता है। और पूछता है
बतावो कौन है
स्वाति - स्वाति भी अपने जीवन की श्रेष्ठ मुस्कान के साथ कहती है
मेरे बचपन का प्यार ।