Tuesday, April 14, 2015

ठेला आ गया चलो कुछ जरुरतें ले आये.........

देश में भले ही बिग बजार ,विशाल मेगामार्ट, रिलायंस फ्रेस जैसें तमाम रिटेल स्टोर खुल गये हो , लेकिन लोगों में , विशेषकर महिलाओं का फेरीवालों से खरीददारी करना आज भी बदस्तूर जारी है।
दूध , दही हो या भाजी ,तरकारी तेल मसालें हो या घरेलू उपयोग के कपड़े और सौन्दर्य प्रसाधन, सभी कुछ तो मिलता है  जादूगर ठेलेंवालों के पास
 वो भी हमारी तय की गर्इ कीमत पर।
आज एक तरफ जहां बड़े रिटेल स्टोर छूट रूपी भ्रमजाल और निश्चित उपहारों से गृहणियों को रिझाते नजर आते है  तो वहीं ठेलें वाला , अपने जुगाड़ से घरेलू जरूरतों को तौलता नजर आता है। 
वो भी हमारे दरवाजे ,चौराहे तो कभी गलियों में या पास वाले नुक्कड़ पे । मुनाफे में कौन रहा ये कोर्इ नहीं जानता लेकिन देश की अधिकाश महिलाओं के लिए देश की कुल आबादी के लगभक एक प्रतिशत फेरी वालों से उत्पाद का सौदा करना, हमेशा से एक बेहतर विकल्प रहा है।
ऐसे सौदों में जहां भारतीय नारीयों की पारखी नज़र और मोलभाव की विलक्षण तकनीक का पता चलता है , तो वहीं स्ट्रीट वेंडर के तराजू में छिपी साफगोर्इ और छल को भी आसानी से देखा जा सकता है।
आम तौर पर स्ट्रीट वेंडर्स महिलाओं के साथ ज्यादा आत्मीय व्यवाहिरकता को प्रगट करते है। बीबी जी , बहन जी , दीदी, माता जी , जैसें प्रचलित संबोधन शब्दों को प्रयोग करके वो कर्इ बार बडे़ रिटेल स्टोरों के कर्मचारियों से ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर छोड़ जाते है जो बेजारे मेएम शब्द के दायरे से बाहर ही नहीं आ पाते।
ज्यादातर महिलाए समय के अभाव के कारण दूर जाने की अपेक्षा अपने आस पास से की गयी खरीददारी में ज्यादा सहज महसूस करती है और अपने होमग्राउंड पे उत्पाद की वास्तविक कीमत का अनुमान भी बेहतर ढ़ग से लगा पाती है।
अब बारी आती है  स्ट्रीट वेंडर की । चलन में आने वाली कोर्इ नर्इ चीज जो शरूआती समय में महिलाओं के घरेलू बजट से उपर की होती है तो स्ट्रीट वेंडर उस उत्पाद के सस्ते विकल्प उपलब्ध कराते है। 
जो ज्यादा तर महिलाओं के लिए ये सबसे अच्छी बात होती है। इस प्रकार के क्रय विक्रय का दूसरा पहलू ये भी है कि ,  फेरीवाले अपने फटेहाल हालातों को भी माल के साथ जोड़कर पेश करते है। परिणाम स्वरूप ग्राहक भी दया उपकार की भावना में बह कर भी उत्पाद को ले लेता है।
फेरीवालों की बोली और व्यवहार दोनों ही ग्राहक पर मनोविज्ञानिक असर डालते है। वो अपने कम गुणवत्ता वाले समान को बेहतर बता कर डिंगे जरूर हाकता है, लेकिन उत्पाद के लेन देन की पूरी प्रक्रिया में ऐसी शालिनता भरी जी हुजूरी पेश करता है कि हमे आम से ख़ास बनते देर नहीं लगती ।
ग्राहक संतुष्टि की बातें नामचीन विषेशज्ञ और बड़े बड़े रिटेल मालिक आये दिन करते रहते है। काश वो इन अनपढ़ फेरीवाले , ठेलें वालों से भी कुछ सिख पाते
 जो ग्राहक की संतुष्टी और खुशी दोनों को अपने तराजू में लिये घूमते है।


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